उत्तर प्रदेश: आज विश्व पर्यावरण दिवस है… बहुत से लोगों को शायद पता भी नहीं होगा, पता हो भी तो कैसे कोई कंपनी इसका प्रचार नहीं करती। आखिर कार्ड बनाने के लिए पेड़ों को काटने वाली कम्पनियां क्या कार्ड बेचकर पर्यावरण बचाने का सन्देश देगी? अब जागरूक होने का वक्त भी धीरे धीरे हाथ से फिसल रहा है अब ये चेतावनी है, अब भी नहीं बदले तो कुछ नहीं रहेगा।
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जिस हवा में हम सांस लेते है, जो पानी हम पीते है, जो खाना हम खाते है, वो सब पर्यावरण का ही हिस्सा है, ये कहना चाहिए की ये हवा, पानी, पेड़ पौधे, जीव-जंतु ही पर्यावरण है। जिस पर्यावरण की हमें सबसे ज्यादा देखभाल और रक्षा करनी चाहिए उसी पर्यावरण को हम बड़ी तेज़ी से नष्ट कर रहे है। असल में हम पर्यावरण को नहीं खुद को नष्ट कर रहे है।
हर साल मौसम में बदलाव आ रहा है गर्मी, सर्दी, बारिश का समय और मात्रा बदल रही है। ग्लोबल वार्मिंग से तापमान में हर साल बढ़ोत्तरी हो रही है। अगर हम अब भी नहीं संभले तो भविष्य में परिणाम बेहद भयानक होंगे। प्रकृति अलग अलग तरीकों से हमें चेतावनी देती है पर हम हर बार अनदेखा कर प्रकृति के संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करने लगते है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारे पास आने वाली पीढ़ी को देने के लिए कोई भविष्य ही नहीं होगा।
पर्यावरण के मामले में विश्व में सबसे बदतर हालातों वाले देशों में हमारा देश सबसे आगे की लाइन में खड़ा है। इसका एक ही मतलब है कि विनाश की दौड़ में हम बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहे है। आज बहुत से लोग पेड़ लगाओ पेड़ लगाओ की बात कहते नज़र आ जायेंगे पर कोई ये नहीं कहता के ना सिर्फ पेड़ लगाओ बल्कि जो पेड़ पहले से है उन्हें भी बचाओ।
आज के दिन फेसबुक, ट्विटर और तमाम सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर world environment day यानि विश्व पर्यावरण दिवस के बारे में पोस्ट पर पोस्ट दिखेंगे, हर विशेष दिन की तरह आज भी पर्यावरण को सिर्फ सोशल मीडिया में ही बचाया जायेगा, सब के सब पर्यावरण प्रेमी, पर्यावरण के रक्षक नज़र आयेंगे।
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लेकिन वास्तविक दुनिया में पर्यावरण की परवाह करने वाले बिरले ही मिलते है। जितने लोग वर्चुअल दुनिया में पर्यावरण को लेकर चिंतित है, और पर्यावरण को बचाना चाहते है उसके आधे लोग भी बाहर निकल कर ऐसा करे तो पर्यावरण का संरक्षण कतई मुश्किल नहीं होगा। लेकिन ऐसा होता नहीं, होता है सिर्फ हल्ला, हंगामा, शोर और झूठी चिंता. सुनकर बुरा भी लग रहा होगा और शायद विश्वास भी नहीं हो रहा होगा की क्या सच में ऐसा होता है ?
चलिए ये तथ्य देखिये शायद भरोसा हो जाये
- भारत अपने पड़ोसी चीन से विकास के मामले में बहुत पीछे है पर प्रदुषण के मामले में चीन को पीछे छोड़ चुका है।
- विश्व के 20 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में चीन के मात्र 3 शहर है जबकि भारत के इस लिस्ट में 13 शहर है।
- गंगा और यमुना, इन नदियों को हम पूजते है पर शर्म की बात ये है कि ये दोनों ही नदियाँ विश्व की सबसे प्रदूषित 10 नदियों में से है।
- भारतीय शहरों में रहने वाले 660 मिलियन जनसंख्या की औसत आयुबढ़ते प्रदुषण की वजह से 3.2 साल कम हो गयी है।
- वर्ष 2000 के बाद से बीजिंग में प्रदुषण दर जहाँ 40% कम हुयी है वहीँ दिल्ली में इसी दौरान प्रदुषण की दर 20% बढ़ी है।
- भारत की 290 नदियों में से 66% नदियाँ प्रदूषित है, और वायु के साथ साथ जल प्रदुषण पिछले तीन दशकों में बहुत तेज़ी से बढ़ा है।