लखनऊ। बसपा सरकार में जेपी ग्रुप को 409 करोड़ रुपये मूल्य की 1083 हेक्टेयर वन भूमि देने में जमकर खेल हुआ। वन विभाग के अफसरों ने जेपी ग्रुप को लाभ पहुंचाने के लिए अपने हिसाब से नियमों को तोड़ा और मरोड़ा। कम्पनी को लाभ पहुंचाने के लिए जमीन को धारा चार से अलग कर दिया गया। अपर मुख्य सचिव राजस्व रेणुका कुमार की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। अब तत्कालीन प्रमुख सचिव वन समेत कई अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है।
जेपी ग्रुप को जमीन देने का पूरा मामला डाला-चुर्क सीमेंट की स्थापना से जुड़ा है। इसकी स्थापना वर्ष 1954 में हुई। इसे वर्ष 1972 में उत्तर प्रदेश सीमेंट कार्पोरेशन लिमिटेड ने ले लिया। यूपीसीसीएल भी जब इसे चला न पाई तो यह वर्ष 1995 में बंद हो गई। इसके आसपास की जमीन वन विभाग की है। यह जमीन वर्ष 2005 में जेपी ग्रुप को दी गई। वन विभाग ने इस पर ऐतराज नहीं जताया।
वन विभाग की जमीन नियमत: हरित क्षेत्र की मानी जाती है और इसे किसी को दिया नहीं जा सकता है। इस जमीन को देने के लिए केंद्र सरकार को अनुमति लेनी होती है और इतनी ही जमीन पर पौधारोपण कराना होता है। वन विभाग के अधिकारियों ने इससे बचने के लिए बीच का रास्ता अपना। इस जमीन को धारा चार से पृथक यानी अलग दिखा दिया गया। जिससे इस जमीन को गैर हरित क्षेत्र की मान लिया गया। इसके चलते न तो केंद्र सरकार से इस जमीन को देने के लिए अनुमति नहीं लेनी पड़ी और न ही पौधरोपण की अनिवार्यता रही।
अपर मुख्य सचिव राजस्व रेणुका कुमार की रिपोर्ट पर जल्द ही वन विभाग के कई अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है। जेपी ग्रुप को दी गई जमीन की कुल कीमत करीब 409 करोड़ रुपये बताई गई है। जेपी ग्रुप को जमीन देने का यह सारा खेल तत्कालीन बसपा सरकार में खेल गया। रिपोर्ट में उस समय के प्रमुख सचिव वन की भूमिका संदेह के घेरे में है। इसके अलावा वन विभाग के कई अधिकारियों पर मिलीभगत का इशारा किया गया है। अब जल्द ही वन विभाग के कई अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है।