नई दिल्ली। IAAF वर्ल्ड अंडर-20 एथलेटिक्स चैम्पियनशिप की स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हिमा दास का नाम इन दिनों सबकी जुबां पर चढ़ा हुआ है। हिमा दास ने इस महीने यूरोप में अलग-अलग प्रतियोगिताओं में पांच गोल्ड मेडल जीते। जिसके चलते कई तमाम दिग्गज हस्तियों उनकी जीत पर बधाई देते हुए उनकी खूब तरुफ़ की है।
आज हम बात करेंगे कि किस तरह से अपनी ज़िंदगी से लड़ते हुए हिमा दास ने ये मुकाम हासिल किया। बताते चलें कि उनका जन्म असम राज्य के नगाँव जिले के कांधूलिमारी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम रणजीत दास और माता का नाम जोनाली दास है। हिमा के माता-पिता चावल की खेती करते हैं। शुरू से ही हिमा को खेलने का शौक था। वो अपने स्कूल के दिनों में लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थी। उन्हें फुटबाल खेलना काफी पसंद था इस वजह से वो अपना करियर फूटबाल में देख रही थी और भारत के लिए खेलने की उम्मीद भी की थी।
जिसके बाद जवाहर नवोदय विद्यालय के शारीरिक शिक्षक शमशुल हक की सलाह पर उन्होंने दौड़ना शुरू किया। शमशुल हक़ ने उनकी पहचान नगाँव स्पोर्ट्स एसोसिएशन के गौरी शंकर रॉय से कराई। फिर हिमा दास जिला स्तरीय प्रतियोगिता में चुनी गई और दो स्वर्ण पदक भी जीतीं।
जिला स्तरीय प्रतियोगिता के दौरान ‘स्पोर्ट्स एंड यूथ वेलफेयर’ के निपोन दास की नजर उन पर पड़ी। उन्होंने हिमा दास के परिवार वालों को हिमा को गुवाहाटी भेजने के लिए मनाया जो कि उनके गांव से 140 किलोमीटर दूर था। हालांकि इसके बाद हिमा के जज़्बे और हौसले ने उन्हें इस बुलंदी के मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया। जहां आज पूरा देश उन पर गर्व महसूस कर रहा है।