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एक हजार अश्वमेध यज्ञ व पृथ्वी की एक लाख परिक्रमा के बराबर है कुंभ स्नान

By शिव मौर्या 
Updated Date

हरिद्वार। धरती पर होने वाला कुंभ स्नान पुराणों की रचना से भी प्राचीन है। मंथन और अमृत कलश का घटनाकाल पुराना है। पुराणों का लेखन बाद में हुआ। तभी सभी 18 पुराणों में कुंभ की महिमा का गान है। सृष्टि के रचयिता विष्णु की आराधना में रचित विष्णु पुराण तो कुंभ की महानता और पुण्य से भरा पड़ा है। वेद सबसे प्राचीन है। सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा मुख से उनका गान हुआ है। अमृत कुंभ का वर्णन ऋग्वेद में भी है।

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वैदिक सोम से भरे अमृत कलश से मानवमात्र के कल्याण की कामना की गई है। विष्णु पुराण के एक श्लोक के अनुसार एक सौ वाजपेय यज्ञ, एक हजार अश्वमेध यज्ञ व पृथ्वी की एक लाख परिक्रमाओं के बराबर कुंभ का एक स्नान है। सौ माघ स्नान, एक हजार कार्तिक स्नान और नर्मदा में एक करोड़ वैशाख स्नान के बराबर पुण्य कुंभ महापर्व के एक स्नान से मिल जाता है।

विष्णुयाग में लिखा है कि जो लोग हरिद्वार कुंभ नगर में निवास कर स्नान करते हैं, वे संसार बंधन से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होते हैं। वायु पुराण के अनुसार कुंभ में गंगा तट पर जप, तप, यज्ञ और श्राद्ध करने से तमाम जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। स्कंद पुराण के केदारखंड, कूर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, वराह पुराण और वामन पुराण में कुंभ के अमृत स्नान की महिमा गाई गई है।

वहीं कुंभ के शाही और पर्व स्नान पर यदि हरिद्वार-दिल्ली हाईवे पर जाम की स्थिति बनी तो हिल बाईपास को वाहनों के आवागमन के लिए खोल दिया जाएगा। बता दें कि मेला प्रशासन ने एक करोड़ 70 लाख रुपये से हिल बाईपास को तैयार किया है। दो साल पहले पहाड़ दरकने से हिल बाईपास पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था।

 

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