लखनऊ: वाल्मीकि जयंती का पर्व 31 अक्टूबर, शनिवार के दिन मनाया जा रहा है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार वाल्मीकि जयंती हर साल आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। शास्त्रों की मानें तो महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षिणी के यहां हुआ था।
इनके ज्येष्ठ भाई का नाम भृगु ऋषि था। महर्षि वाल्मीकि ने ही रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की। इस लेख के माध्यम से जानते हैं वाल्मीकि जयंती का शुभ महूर्त, मनाने की विधि और इस पर्व का महत्व।
पूर्णिमा तिथि आरंभ – 30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 47 मिनट से। पूर्णिमा तिथि समाप्त- 31 अक्टूबर को रात 8 बजकर 21 मिनट पर।
वाल्मीकि जयंती के शुभ दिन पर देश के विभिन्न मंदिरों में उनका पूजन तथा आरती की जाती है। इस दिन शोभा यात्रा निकालने की भी परंपरा है। साल 2020 में कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण वाल्मीकि जयंती की धूम कम रहने की ही संभावना है। वाल्मीकि जयंती के दिन उनके द्वारा रचित रामायण का पाठ करना शुभ होता है।
प्रचलित कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक बार महर्षि वाल्मीकि ध्यान में डूबे हुए थे। तब उनके शरीर में दीमक चढ़ गई। साधना के पूर्ण होने के पश्चात् महर्षि वाल्मीकि ने दीमकों को हटाया था। दीमकों के घर को वाल्मीकि कहा जाता है। ऐसे में इन्हें भी वाल्मीकि पुकारा जाने लगा। वाल्मीकि को रत्नाकर के नाम से भी जानते हैं।