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जर्नल ‘द लैंसेट’ ने बताया मोदी सरकार अपनी गलत नीतियों से हुई ‘फेल’, ऐसे जीतेंगे कोरोना से जंग

देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इस महामारी ​से निपटने में अब विदेशों भी खुलकर मोदी सरकार के कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसके पीछे प्रमुख वजह यह है कि भारत में उत्पन्न हुए हालातों के कारण अब दूसरे देशों में भी खतरा बढ़ रहा है। विदेशों में भी वैज्ञानिक और शोधकर्ता ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि हालात इतने बदतर कैसे हो गये?

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। देश में कोरोना की दूसरी लहर का कहर कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इस महामारी ​से निपटने में अब विदेशों भी खुलकर मोदी सरकार के कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसके पीछे प्रमुख वजह यह है कि भारत में उत्पन्न हुए हालातों के कारण अब दूसरे देशों में भी खतरा बढ़ रहा है। विदेशों में भी वैज्ञानिक और शोधकर्ता ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि हालात इतने बदतर कैसे हो गये?

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जर्नल ‘द लैंसेट’ के संपादकीय में खुले तौर पर इस स्थिति का जिम्मेवार प्रधानमंत्री मोदी और भारत की सरकार को बताया है। इसके संपादकीय में ये भी बताया गया है कि अब इस स्थिति से उबरने के लिए क्या प्रयास किये जाने चाहिए? इसमें कहा गया है कि भारत के लोग जिन हालातों से गुजर रहे हैं उन्हें समझना बेहद मुश्किल है। साथ ही कहा गया है कि जो मौत के आंकड़े सामने आ रहे हैं वे असर से कहीं ज्यादा हैं। भारत की स्थिति के बारे में कहा गया है कि वहां के अस्पतालों में मरीजों के लिए जगह नहीं है। साथ ही स्वास्थ्यकर्मी परेशान हो रहे हैं। हालत ये है कि लोग सोशल मीडिया पर डॉक्टर, मेडिकल, ऑक्सिजन, अस्पतालों में बेड और दूसरी जरूरतों के लिए परेशान हो रहे हैं।

कोरोना को लेकर निश्चिंत हुई सरकार

अध्‍ययन में कहा गया है कि कोरोना से रिकवर होने के बाद भी मरीज लंबे समय तक इसके प्रभाव से परेशान हो रहे हैं। कोरोना के बाद लोगों को काफी थकान महसूस हो रहा है। भारत में तो अब बच्‍चों को कोरोना के कारण परेशानियां होनी शुरू हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की ओर से ऐसा दिखाई दिया कि भारत ने कई महीनों तक कम केस आने के बाद महामारी को हरा दिया है। जबकि नए स्ट्रेन्स के कारण दूसरी वेव की लगातार चेतावनी दी जा रही थी। लोग कोरोना को लेकर निश्चिंत हो गए और तैयारियां अपर्याप्त रह गईं। लेकिन जनवरी में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सीरोसर्वे में पता चला कि सिर्फ 21 फीसदी आबादी में SARS-CoV-2 के खिलाफ ऐंटीबॉडीज थीं।

नरेंद्र मोदी सरकार का ध्यान ट्विटर से आलोचना हटाने पर ज्यादा था

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संपादकीय में सरकार और पीएम मोदी पर तंज कसते हुए कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार का ध्यान ट्विटर से आलोचना हटाने पर ज्यादा था। महामारी नियंत्रित करने पर कम। सुपरस्प्रेडर इवेंट की चेतावनी के बावजूद धार्मिक त्योहारों और राजनीतिक रैलियों की इजाजत देकर लाखों लोगों को इकट्ठा किया गया। भारत के वैक्सीनेशन कैंपेन पर भी इसका असर दिखा। सरकार ने बिना राज्यों के साथ चर्चा किए 18 साल की उम्र से ज्यादा के लोगों के लिए वैक्सीन का ऐलान कर दिया है, जिससे सप्लाई खत्म होने लगी और लोग कन्फ्यूज हो गए।

संपादकीय में कहा गया कि  वैक्सीनेशन से रूकेगा ट्रांसमिशन

संपादकीय में कहा गया है कि भारत को अब दो तरह की रणनीति पर कार्य करना होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैक्सीनेशन कैंपेन को भारत में काफी तेजी से बढ़ाने की जरूरत है। वैक्सीन की सप्लाई तेज करनी होगी और ऐसा वितरण कैंपेन हो जिससे शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाके के नागरिकों को कवर किया जा सकेगा। दूसरा, SARS-CoV-2 ट्रांसमिशन को रोकना होगा। इसके लिए भी वहीं सरकार को सटीक डेटा समय पर देना होगा। लोगों को बताना होगा कि क्या हो रहा है और महामारी को खत्म करने के लिए क्या करना होगा। लॉकडाउन की संभावना भी साफ करनी होगी।

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