पटना। बिहार की राजनीति में खरमास के बाद बिहार में बड़ा खेला हो सकता है। बीते कुछ दिनों से सूबे की राजनीति में दिख रहा ठहराव क्या तूफान से पहले की शांति तो नहीं है? प्रदेश में सत्ताधारी एनडीए खेमे में जातिगत जनगणना पर में काफी लंबे समय से खींचतान तो चल रही थी, लेकिन हाल में सूबे की विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने अपने धुर विरोधी जनता दल यूनाइटेड के पास ऐसा पांसा फेंका कि बात राहें अलग होने की अटकलों तक पहुंच गई है।
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आरजेडी ने बड़ी चाल चलते हुए सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कहा है कि वह बीजेपी के खिलाफ जाकर भी जातिगत जनगणना करवाएं। यदि ऐसा करने से सरकार के सामने संकट आता है तो वह खुलकर साथ देने को तैयार है। वहीं, जेडीयू ने भी आरजेडी के समर्थन का स्वागत किया है। आइए बतातें हैं कि यह जातिगत जनगणना क्या है और क्यों बीजेपी के लिए यह गले की हड्डी बन गया है?
जातिगत जनगणना क्या है ?
जैसा कि आप जानते हैं कि देश में आजादी के पहले से ही हर 10 साल बाद जनगणना होती है। देश में 1931 तक जातिगत जनगणना होती थी। 1941 में भी जातिगत आंकड़े जुटाए गए, लेकिन इन्हें प्रकाशित नहीं किया गया। इसके बाद 1951 से 2011 के बीच हुए सभी जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की गणना तो हुई, लेकिन ओबीसी और दूसर जातियों को इसमें दर्ज नहीं किया गया। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिश पर पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की, लेकिन देश में ओबीसी की कितनी आबादी है। इसका सटीक आंकड़ा मौजूद नहीं है। जातिगत जनगणना की मांग कर रहीं पार्टियों का कहना है कि आबादी की गिनती के समय लोगों की जातियों को भी दर्ज किया जाए और ताकि आबादी में हिस्सेदारी के मुताबिक योजनाएं बनाईं जा सकें।
जानें क्या है बीजेपी का इस मुद्दे पर स्टैंड?
बता दें कि भारतीय जनता पार्टी भी यूपीए सरकार के दौरान जातिगत जनगणना की मांग कर चुकी थी, लेकिन अब पार्टी का स्टैंड अलग है। केंद्र की मोदी सरकार संसद में साफ किया कि जाति आधारित जनगणना नहीं कराई जाएगी। हालांकि, पहले की तरह एससी और एसटी का कॉलम बरकरार रहेगा। अलग-अलग राज्यों से अलग-अलग दलों की मांग के बीच केंद्र सरकार ने राज्यों को जातिगत जनगणना कराने की छूट दी है। बिहार में बीजेपी अब तक इस मुद्दे पर अपना स्टैंड पूरी तरह साफ नहीं कर पाई है। न तो वह इससे इनकार कर पा रही है और न ही खुलकर समर्थन। नीतीश कुमार के नेतृत्व में तेजस्वी सहित 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जब इस मुद्दे को लेकर पीएम के पास गया था तो उसमें बीजेपी कोटे से मंत्री जनक राम भी मौजूद थे, लेकिन इस मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए नीतीश कुमार को अब भी बीजेपी की सहमति का इंतजार है।
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जातिगत जनगणना पर बिहार बीजेपी एकमत नहीं
बिहार में बीजेपी इस मुद्दे पर एकमत नहीं है। पार्टी के बड़े नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी और मौजूद डेप्युटी सीएम तारकिशोर प्रसाद जहां इसकी पैरवी कर चुके हैं। तो बीजेपी के विधान पार्षद संजय पासवान और बीजेपी विधायक हरि भूषण ठाकुर ने सार्वजनिक रूप से इसे खारिज कर दिया था। 2019 और 2020 में जातिगत जनगणना के प्रस्ताव पर बिहार विधानमंडल में बीजेपी ने समर्थन किया था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के रुख के बाद बिहार बीजेपी इस पर खुलकर कुछ बोलने से बच रही है। हालांकि, पार्टी के कई नेताओं को इस बात का डर भी सता रहा है कि यदि उन्होंने जातिगत जनगणना का विरोध किया तो उसकी छवि पिछड़ी जाति के विरोधी के तौर पर बनेगी। इसका नुकसान चुनाव में उठाना पड़ सकता है।
जानें इस खेल में कैसे फंस गई बीजेपी?
बिहार में जेडीयू और आरजेडी दोनों एक दूसरे के धुर विरोधी हैं, लेकिन दोनों दल जातिगत जनगणना के मुद्दे पर एकमत हैं। दोनों ही दलों ने केंद्र सरकार से इसकी मांग करते हुए पीएम से मुलाकात की थी, लेकिन केंद्र की ओर से जातिगत जनगणना कराए जाने से इनकार के बाद बिहार सरकार ने अपने खर्च पर यह कराने का फैसला किया है।
नीतीश ने इसके लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने की बात कही थी, लेकिन बीजेपी ने अब तक इस पर हामी नहीं दी है। अब आरजेडी ने जेडीयू से कहा है कि यदि बीजेपी इस पर सहमत नहीं होती है तो उसका साथ छोड़कर नीतीश को आगे बढ़ना चाहिए। आरजेडी ने यह कहकर बीजेपी पर जल्दी फैसले का दबाव बना दिया है। सूत्रों की मानें तो खरमास के बाद बिहार की राजनीति में बड़ा खेला हो सकता है।