नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है। आम आदमी पार्टी लगभग 63 सीटें जीतती नजर आ रही है जबकि बीजेपी के हाथ सिर्फ 7 सीटें ही लग रही हैं। लेकिन कांग्रेस के खाते में एक बार फिर शून्य दिख रहा है। देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए यह काफी शर्मनाक है। जहां कांग्रेस कई सालों तक दिल्ली में सत्ता में रही वहीं लगातार दूसरी बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस का खाता तक न खुल सका।
1998 में शीला दिक्षित ने खड़ी की थी बुनियाद
साल 1998 में शीला दिक्षित के रूप में कांगेस को दिल्ली में एक बड़ा चेहरा मिला था। 1998 का चुनाव दिल्ली में कांग्रेस के उभार की शुरुआत थी। इन चुनाव में महंगाई एक प्रमुख मसला था और ऐसा कहा जाता है कि प्याज की महंगाई ने बीजेपी की सरकार गिरा दी थी। तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। शीला दीक्षित के नेत्रत्व में कांग्रेस ने वहां सरकार बनायी। वह पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। 70 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं। उसे करीब 48 फीसदी वोट मिले। सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली बीजेपी बुरी तरह चुनाव हार गई और उसे महज 15 सीटें मिलीं। बीजेपी को 34 फीसदी वोट मिले थे।
2003 में दोबारा सत्ता में आयी कांग्रेस
जहां 1998 में कांग्रेस ने 52 सीटें हाशिल की थी वहीं साल 2003 में कांग्रेस ने एकबार फिर से 47 सीटें जीतकर सरकार बना ली। हालांकि 5 साल तक सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस के पास कई चुनोतियां थी लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर जबरदस्त जीत मिली थी। दिसंबर 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 48.13 फीसदी वोट हासिल किए थे। दूसरे स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 20 सीटें और करीब 35 फीसदी वोट हासिल किए थे। एकबार फिर से शीला दिक्षित मुख्यमंत्री बन गयीं।
2008 में शीला दिक्षित के नेत्रत्व में कांग्रेस ने लगाई हैटिक्र
1989 से 2008 तक सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस ने साल 2008 के चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार जीत हाशिल की और अकेले दमपर सरकार बनाने में कामयाब रही। इस चुनाव में कांग्रेस को कुल 43 सीटें हासिल हुई थीं। वहीं कांग्रेस को करीब 40 फीसदी वोट भी मिले थे। वहीं शीला दिक्षित लगातार तीसरी बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी।
2013 में आप की हुई एंट्री तो पलट गयी बाजी
2013 के चुनाव से पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी का उदय हो चुका था और आप ने भी सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किये थे। इस चुनाव में कॉमनवेल्थ घोटाले की गूंज थी और अन्ना आंदोलन का भी असर था। सबसे बड़ी बात ये रही कि अन्ना आंदोलन से ही निकलकर आम आदमी पार्टी बनायी गयी थी जिसकी वजह से एकदम से माहौल बदल गया। हालांकि इस चुनाव मे किसी को बहुमत नही मिला। भारतीय जनता पार्टी को 31, आम आदमी पार्टी को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें मिलीं। कांग्रेस ने एकबार फिर दांव खेला और आम आदमी को समर्थन देकर सरकार बनवा दी लेकिन ये सरकार महज 49 दिन ही चल पायी और बाद में राष्ट्रपति शासन लग गया। इस चुनाव में कांग्रेस को 24 फीसदी वोट मिला था।
2015 में केजरीवाल की लहर, कांग्रेस रह गयी शून्य पर
दिल्ली विधानसभा चुनाव में साल 2015 कांग्रेस के लिए सबसे खराब प्रदर्शन वाले वर्षों में था। आम आदमी के उभार से विपक्ष के सारे किले ढह गए। राहुल और सोनिया गांधी ने काफी प्रयास किया लेकिन नतीजा शून्य रहा। इस चुनाव में मोदी लहर भी काम नही आयी और आप ने 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। हालांकि बीजेपी खाता खोलने में कामयाब रही लेकिन कांग्रेस का तो खाता भी न खुल सका। इस चुनाव में कांग्रेस के बड़े बड़े दिग्गज हार गये। इस चुनाव में कांग्रेस को महज 9.7 फीसदी वोट मिले थे।
2020 में कांग्रेस का फिर से नही खुला खाता
हालांकि साल 2020 के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक विशेषज्ञों ने कह दिया था कि कांग्रेस का दिल्ली में बुरा हाल होने वाला है लेकिन कांग्रेस को उम्मीद थी कि इस बार वो सत्ता में वापसी करेगी। लेकिन जब एग्जिट पोल आये तो महज 1 ही सीट मिलती नजर आ रही थी। सबसे हैरान करने वाली बात तब हुई जब नतीजो में कांग्रेस एक भी सीट हाशिल नही कर पायी। इस बार फिर 2015 की तरह केजरीवाल ने कांग्रेस के अरमानो पर पानी फेर दिया और लगभग 63 सीटें हाशिल करती नजर आ रही है।