लखनऊ। अवैध खनन घोटाले में सीबीआई की छापेमारी के बाद सुर्खियों में आई आईएएस अफसर बी चंद्रकला ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की है, जो अब वायरल हो गयी है। यूपी कैडर से 2008 बैच की आईएएस अधिकारी बी चंद्रकला सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय रहती हैं। उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि अधिकारी तो दूर कई मुख्यमंत्री भी उनसे पीछे हैं।
बी चंद्रकला ने सीबीआई की छापेमारी को चुनावी छापा बता दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर ‘रे रंगरेज़! तू रंग दे मुझको’ गाने की पंक्तियां लिखीं और अंत में लिखा कि, ‘चुनावी छापा तो पड़ता रहेगा, लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाय। दोस्तों आप सब से गुजारिश है कि मुसीबतें कैसी भी हों, जीवन की डोर को बेरंग ना छोड़ें।’
कविता के अंत में उन्होंने छापे को चुनावी हथकंडा बताते हुए जीवन जीने का तरीका भी समझाया है। उन्होंने लिखा है, “चुनावी छापा तो पड़ता रहेगा, लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाए दोस्तों, आप सब से गुजारिश है कि मुसीबतें कैसी भी हो, जीवन की डोर को बेरंग ना छोड़ें।”
बताते चलें कि अखिले सरकार में बी. चन्द्रकला आईएएस बनी थीं। इनकी पहली पोस्टिंग हमीरपुर जिले में जिलाधिकारी के पद पर की गई थी। आरोप है कि इन्होंने जुलाई 2012 के बाद हमीरपुर जिले में 50 मौरंग के खनन के पट्टे किए थे, जबकि ई-टेंडर के जरिए मौरंग के पट्टों पर स्वीकृति देने का प्रावधान था, लेकिन बी.चन्द्रकला ने सारे प्रावधानों की अनदेखी की थी।
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
फलक से रंग, या मुझे रंग दे जमीं से ,
रे रंगरेज़! तू रंग दे कहीं से ।।
छन-छन करती पायल से ,
जो फूटी हैं यौवन के स्वर ;
लाल से रंग मेरी होंठ की कलियाँ,
नयनों को रंग, जैसे चमके बिजुरिया,
गाल पे हो, ज्यों चाँदनी बिखरी ,
माथे पर फैली ऊषा-किरण ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
यहाँ से रंग, या मुझे रंग दे, वहीं से ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे, कहीं से ।।
कमर को रंग, जैसे, छलकी गगरिया ,
उर,,,उठी हो, जैसे चढ़ती उमिरिया ,
अंग-अंग रंग, जैसे, आसमान पर ,
घन उमर उठी हो बन, स्वर्ण नगरिया ।।
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको,
सांस-सांस रंग, सांस-सांस रख,
तुला बनी हो ज्यों , बाँके बिहरिया ,
रे रंगरेज़ ! तू रंग दे मुझको ।।
पग- रज ज्यों, गोधुली बिखरी हो,
छन-छन करती नुपूर बजी हो,
फाग के आग से उठती सरगम,
ज्यों मकरंद सी महक उड़ी हो ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको ,
खुदा सा रंग , या मुझे रंग दे हमीं से ,
रे रंगरेज़ तू रंग दे , कहीं से ।।
पलक हो, जैसे बावड़ी वीणा,
कपोल को चूमे, लट का नगीना,
तपती जमीं सा मन को रंग दे,
रोम-रोम तेरी चाहूँ पीना ।।
रे रंगरेज़ तू रंग दे मुझको,
बरस-बरस मैं चाहूँ जीना ।। :: बी चंद्रकला ,,आई ए एस ।।
,,चुनावी छापा तो पडता रहेगा ,,लेकिन जीवन के रंग को क्यों फीका किया जाय ,,दोस्तों ।
आप सब से गुजारिश है कि मुसीबते कैसी भी हो , जीवन की डोर को बेरंग ना छोडे ।।