नई दिल्ली। वीगन भारत आंदोलन के तहेत सैंकड़ो पशु अधिकार कार्यकर्ताओ ने इकट्ठा होकर मंडी हाउस से जंतर मंतर तक जुलूस निकाला। इस यात्रा का मक्सद जनता में ‘वीगनिज़म’ की जागृति फैलाना और पशुओ के लिए न्याय मांगना था। उन्होंने नारे लगाए कि सभी जानवरों को भोजन, कपड़े, प्रयोग, मनोरंजन या किसी अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग, शोषण, दुष्प्रयोग और क्रूरता से मुक्त रहने का मूल अधिकार है।
इस घटना में “प्रजातिवाद” (speciesism) को संबोधित किया गया है। प्रजातिवाद एक तरह का भेदभाव है, जिसमें एक प्रजाति को नैतिक रूप से दूसरी प्रजाति से ज़्यादा महत्त्व दिया जाता है। इसलिए इस जुलूस में उन सभी जानवरों के लिए नारे लगाए गए जिन्हें इस ग्रह पर सबसे ज्यादा सताए जाते है। इनमे उन जानवरों को भी शामिल किया गया है जिनका इस्तेमाल करने के लिए अप्राकृतिक तरीके से उनकी जनसंख्या को बढ़ाया जाता है।
कार्यकर्ताओ ने लोगों को प्रजातिवाद के विषय में सोचने और पशुओं को अत्याचार से मुक्ति देने के लिए वीगन जीवनशैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। इस जीवनशैली में किसी भी पशु उत्पाद का उपयोग नही किया जाता है। जानवरों पर परीक्षण किए गए सौंदर्य प्रसाधन और अन्य उत्पादों का बहिष्कार, जानवर की चमड़ी और फर से बने कपड़ों और वस्तुओ को अस्वीकार, सर्कस या चिडियाघर नहीं जाना, खरीदने की बजाय बेसहारा-चोटिल जानवरों को गोद लेना, इस तरह पशु पर हो रहे सभी अत्याचार का बहिष्कार करते है।
प्रतिभागियों ने पूरे कार्यक्रम में पशु अधिकारों और स्वतंत्रता पर नारे लगाए, कई कार्यकर्ताओं ने पशुओ के मुखौटे भी पहन रखे थे। चंडीगढ़, भागलपुर, भोपाल, जम्मू और आगरा जैसे विभिन्न उत्तर भारतीय शहरों से दिल्ली के जुलूस में 400 से अधिक लोगों ने भाग लिया और इसे भारत में पशु मुक्ति आंदोलन के लिए प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं में से एक बना दिया। इस आयोजन में एक वीगन कार्यकर्ता संगीता एस बहल जो कि भारत की सबसे वरिष्ठ एवरेस्ट पर्वतारोही हैं,भी शामिल हुईं।
वीगन जन असल में वनस्पति-आधारित भोजन लेते है। वह मांस, अंडे, शहद और दुग्ध उत्पाद (डेयरी ) से दूर रहते है जिसमे पशुओं का उपयोग और शोषण किया जाता है। जो लोग मांस और दूध के लिए तरसते हैं उनके लिए बाजार में भरपूर वनस्पति-आधारित विकल्प उपलब्ध हैं। उन्होंने सरकार से मांग की कि सभी प्राणी को व्यक्तिपन दिया जाए, पशु अधिकार को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाय और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (1960) में सुधार लाया जाए।
“आज कल सभी लोगो का वीगन बनना संभव ही नहीं, आसान भी है, और जब मैंने अपने आप को पीड़ितों की जगह रखकर सोचा, तो मुझे ऐसा करने के लिए बाध्य होना पड़ा।“ कहा अमजोर, वेगन इंडिया मूवमेंट के एक आयोजक ने दिल्ली के साथ साथ बेंगलुरु, कोलकता और मुंबई में भी पशु अधिकार मार्च का आयोजन किया गया।