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इस साल 5% सिकुड़ेगी अर्थव्यवस्था, विकास को समर्थन देने के लिए राजकोषीय प्रोत्साहन पर्याप्त नहीं

एक अन्य वैश्विक रेटिंग एजेंसी ने केंद्र के प्रोत्साहन कार्यक्रम को ठुकरा दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में 5 प्रतिशत सिकुड़ जाएगी, जीडीपी का 1.2 प्रतिशत का राजकोषीय प्रोत्साहन महत्वपूर्ण विकास सहायता प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

By प्रीति कुमारी 
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इस lockdown में सेवा क्षेत्र, जो बड़े नियोक्ता हैं, बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जिससे व्यापक नौकरी का नुकसान हुआ है। प्रवासी श्रमिकों को भौगोलिक रूप से विस्थापित किया गया है, और हमे पता है की इस प्रक्रिया को खोलने में कुछ समय लगेगा। जिस कारन संक्रमण अवधि में राजकोषीय प्रोत्साहन पर्याप्त नहीं हो पायेगा। रेटिंग एजेंसी ने चालू वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था के 5 प्रतिशत सिकुड़ने का अनुमान लगाया है और कहा है कि 2021-22 में विकास दर 8.5 प्रतिशत हो जाएगी। इसने 2022-23 में विकास दर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था। 2019-20 में भारत की जीडीपी विकास दर 11 साल के निचले स्तर 4.2 प्रतिशत पर आ गई।

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केंद्रीय बैंक ने फरवरी से नीतिगत दरों में 115 आधार अंकों की कटौती की है, लेकिन नीतिगत कर्षण कम बना हुआ है क्योंकि बैंक ऋण देने को तैयार नहीं हैं। सकल घरेलू उत्पाद का 1.2 प्रतिशत मूल्य का नया प्रत्यक्ष राजकोषीय प्रोत्साहन महत्वपूर्ण विकास सहायता प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा  ऐसी कोई अर्थव्यवस्था नहीं है जो राजकोषीय नीति या मौद्रिक नीति के बिना चल सकती हो। पर बहस इस बात की है कि आर्थिक प्रबंधन के लिए दोनों में कौन सी नीति की भूमिका मुख्य होनी चाहिए। सरकारी निर्माण परियोजनाओं, जम कर टैक्स लगाने और आर्थिक जीवन में अन्य हस्तक्षेपों के ज़रिये माँग और रोज़गार बढ़ाने के पक्षधर राजकोषीय नीतियों के विवेकसम्मत इस्तेमाल को आर्थिक वृद्धि की चालक शक्ति मानते हैं। घाटे की अर्थव्यवस्था को यह विचार मुख्यतः कींसियन अर्थशास्त्र की देन है। यह रवैया राजकोषीय नीतियों को प्रमुखता प्रदान करता है।

कींसियन अर्थशास्त्र का बोलबाला होने से पहले मौद्रिक नीति के ज़रिये आर्थिक प्रबंधन करने का चलन था। साठ के दशक में पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएँ एक बार फिर मौद्रिक नीति को मुख्य उपकरण बनाने की तरफ़ झुकीं। उन्होंने कींसियन दृष्टिकोण की आलोचना की। मौद्रिक नीति के समर्थकों की मान्यता है कि टैक्स कम लगाने चाहिए और मौद्रिक नीति को सरकार के विवेक के भरोसे छोड़ने के बजाय कुछ निश्चित नियम-कानूनों के तहत चलाया जाना चाहिए। केवल इसी तरह से अर्थव्यवस्था का बेहतर प्रबंधन हो सकता है और राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखा जा सकता है। अर्थशास्त्र की भाषा में इस विचार को मौद्रिकवाद या मोनेटरिज़म की संज्ञा दी जाती है।

एसएंडपी ने पहले कहा था कि सरकार के प्रोत्साहन पैकेज, जीडीपी के 10 प्रतिशत की हेडलाइन राशि के साथ, प्रत्यक्ष प्रोत्साहन उपायों का लगभग 1.2 प्रतिशत है, जो महामारी से समान आर्थिक प्रभाव वाले देशों के सापेक्ष कम है। पैकेज के शेष 8.8 प्रतिशत में तरलता समर्थन उपाय और क्रेडिट गारंटी शामिल हैं जो सीधे विकास का समर्थन नहीं करेंगे।

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