कोरोना वायरस की रोकथाम को देशभर में लॉकडाउन लगाया गया। इस लॉकडाउन में सभी ने कई तरह की परेशानियां झेली हैं लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी हैं जो अच्छी हुई हैं। अब जहरीली कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के उत्सर्जन को ही देख लीजिए, पिछले 40 सालों में पहली बार यह कम हुआ है। इसके लिए लॉकडाउन के साथ-साथ आर्थिक मंदी भी जिम्मेदार है। इसकी वजह आर्थिक गतिविधियों पर लगी पाबंदियां हैं। यह बात सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी ऐंड क्लीन एयर (CREA) ने बताई है। यह अध्यन लौरी मायलाइवर्ता और सुनील दहिया ने मिलकर किया है।
पर्यावरण संबंधित एक वेबसाइट कार्बन ब्रीफ के आंकलन के अनुसार लॉकडाउन के कारण तमाम कारखाने तथा व्यवसाय बंद हैं और इस वजह से देश में नवीकरणीय ऊर्जा में प्रतिस्पर्धा और बिजली के गिरते उपयोग से जीवाश्म ईंधन की मांग कमजोर पड़ गई है। बता दें कि मार्च में कोरोनावायरस प्रेरित देशव्यापी लॉकडाउन की अचानक घोषणा के कारण पिछले चार दशकों में पहली बार भारत का कार्बन उत्सर्जन गिर गया है।
अध्ययन में पाया गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन मार्च में 15 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है और अप्रैल में इसमें 30 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
तेल, गैस और कोयले की खपत का अध्ययन करते हुए शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि मार्च में समाप्त होने वाले वित्त वर्ष में CO2 उत्सर्जन 30m टन तक गिर गया और यह चार दशकों में पहली वार्षिक गिरावट दर्ज हो सकती है।
सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (CREA) के विश्लेषकों ने कहा कि देश में कोयले की मांग पहले से ही कम है, वित्त वर्ष में मार्च के अंत में कोयले की डिलीवरी में 2 फीसदी की गिरावट आई है। ऐसा दो दशकों में पहली बार हुआ है। वहीं इस दौरान कोयले की बिक्री में 10% और आयात में 27.5% की गिरावट दर्ज की गई।
भारतीय राष्ट्रीय ग्रिड के दैनिक आंकड़ों के अनुसार मार्च के पहले तीन हफ्तों में कोयला आधारित बिजली उत्पादन मार्च में 15 फीसदी और 31 फीसदी नीचे था।
बता दें कि मार्च 2020 में साल-दर-साल तेल की खपत में 18 फीसदी की कमी आई थी। इस बीच नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति साल दर साल अधिक होती गई है। महामारी के बाद से उसमें इजाफा हुआ है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र का यह लचीलापन दर्शाता है कि कोरोनोवायरस की वजह से मांग में अचानक कमी भारत के लिए सीमित नहीं है।