लखनऊ। 10 मुहर्रम 61 हिजरी (10 अक्टूबर, 680 ईस्वी) में हुई कर्बला की उस जंग को लोग आज याद करते करते हैं। इस जंग का मकसद सिर्फ और सिर्फ इस्लाम को बचाना था। इस जंग में पैगम्बर मुहम्मद صلی اللہ علیہ و آلہ و سلم के नवासे हजरत इमाम हुसैन इब्न अली के परिवार समेत उनके समर्थक और रिश्तेदारों ने इस जंग में अपनी जाने कुर्बान कर दी थी। इतना ही नहीं बल्कि इस जंग में इमाम हुसैन का साथ देने के लिए छोटे-छोटे मासूम बच्चों ने भी अपनी शहादत पेश की। इस जंग में यजीद इब्ने मावईया ने इमाम हुसैन के परिवार पर ज़ुल्म किए थे।
मोहर्रम की 1 तारीख़ से गमें हुसैन मनाने का ये सिलसिला जारी है। वहीं, गुरुवार को हैदरगंज स्थित कर्बला मुंशी फज्ले हुसैन में इमाम हुसैन की बहन बीबी जैनब के दो मासूम बेटे हजरत औन व हजरत मुहम्मद का ग़म मनाया गया और शुक्रवार को कल इमाम हुसैन के सबसे छोटे बेटे हज़रत अली असगर की शहादत का गम मनाया गया। जो सिर्फ 6 महीने के ही थे। इस मौके पर अजादारों ने ताबूत मुबारक की जियारत कर रसूल की नवासी को आंसुओं का पुरसा पेश किया।
वहीं, आज 7 मोहर्रम को हर जगह इमाम हुसैन के भतीजे हज़रत कासिम का गम मनाया जा रहा है। इसमें मुख्य रूप से बड़े इमामबाड़ा से छोटा इमामबाड़ा तक शाही अंदाज में जुलूस निकाला जाता है। वहीं, नक्खास स्थित शाहगंज से जुलूस-ए-मेहंदी उठाया जाएगा। जुलूस के आयोजक राशिद रजा ने बताया कि अंजुमन शहीदे फुरात बादशाहे अवध और नवाब वाजिद अली शाह के लिखे हुए नौहे पढ़े जाएंगे। यह जुलूस करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। नूरबाड़ी, हुसैनाबाद, बंगला बाजार और कशमीरी मोहल्ला समेत शहर के कई इलाकों में भी मेहंदी का जुलूस बड़ी अकीदत के साथ निकाला जाएगा।
बताते चलें कि करबला की लडा़ई इतिहास कि वो लड़ाई है जो जिन्दगी के सभी पहलुओं की मार्ग दर्शक है। इस लड़ाई की बुनियाद उस वक़्त शुरू हुई जब हज से लौटते वक़्त ग़दीर के मैदान में हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा صلی اللہ علیہ و آلہ و سلم ने हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। जिसके बाद से हज़रत अली के दुश्मन उनके खलीफा बनने के खिलाफ हो गए थे।
बाद में जब मोहम्मद मुस्तफा देहान्त हो गया तो ये लोग इमाम अली अ० की खिलाफत के खिलाफ हो गए जिसके बाद से कई लडा़ईयाँ हुईं और फिर बाद में हज़रत अली अ० को भी शहीद कर दिया गया, उनके पश्चात हजरत इमाम हसन इब्न अली अ० खलीफा बनाया गया और उन्हें भी शहीद कर दिया गया। बाद में हज़रत इमाम हुसैन ने फिर कर्बला में अपने परिवार समेत कुर्बानी दी।