नई दिल्ली। महाराष्ट्र में सियासी संघर्ष पर विराम लगाने के लिए बहुमत परीक्षण एक विकल्प हो सकता है। कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना लगातार कह रही हैं कि उनके पास सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत है। फडणवीस सरकार अल्पमत में हैं। शनिवार को सभी को चौंकाते हुए देवेंद्र फडणवीस ने दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। वहीं भाजपा की विरोधी पार्टी एनसीपी के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे पर उच्चतम न्यायालय ने सुनवाई पूरी कर ली है। वह अपना फैसला मंगलवार की सुबह सुनाएगा।
इसी बीच हम आपको याद दिलाते हैं 21-22 फरवरी 1998 की वो घटना जब उत्तर प्रदेश में इसी तरह की स्थिति बनी थी और शीर्ष अदालत ने बहुमत परीक्षण कराने का आदेश दिया था। उस समय राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था और कांग्रेस नेता जगदंबिका पाल को उनकी जगह मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था।
1998 में जगदंबिका पाल वर्सेज भारतीय संघ और अन्य मामले में उच्चतम न्यायालय ने बहुमत परीक्षण का आदेश दिया। जिसमें कल्याण सिंह के समर्थन में 225 और जगदंबिका पाल को 196 वोट मिले। स्पीकर के आचरण की बहुत आलोचना हुई थी क्योंकि उन्होंने 12 सदस्यों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य ठहराए जाने के मामले में दिए अपने फैसले को रद्द कर दिया था।
हालांकि जब 12 सदस्यों ने कल्याण सिंह के समर्थन में वोट किया और उनके वोटो को अंत में उन्हें घटाया गया तब भी सिंह के पास सदन में पूर्ण बहुमत था। इससे पहले कल्याण सिंह के बहुमत परीक्षण के ऑफर को राज्यपाल ने पहले खारिज कर दिया था। हालांकि वह दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री बने।
राज्यपाल के पास है यह विशेषाधिकार
यदि एक से ज्यादा लोग सरकार बनाने का दावा करते हैं और बहुमत स्पष्ट नहीं होता है तो राज्यपाल यह देखने के लिए एक विशेष सत्र बुला सकते हैं। ताकि यह देखा जा सके कि किसके पास बहुमत है। कुछ विधायक अनुपस्थित हो सकते हैं या वोट न देना स्वीकार कर सकते हैं।