नई दिल्ली: देश में कोरोना के मामलों की संख्या आज 10 हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। कुछ जगह पर लाकडाउन के चलते मामले सामने आने की फ्रीक्वेंसी घटी है। ऐसे में ये कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद हम कोरोना को काबू करने की दिशा में बढ़ रहे हैं। हालांकि, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के नेतृत्व में कोरोना वायरस पर ट्रायल करने वाली स्टीयरिंग कमेटी के एक्जीक्यूटिव ग्रुप के सदस्य के.श्रीनाथ रेड्डी की राय इससे अलग है। जानकारी के अनुसार वह PHFI के प्रमुख हैं। उन्होंने ये जरूर कहा कि हमने कोरोना वायरस कर्व को ऊपर जाने के रेट में जरूर कमी लाई है। मगर उनका कहना है कि वायरस से इन्फेक्ट होने, क्लिनिक तक पहुंचने और डायग्नोसिस में देरी के चलते, अप्रैल के आखिरी दिनों में इस वायरस के मामले सबसे ज्यादा होंगे।
कोरोना महामारी को लेकर रेड्डी ने कहा कि कोरोना वायरस से प्रभावित हर देश ने कम्युनिटी ट्रांसमिशन का दौर देखा है। हम इसके प्रभाव को कम से कम करने की कोशिश कर सकते हैं। अभी हालात कम्युनिटी ट्रांसमिशन वाले हैं या नहीं, ये मल्टीपल डेटा सोर्सेज से मिली इन्फॉर्मेशन के एनालिसिस के बाद ही तय हो सकता है। हेल्थ मिनिस्ट्री ये सब जानकारी जुटाकर एनालिसिस कर रही है।
PHFI चीफ के.श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि लॉकडाउन कोरोना ट्रांसमिशन की गति धीमी करने में मददगार साबित हुआ है। लेकिन सिर्फ लोकडाउन से वायरस की चैन नहीं टूट सकती। विस्तार में जाकनरी देते हुए रेड्डी ने कहा कि जब एक नस्ल से दूसरी नस्ल में वायरस जाता है तो वो म्यूटेट होता है। भारत में वायरस स्ट्रेन के सरफेस पर छोटे से स्ट्रक्चरल बदलाव जरूर मालूम पड़ते हैं मगर इसके सबूत नहीं है कि इससे वायरस का जहरीलापन कम हुआ है। हमें इसका पता इन्फेक्टेड व्यक्तियों और मौतों से जुड़ा और डेटा मिलने पर लगेगा। उन्होंने कहा कि अभी तक WHO और ICMR यही मानते हैं कि भारत में इस वायरस ने अपना व्यवहार नहीं बदला है।