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‘तिरंगा’ हमारी आन-बान और शान का है प्रतीक : जानें उस गुमनाम नायक के बारे में जिसने भारत को दिया राष्ट्रीय ध्वज

भारत इस साल आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav 2022) मना रहा है। इसके अंतर्गत हर घर तिरंगा अभियान (Har Ghar Tiranga Campaign )चलाया जा रहा है। इस अभियान के जरिए भारत के लगभग 150 करोड़ लोगों को राष्ट्रीय ध्वज (National Flag ) की महिमा और आजादी के आन्दोलन की याद दिलाई जा रही है।

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। भारत इस साल आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav 2022) मना रहा है। इसके अंतर्गत हर घर तिरंगा अभियान (Har Ghar Tiranga Campaign )चलाया जा रहा है। इस अभियान के जरिए भारत के लगभग 150 करोड़ लोगों को राष्ट्रीय ध्वज (National Flag ) की महिमा और आजादी के आन्दोलन की याद दिलाई जा रही है। इसके बाद यह तो लाजिमी है कि हम उस महान शख्शियत को भी याद कर लें ,जिसके डिजाइन पर आज हमारी आन-बान और शान का प्रतीक हमारा राष्ट्रीय ध्वज ‘‘तिरंगा’’ दुनिया के सामने बड़े गर्व से लहरा रहा है।

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बता दें कि स्वाधीनता आन्दोलन में पिंगली वेंकय्या (Pingali Venkayya) ने राष्ट्रीय ध्वज (National Flag )  का डिजाइन किया था। ऐसा कर उन्होंने भारत को यह विशिष्ट पहचान दी। इसलिए राष्ट्र हमेशा उनका ऋणी रहेगा। हमें अब नेता, अभिनेता और क्रिकेट खिलाड़ी तो याद रहते हैं, मगर वे याद नहीं रहते जिनकी बदौलत हम आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहे हैं।

जानें ‘तिरंगा’ के वास्तुशिल्पी के बारे में

भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू (Vice President of India M. Venkaiah Naidu) ने एक बार कहा था कि वेंकय्या हमारे स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक थे, जिन्होंने बहुत बड़ा योगदान दिया। उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया और भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिए अथक प्रयास किया।

 पिंगली वेंकय्या कट्टर गांधीवादी, शिक्षाविद, कृषक, भूविज्ञानी, भाषाविद् और लेखक थे

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राष्ट्र ध्वज (National Flag ) के वास्तुशिल्पी पिंगली वेंकय्या (Pingali Venkayya)  का जन्म 2 अगस्त, 1876 को हुआ था। उनका पालन-पोषण एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के पास भाटलापेनुमरु में पिता हनुमंतरायडू और माता वेंकटरातनमा के यहां हुआ था। मद्रास में अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह स्नातक की पढ़ाई करने के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Cambridge University)चले गए। उन्हें भूविज्ञान और कृषि का शौक था। वह न केवल एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि एक कट्टर गांधीवादी, शिक्षाविद, कृषक, भूविज्ञानी, भाषाविद् और लेखक थे।

गांधी जी को 24 में से यही डिजाइन पसंद आया था 

वास्तव में पिंगली वेंकय्या (Pingali Venkayya)  एक उत्साही ध्वज उत्साही थे, जिन्होंने 1916 में ‘भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज’ नामक एक पुस्तिका प्रकाशित की जिसमें उन्होंने ध्वज के 24 डिजाइन प्रस्तुत किए थे। 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान पिंगली वेंकय्या ने स्वराज ध्वज के रूप में जाना जाने वाला एक ध्वज डिजाइन गांधी जी के समक्ष पेश किया। वही डिजाइन अब भारत के वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज का आधार बना है। शुरू में इसमें देश के दो प्रमुख समुदायों- हिंदू और मुस्लिम का प्रतीक करने के लिए लाल और हरे रंग की पट्टियां शामिल थीं।

महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की सलाह पर, पिंगली वेंकय्या (Pingali Venkayya)  ने खादी बंटिंग पर चरखा डिजाइन के साथ हरे रंग के ऊपर लाल रंग के ऊपर एक सफेद बैंड जोड़ा। सफेद रंग शांति और भारत में रहने वाले बाकी समुदायों का प्रतिनिधित्व करता था, और चरखा देश की प्रगति का प्रतीक था। उनके डिजाइन ने भारत और उसके लोगों को एक पहचान दी थी।

स्वतंत्रता संग्राम (Freedom Struggle) के दिनों में, ध्वज ने एकजुट होने और स्वतंत्रता की भावना को जन्म देने में मदद की। हालाँकि पहले तिरंगे को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (All India Congress Committee) द्वारा आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था, लेकिन इसे सभी कांग्रेस अवसरों पर फहराया जाने लगा।
1931 में कांग्रेस ने तिरंगे को मान्यता दी

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गांधीजी की स्वीकृति ने इस ध्वज को काफी लोकप्रिय बना दिया था और यह 1931 तक उपयोग में था। वर्ष 1931 ध्वज के इतिहास में एक यादगार मोड़ आया। हालांकि रंगों को लेकर ध्वज ने सांप्रदायिक चिंताएं बढ़ा दी थीं, जिसके बाद 1931 में एक ध्वज समिति का गठन किया गया।

समिति के सुझाव पर कांग्रेस कार्य समिति बदलाव के साथ एक नया तिरंगा लेकर आई थी जिसे पूर्ण स्वाराज कहा गया। उसी वर्ष तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया।

संशोधित झंडे को लाल रंग के स्थान पर केसरिया से बदल दिया गया था, सफेद पट्टी को बीच में स्थानांतरित कर दिया गया था, केंद्र में सफेद पट्टी में चरखा जोड़ दिया गया, जिसका अभिप्राय था कि रंग गुणों के लिए खड़े थे, न कि समुदायों के लिए, साहस और बलिदान के लिए केसरिया, सत्य और शांति के लिए सफेद, और विश्वास और ताकत के लिए हरा। गांधी जी का चरखा जनता के कल्याण का प्रतीक माना गया।

संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को अपनाया तिरंगा

समय के साथ हमारे राष्ट्रीय ध्वज में भी कई बदलाव हुए हैं। आज जो तिरंगा हमारा राष्ट्रीय ध्वज है, उसका यह छठवां रूप है। इसे इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया था, जो 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पहले ही आयोजित की गई थी। इसे 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 के बीच भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया और इसके पश्चात भारतीय गणतंत्र ने इसे अपनाया।

स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्व बना रहा। केवल ध्वज में चलते हुए चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के धर्म चक्र को दिखाया गया। अशोक चक्र की 24 तीलियां या स्पोक बताती हैं कि गति में जीवन है और गति में मृत्यु है। इस प्रकार कांग्रेस पार्टी का तिरंगा ध्वज अंततः स्वतंत्र भारत का तिरंगा ध्वज बना।

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भारत के मूल्यों और विचारों का प्रतिनिधित्व करता है तिरंगा

हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा (National Flag Tiranga)भारत के मूल्यों और विचारों का प्रतिनिधित्व भी करता है। भारत के तिरंगे का एक गूढ़ अर्थ है जो परिभाषित करता है कि देश अपने जीवन मूल्यों को क्या मानता है और इसके लिए प्रयास करता है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज देश के लिए सम्मान, देशभक्ति और स्वतंत्रता का प्रतीक है। यह भाषा, संस्कृति, धर्म, वर्ग आदि में अंतर के बावजूद भारत के लोगों की एकता का प्रतिनिधित्व करता है।

हमारा राष्ट्रीय ध्वज जोकि लगभग आधा दर्जन पड़ावों के बाद आज दुनिया के सामने भारत की आन-बान और शान के रूप में लहरा रहा है, वह स्वाधीनता आन्दोलन में भारत की आजादी के आन्दोलन में उत्प्रेरक का काम करता था। इस ध्वज को लेकर हमारे आन्दोलनकारी भारत की आजादी के लिए मर मिटने को तैयार रहते थे।

तिरंगे के जन्मदाता का ऋणी रहेगा राष्ट्र

पिंगली वेंकय्या को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए मरणोपरांत 2009 में एक डाक टिकट से सम्मानित किया गया था। 2014 में उनका नाम भारत रत्न के लिए भी प्रस्तावित किया गया। पिंगली वेंकय्या ने 4 जुलाई, 1963 को अंतिम सांस ली। अपनी मृत्यु के दिनों में भी, वे एक निःस्वार्थ कुलपति थे, जिन्होंने अपने शरीर पर ध्वज को ढकने की मांग की थी। उन्हें हमारे महान राष्ट्र की सभी जीत में याद किया जाएगा।

पहले हर कोई नहीं फहरा सकता था तिरंगा

सन् 2002 तक राष्ट्र ध्वज के प्रोटोकॉल के तहत उस फहराने के लिये कुठ बंदिशें थीं और उसे हर कोई या हर जगह नहीं फहराया जा सकता था। तब तक, 26 जनवरी, 15 अगस्त और 2 अक्टूबर जैसे विशेष अवसरों के अलावा, निजी नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति नहीं थी। लेकिन यह मुद्दा उस समय चर्चा में आया जब उद्योगपति नवीन जिंदल ने फरवरी 1995 में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर कर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के संबंध में अधिकारियों द्वारा उन पर लगाई गई रोक को चुनौती दी।

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15 जनवरी, 2002 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने डॉ. पी.डी. शेनॉय समिति ने इस मामले को देखने के लिए गठित किया था और घोषणा की कि नागरिक 26 जनवरी 2002 से वर्ष के सभी दिनों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए स्वतंत्र होंगे।

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