रांची। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी के मौके पर चीन को कड़ा संदेश दिया है। इसके साथ ही कहा कि भारत के जवाब से चीन सहम गया है। संघ के स्थापना दिवस व विजयादशमी उत्सह के अवसर पर सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने नागपुर से चीन के साथ-साथ भारत की ओर गलत नजर से देखने वाले देशों पर निशाना साधते हुए कहा कि हम सभी से मित्रता चाहते हैं। यह हमारा स्वभाव है, परंतु हमारी सद्भावना को दुर्बलता मानने की हिम्मत न करें।
अपने शक्ति प्रदर्शन से भारत को कोई देश नचा नहीं सकता या झुका नहीं सकता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इतनी बात तो ऐसा दुस्साहस करने वालों को समझ में आ जानी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसा दुस्साहस करने वालों को समझ में आ जानी चाहिए। हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अद्भुत वीरता, हमारी सरकार की स्वाभिमानी रवैया तथा देश के लोगों का धैर्य चीन को पहली बार मिला, उससे उसके ध्यान में यह बात आ जाना चाहिए कि भारत पहले वाला नहीं है।
उसके रवैये में भी सुधार हो जाना चाहिए। नहीं हुआ तो जो परिस्थिति आएगी, उसमें हम सभी लोगों की सजगता, तैयारी व दृढ़ता कम नहीं पड़ेगी। वे रविवार को संघ के स्थापना दिवस पर स्वयंसेवकों के साथ-साथ पूरे देश को संबोधित कर रहे थे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि देश की एकात्मता के व सुरक्षा के हित में ‘हिन्दू’ शब्द को आग्रहपूर्वक अपनाकर, उसके स्थानीय तथा वैश्विक, सभी अर्थों को कल्पना में समेटकर संघ चलता है।
संघ जब ‘हिंदुस्तान हिन्दू राष्ट्र है’ इस बात का उच्चारण करता है तो उसके पीछे कोई राजनीतिक अथवा सत्ता केंद्रित संकल्पना नहीं होती। वह इन सब विशिष्ट पहचानों को कायम, स्वीकृत व सम्मानित रखते हुए, भारत भक्ति के तथा मनुष्यता की संस्कृति के विशाल प्रांगण में सबको बसाने वाला, सब को जोड़ने वाला शब्द है।
‘हिन्दू’ किसी पंथ, संप्रदाय का नाम नहीं है, किसी एक प्रांत का अपना उपजाया हुआ शब्द नहीं है, किसी एक जाति की बपौती नहीं है, किसी एक भाषा का पुरस्कार करने वाला शब्द नहीं है। ‘हिंदू’ शब्द के विस्मरण से हमको एकात्मता के सूत्र में पिरोकर देश व समाज से बांधने वाला बंधन ढीला होता है। इसीलिए इस देश व समाज को तोड़ना चाहने वाले, हमें आपस में लड़ाना चाहने वाले, इस शब्द को, जो सबको जोड़ता है, अपने तिरस्कार व टीका टिप्पणी का पहला लक्ष्य बनाते हैं।