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1857 की क्रांति के अग्रदूत मंगल पांडेय को जब जल्लादों ने फांसी देने से किया मना, तब फिरंगियों की हिल गई चूलें

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति का शंखनाद करने वाले अमर शहीद मंगल पांडेय की 194वीं जयंती पूरे देश में श्रद्धापूर्वक मनाई जा रही है। देश के इतिहास में आज का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया है।

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 1857 की क्रांति का शंखनाद करने वाले अमर शहीद मंगल पांडेय की 194वीं जयंती पूरे देश में श्रद्धापूर्वक मनाई जा रही है। देश के इतिहास में आज का दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में लिख दिया गया है।

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अमर शहीद मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को यूपी के बलिया जिले के नगवा में एक ब्रह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडेय और माता का नाम अभय रानी था। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की थी और 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में अंग्रेजों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया था। हालांकि वह पहले ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक के तौर पर भर्ती हुए थे, लेकिन ब्रिटिश अफसरों की भारतीयों के प्रति क्रूरता को देखकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल लिया था। जिसके बाद 6 अप्रैल 1857 को मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले क्रांतिकारी के तौर पर विख्यात मंगल पांडेय ने पहली बार ‘मारो फिरंगी को’ का नारा देकर भारतीयों का हौंसला बढ़ाया था। उनके विद्रोह से ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी।

अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारतीय सैनिकों पर अत्याचार तो हो ही रहा था, लेकिन हद तब हो गई। जब भारतीय सैनिकों को ऐसी बंदूक दी गईं। जिसमें कारतूस भरने के लिए दांतों से काटकर खोलना पड़ता है। इस नई एनफील्ड बंदूक की नली में बारूद को भरकर कारतूस डालना पड़ता था। वह कारतूस जिसे दांत से काटना होता था। उसके ऊपरी हिस्से पर चर्बी होती थी। उस समय भारतीय सैनिकों में अफवाह फैली थी कि कारतूस की चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनाई गई है। ये बंदूकें 9 फरवरी 1857 को सेना को दी गईं। इस्तेमाल के दौरान जब इसे मुंह लगाने के लिए कहा गया तो मंगल पांडे ने ऐसा करने से मना कर दिया था। उसके बाद अंग्रेज अधिकारी गुस्सा हो गए है। फिर 29 मार्च 1857 को उन्हें सेना से निकालने, वर्दी और बंदूक वापस लेने का फरमान सुनाया गया है।

मंगल पांडेय ने अंग्रेजों के खिलाफ बैरकपुर में जो बिगुल फूंका था। वह जंगल की आग की तरह फैली। विद्रोह की चिंगारी पूरे उत्तर भारत में फैल गई। इतिहासकारों का कहना है कि विद्रोह इतना तेजी से फैला था कि मंगल पांडे को फांसी 18 अप्रैल को देना था लेकिन 10 दिन पहले 8 अप्रैल को ही दे दी गई। ऐसा कहा जाता है कि बैरकपुर छावनी के सभी जल्लादों ने मंगल पांडे को फांसी देने से इनकार कर दिया था। फांसी देने के लिए बाहर जल्लाद बुलाए गए थे।

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