कोरोना संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले कारोबार में पोल्ट्री (मुर्गी पालन) भी शामिल है,कोरोना वायरस के मामले सामने आते ही इस कारोबार को अफवाहों के चलते नुकसान उठाना पड़ा था,वहीं लॉकडाउन लागू होने से रही सही कसर भी पूरी हो गई,कभी दावतों की शान समझे जाने वाले चिकन को आजकल ढूंढने से भी ग्राहक नहीं मिल रहे है,पोल्ट्री कारोबार करने वाले लोगों के फार्मों पर हजारों की तादात में मुर्गियां मौजूद हैं,लेकिन लॉकडाउन के चलते इन्हें बाजार तक पहुंचाना संभव नहीं हो पा रहा है,ऐसे में इनके दाना-पानी में जहां हर रोज हजारों रुपये खर्च हो रहे हैं तो वहीं इनके मरने का भी खतरा पैदा हो रहा है।
जिले के छजलैट थाना क्षेत्र स्थित पोल्ट्री फार्म को 10 साल पहले शुरू किया गया था,यहां से हर रोज बड़े पैमाने पर मुरादाबाद और आसपास के जनपदों में मुर्गियों को सप्लाई किया जाता है,लेकिन कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन ने अब इस कारोबार की कमर तोड़ दी है. कोरोना वायरस के मामले सामने आने से पहले इन फार्मों से मुर्गियों को 100 रुपये किलो तक बेचा जाता था,लेकिन अब 30 रुपये किलो कीमत होने के बावजूद भी ग्राहक नजर नहीं आ रहे हैं,एक ओर जहां लॉकडाउन के चलते मीट की दुकानें बंद हैं तो वहीं लोग भी नॉनवेज से दूरी बनाकर रहे हैं. बिक्री न होने से कारोबारी परेशान हैं. वहीं इन फर्मों पर हर रोज होने वाला खर्चा भी बढ़ गया है,कारोबारियों के मुताबिक मुर्गियों के लिए आने वाला दाना महंगा हो गया है,जिससे आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है,पोल्ट्री फार्म को चलाने वाले कारोबारी सलमान बताते हैं कि कोरोना के मामले सामने आते ही मुर्गियों से वायरस फैलने की अफवाह से कारोबार को नुकसान उठाना पड़ा. हालात संभलने से पहले ही लॉकडाउन शुरू हो गया, जिससे ज्यादा मुश्किलें पैदा हो गईं।
मुर्गी फार्मों में ब्राइलर मुर्गियों की उम्र साठ से पैंसठ दिन होती है,ऐसे में कई फार्मों में मुर्गियां अपनी उम्र पूरी करने के कगार पर हैं,बिक्री न होने से जहां इनके खाने पर ज्यादा खर्चा हो रहा है तो वहीं इनके मरने की आशंका से कारोबारी चिंतित नजर आ रहे हैं,कई कारोबारी लॉकडाउन बढ़ने की आशंका के चलते अपने फॉर्म बंद करने के विकल्प पर भी विचार कर रहे हैं,ग्रामीण क्षेत्रों में मुर्गी पालन को किसानों के लिए सहायक कारोबार माना जाता है और आम दिनों में यह कारोबार फायदा भी पहुंचाता है,कोरोना के चलते मुर्गी पालन कारोबार बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है और इसका असर काफी लंबे समय तक नजर आएगा।
रिपोर्ट:-रूपक त्यागी