नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट समेत कई पाबंदियों के खिलाफ दायर याचिका पर सुनावाई करते हुए फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू कश्मीर सरकार एक सप्ताह के भीतर सभी प्रतिबंधात्मक आदेशों की समीक्षा करे। शीर्ष अदालत ने कहा कि कश्मीर में हिंसा का लंबा इतिहास रहा है। हमें स्वतंत्रता और सुरक्षा में संतुलन बनाए रखना होगा। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी जरूरी है।
अनिश्चितकाल के लिए बंद इंटरनेट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा इंटरनेट को जरूरत पड़ने पर ही बंद किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का अंग है। इंटरनेट इस्तेमाल की स्वतंत्रता भी आर्टिकल 19 (1) का हिस्सा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि धारा 144 का इस्तेमाल किसी के विचारों को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता। बता दें कि, न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और अन्य की याचिकाओं पर पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी।
गौरतलब है कि पांच अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 खत्म करने के बाद से पूरे प्रदेश में इंटरनेट सेवाए बंद हैं। ब्रॉडबैंड के जरिए ही घाटी के लोगों का इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन हो पा रहा है। सरकार ने लैंडलाइन फोन और पोस्टपेड मोबाइल पर लगी पाबंदियों को कुछ दिन के बाद बहाल कर दिया गया था। जम्मू कश्मीर में इंटरनेट पर जारी पाबंदियों को लेकर संसद के दोनों सदनों में भी शीतकालीन सत्र में काफी हंगामा हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की 10 बड़ी बातें
-लोगों को असहमति जताने का पूरा अधिकार
-सरकार अपने सभी आदेशों की 1 हफ्ते में समीक्षा करें
-सरकार कश्मीर में अपने गैरजरूरी आदेश वापस ले
-बैन से सभी जुड़े आदेशों को सरकार सार्वजनिक करें
-आदेशों की बीच-बीच में समीक्षा की जानी चाहिए
-बिना वजह इंटरनेट पर बैन नहीं लगाया जा सकता
-इंटरनेट बैन पर सरकार को विचार करना चाहिए
-इंटरनेट पर पूरा बैन सख्त कदम, जरूरी होने पर लगे
-सभी जरूरी सेवाओं में इंटरनेट को बहाल किया जाए
-चिकित्सा जैसी सभी जरूरी सेवाओं में कोई बाधा न आए