लखनऊ। कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी के चार महीने बाद अपनी निंद्रा तोड़कर जागते हैं। माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की लंबी निद्रा के बाद जागते हैं। हिंदू परंपराओं के मुताबिक, इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम की शादी तुलसी से होती है।
इस दिन भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के साथ ही तुलसी की भी विशेष पूजा की जाती है। जो लोग पूरी विधि से तुलसी विवाह संपन्न कराते हैं, उनको वैवाहिक सुख मिलता है। आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी के दिन कैसे होती है तुलसी जी की पूजा।
कैसे होती है तुलसी जी की पूजा
- एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य को जल चढ़ाएं।
- जल के लोटे में में लाल फूल और चावल भी डालें, इस दौरान सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: ऊँ भास्कराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।
- भगवान विष्णु के साथ ही लक्ष्मी की भी पूजा करें।
- पूजा में सामान्य पूजन सामग्री के अतिरिक्त दक्षिणावर्ती शंख, कमल गट्टे, गोमती चक्र, पीली कौड़ी भी रखना चाहिए।
- सुबह स्नान के बाद तुलसी को जल जरूर चढ़ाना चाहिए।
- सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और उन्हें ओढ़नी यानी चुनरी पहनाएं।
- सुहाग का पूरा सामान तुलसी को चढ़ाएं।
- अगले दिन तुलसी को चढ़ाई सारी चीजें किसी गरीब सुहागिन को दान करें।
- सूर्यास्त के बाद तुलसी के पत्ते ना तोड़ें।
- अमावस्या, चतुर्दशी तिथि पर भी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए।
- अगर तुलसी के पत्तों की बहुत जरूरत है तो वर्जित की गई तिथियों से एक दिन पहले ही तुलसी के पत्ते तोड़कर रख सकते हैं।
- पूजा में चढ़े हुए तुलसी के पत्ते धोकर फिर से पूजा में उपयोग किए जा सकते हैं।