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थानों में गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को नहीं मिल पा रही है प्रभावी कानूनी सहायता : Chief Justice NV Ramanna

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना (Chief Justice NV Ramanna) ने देशभर के थानों में मानवाधिकारों के हनन (human rights abuses) को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों के हनन और शारीरिक यातनाओं का सबसे ज्यादा खतरा थानों में है। चीफ जस्टिस ने कहा कि थानों में गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को प्रभावी कानूनी सहायता नहीं मिल पा रही है, जबकि इसकी बेहद जरूरत है।

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना (Chief Justice NV Ramanna) ने देशभर के थानों में मानवाधिकारों के हनन (Human Rights Abuses) को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों के हनन और शारीरिक यातनाओं का सबसे ज्यादा खतरा थानों में है। चीफ जस्टिस ने कहा कि थानों में गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को प्रभावी कानूनी सहायता नहीं मिल पा रही है, जबकि इसकी बेहद जरूरत है।

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चीफ जस्टिस रमन्ना रविवार को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण(नालसा)  ‘National Legal Services Authority (NALSA)’  के विजन व मिशन स्टेटमेंट और मोबाइल एप लॉन्च (mobile app launch) किया। इस मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि पुलिस की ज्यादतियों को रोकने के लिए कानूनी सहायता के संवैधानिक अधिकार और मुफ्त कानूनी सहायता (Free Legal Aid )सेवाओं की उपलब्धता के बारे में जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए इसका व्यापक प्रचार-प्रसार आवश्यक है।

थानों में मानवाधिकारों के उल्लंघन (Human Rights Violations) की स्थिति पर पर चिंता जताते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि हिरासत में यातना सहित अन्य पुलिस अत्याचार (police atrocities) ऐसी समस्याएं हैं, जो अभी भी हमारे समाज में व्याप्त हैं। संवैधानिक घोषणाओं और गारंटियों के बावजूद गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को प्रभावी कानूनी सहायता नहीं मिल पाती है, जो उनके लिए बेहद नुकसानदायक साबित होता है। उन्होंने कहा कि हाल की रिपोर्टों के अनुसार, विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के साथ भी थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया जाता है।

चीफ जस्टिस (Chief Justice) ने कहा कि नालसा को सहयोगात्मक प्रयास के जरिए यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि खराब कनेक्टिविटी, ग्रामीण और दूरदराज इलाकों में न्याय तक पहुंच में बाधा न बने। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए डाक विभाग (Post Office) की सेवाओं का भी उपयोग अच्छा विकल्प है। डाकघर और डाकिये शहर व गांव के बीच ‘डिजिटल डिवाइड’ को कम करने में सहायक होंगे। इसके जरिए दूरदराज के लोगों को कानूनी सहायता मिल सकेगी।

विज्ञान भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश व नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस यूयू ललित भी मौजूद थे। जस्टिस ललित ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया और विधि महाविद्यालयों को कानूनी सहायता के बारे में लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सभी विधि महाविद्यालयों को अपने आसपास के तालुकों में कानून सेवा के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए। इस मौके नालसा अधिकारियों ने इस नए एप की खूबियों के बारे में भी लोगों को अवगत कराया। इस अप के जरिए घर बैठे कानूनी मदद मांगी जा सकती है। इस ऐप से करीब 3000 कानूनी संगठन जुड़े हैं।

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नालसा के मुताबिक, मोबाइल एप के जरिए लाखों फरियादियों तक इस सेवा का पहुंचना सचमुच देश की न्यायिक सेवा में मील का पत्थर (Milestone) साबित होगा। लोग इस एप की सहायता से शीघ्र और सुनिश्चित कानूनी सेवा प्राप्त कर सकेंगे। इसके लिए कोई आपाधापी नहीं करनी होगी। कई छोटी-मोटी समस्याओं और सवालों के जवाब तो एप से ही मिल जाएंगे। इसके जरिए पीड़ित पक्ष मुआवजे के लिए खुद अर्जी भी दे सकते हैं।

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