नोएडा के सेक्टर 93ए में स्थित ट्विन टावर को आज ढहा दिया जाएगा। कुछ ही सेकेंड में आसमान छूटी ये दोनों इमारतें जमींदोज हो जाएंगी। देशभर के लोग इस पर निगाहें जमाए हुए हैं। इसके साथ ही सुरक्षा के भी व्यापाक इंतजाम किया गया है।
Twin tower case: नोएडा के सेक्टर 93ए में स्थित ट्विन टावर को आज ढहा दिया जाएगा। कुछ ही सेकेंड में आसमान छूटी ये दोनों इमारतें जमींदोज हो जाएंगी। देशभर के लोग इस पर निगाहें जमाए हुए हैं। इसके साथ ही सुरक्षा के भी व्यापाक इंतजाम किया गया है। ऐसे में अब लोगों के मन में सवाल कौंध रहा है कि क्या आप जानते हैं कि अरबों की लागत से बने इस ट्विन टावर को क्यों ध्वस्त किया जा रहा है? हम आपको आज बताने जा रहे हैं कि आखिर इस टॉवर को क्यों ध्वस्त किया जा रहा है?
10 साल तक लड़ी कानूनी लड़ाई
बता दें कि, रविवार को दोपहर ढाई बजे ट्विन टावर जमींदोज हो जाएगा। ट्विन टॉवर के जमींदोज होते ही सैकड़ों फ्लैट खरीदारों की जीत होगी। दरअसल, सैकड़ों खरीदारों ने चंदा लगाकर करीब 10 साल कानूनी लड़ाई लड़ी थी। वहीं, अब इस गगनचुंबी इमारत को ढहा दिया जाएगा। ट्विन टावर को बनाने में सुपरटेक ने 200 करोड़ रुपए खर्च किए थे और 800 करोड़ रुपए की आमदनी की उम्मीद थी।
बार-बार नियमों में होता रहा संसोधन और खड़ी हो गई भ्रष्टाचार की इमारत
ट्विन टॉवर को बनाने में हर तरफ भ्रष्टाचार हुआ। अफसरों की मिलीभगत से बिल्डर्स ने सभी नियमों को अनदेखी किया। यही नहीं कई बार इसको लेकर नियमों में संसोधन किया गया, जिसके कारण भ्रष्टाचार की ये इमारत खड़ी हो गई। दरअसल, 23 नंवबर 2004 से शुरू होती है। जब नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर-93ए स्थित प्लॉट नंबर-4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया। आवंटन के साथ ग्राउंड फ्लोर समेत 9 मंजिल तक मकान बनाने की अनुमति मिली। हालांकि, दो साल बाद 2006 को अनुमति में संसोधन कर दिया गया, जिसके बाद सुपरटेक को 9 की जगह 11 मंजिल तक फ्लैट बनाने की अनुमति दे दी गई।
कदम-कदम पर बिर्ल्डस और अफसरों ने किया खेल
इसके बाद अथॉरिटी ने टावर बनने की संख्या में भी इजाफा कर दिया। पहले 14 टावर बनने थे, जिन्हें बढ़ाकर पहले 15 फिर इन्हें 16 कर दिया गया। 2009 में इसमें फिर से इजाफा किया गया। 26 नवंबर 2009 को नोएडा अथॉरिटी ने फिर से 17 टावर बनाने का नक्शा पास कर दिया। यही नहीं 2012 में भी टावर एफआर में बदलाव किया गया और टावर को 40 मंजिल तक करने की अनुमति दी गई। इसकी ऊंचाई 121 मीटर तय की गई। दोनों टावर के बीच की दूरी महज नौ मीटर रखी गई। जबकि, नियम के मुताबिक दो टावरों के बीच की ये दूरी कम से कम 16 मीटर होनी चाहिए। अनुमति मिलने के बाद सुपरटेक समूह ने एक टावर में 32 मंजिल तक जबकि, दूसरे में 29 मंजिल तक का निर्माण भी पूरा कर दिया। इसके बाद मामला कोर्ट पहुंचा और ऐसा पहुंचा कि टावर बनाने में हुए भ्रष्टाचार की परतें एक के बाद एक खुलती गईं। लिहाजा, इस ट्विन टावर को गिराने का आदेश हुआ।