नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को पत्रकार अर्नब गोस्वामी और दो अन्य आरोपियों को पाचस—पचास हजार रुपये के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दे दी गयी है। यह जमानत एक इंटीरियर डिजाइन और उनकी मां को आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के मामले में मिली है। इसके साथ ही न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की अवकाश कालीन पीठ ने यह भी कहा कि वे रिहाई में देरी नहीं चाहते और जेल अधिकारियों को इसकी व्यवस्था करनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने अर्नब गोस्वामी, नितेश सारदा और प्रवीण राजेश सिंह को निर्देश दिया कि वे किसी भी साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे और मामले की जांच में सहयोग करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया जिसमें उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय के नौ नवंबर के आदेश को चुनौती दी थी।
अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ”हम देख रहे हैं कि एक के बाद एक ऐसा मामला है जिसमें उच्च न्यायालय जमानत नहीं दे रहे हैं और वे लोगों की स्वतंत्रता, निजी स्वतंत्रता की रक्षा करने में विफल हो रहे हैं।” न्यायालय ने राज्य सरकार से जानना चाहा कि क्या गोस्वामी को हिरासत में लेकर उनसे पूछताछ की कोई जरूरत थी क्योंकि यह व्यक्तिगत आजादी से संबंधित मामला है।
पीठ ने टिप्पणी की कि भारतीय लोकतंत्र असाधारण तरीके से लचीला है और महाराष्ट्र सरकार को इन सबको (टीवी पर अर्नब के ताने) नजरअंदाज करना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के 2018 के मामले में सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा।
न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं, तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय है। शीर्ष अदालत ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राज्य सरकारें कुछ लोगों को विचारधारा और मत भिन्नता के आधार पर निशाना बना रही हैं।