नई दिल्ली। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की तरफ से 2017.18 के लिए कराये जाने वाले श्रम शक्ति सर्वे के नतीजों ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इस सर्वे मे सामने आया कि साल पिछले 45 साल में बेरोज़गारी की दर सबसे अधिक रही है। बताया जा रहा है कि दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने सर्वे को सरकार के पास भेज दिया, लेकिन अपनी नाकामी छिपाने के लिए सरकार ने उसे दबा दिया। जिसको लेकर आयोग के प्रभारी प्रमुख मोहनन और एक सदस्य जे वी मीमांसा ने इस्तीफ़ा दे दिया।
अब अगर सरकार खुद यह रिपोर्ट जारी करे कि 2017-18 में बेरोज़गारी की दर 6.1 हो गई थी जो 45 साल में सबसे अधिक है। तो उसकी नाकामिया सबके सामने आ जाएंगी। बताया जा रहा है कि इतनी बेरोजगारी वर्ष 1972-73 में थी, जो शहरों में ज्यादा थी और काम न मिलने के कारण लोग घरों में बैठने लगे थे।
सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इंकॉनमी के महेश व्यास तो पिछले तीन साल से बेरोज़गारी के आंकड़े सामने ला रहे हैं। उनके कारण जब बेरोज़गारी के आंकड़ों पर बात होने लगी तो सरकार ने लेबर रिपोर्ट जारी करनी बंद कर दी। बता दें कि रोज़गार और रोज़गार के आंकड़ों से संबंधित ख़बरों को अगर इंटरनेट पर सर्च किया जाए तो पता चलेगा कि लोगों में उम्मीद पैदा करते रहने के लिए ख़बरें पैदा की जाती रही हैं। जो बाद में कहां चली गई, उसका कोई अता—पता ही नहीं है। बता दें कि फरवरी 2018 में सरकार अपने सभी मंत्रालयों से कहा था कि अपने विभागों में पैदा हुए रोजगारों की लिस्ट बनाइए, हालाकि बाद में वो लिस्ट कहां गई, इसका भी कोई पता नहीं है।
पिछले साल सरकार ने टी सी ए अनंत की अध्यक्षता में एक नया पैनल बनाया था। इस पैनल को ये बताना कि रोज़गार के विश्वसनीय आंकड़े जमा करने के लिए क्या किया जाए। इसी की आंड में जो पहले लेबर रिपोर्ट जारी होती थी, उसको भी बंद कर दिया गया। जुलाई 2018 इस पैनल को पूरे मामले को लेकर रिपोर्ट देनी थी, लेकिन समय पूरा होने से चंद दिनों पहले पैनल ने छह महीने का विस्तार मांग लिया।
जानकारों का कहना है कि सरकार की आर्थिक नीतियां फ़ेल हो चुकी हैं, इसलिए भाषण को आकर्षक बनाए रखने के लिए अमरीकी मॉडल की तरह स्टेडियम को सजाया जा रहा है और अच्छी लाइटिंग के ज़रिए प्रधानमंत्री को फिर से महान उपदेशक की तरह पेश किया जा रहा है। पीएम ने अपनों भाषणों से शिक्षा और रोज़गार ग़ायब कर दिया है, क्योंकि उन्हे भलीभांति पता है कि अब काम करने का समय समाप्त हो चुका है।
वहीं न्यूज़ चैनलों के ज़रिए धार्मिक मसलों का बवंडर पैदा किया जा रहा है ताकि लोगों का ध्यान शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र से हट जाए। बेरोजगार युवक नौकरी की आस छोड़कर सेना की बहादुरी और मंदिर की बात करने लग जाएं। जब हमारी सेना का लोहा पूरी दुनिया मानती है तो प्रधानमंत्री क्यों बार बार सेना-सेना कर रहे हैं? उन्हें पता है कि धार्मिक कट्टरता ही अब सरकार को बचा सकती है। इसलिए एक तरफ अर्ध कुंभ को कुंभ बताकर माहौल बनवाया जा रहा है तो दूसरी तरह रोज़गार के सवाल ग़ायब करने के लिए अनाप-शनाप मुद्दे पैदा किए जा रहे हैं।