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Afghanistan: अफगानिस्तान में ब्रिटेन, रूस और अब अमेरिका के पांव उखड़ गए, अब चीन की बारी

By अनूप कुमार 
Updated Date

अफगानिस्तान पर राज करने का सपना संजोए साम्राज्यवादी प्रयासों की श्रृंखला को एक बार फिर से विफल कर दिया गया। 1842 और 2021 के बीच, इंपीरियल ब्रिटेन, ज़ारिस्ट रूस, सोवियत रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका ने दक्षिण और मध्य एशिया में अपने रणनीतिक स्थान से लाभ प्राप्त करने के लिए अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कोशिश की है। लेकिन उनके प्रयास बुरी तरह विफल रहे हैं। मौजूदा समय में चीन, तालिबान की काबुल में वापसी से फूले नहीं समा रहा है। अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान के शासन को चीन मदद और मान्यता देने की बात कह रहा है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद चीन की हां में हां मिलाने वाला पाकिस्तान भी चीन के सुर में सुर मिला रहा है। दोनों देश तालिबानियों की कमजोरी बने हैं।तालिबान भी मौके की तलाश में रहता है।

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तालिबान ने अफगानिस्तान के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी

31 अगस्त इतिहास का वो पन्ना बन गया जिसे पलटने के बाद ब्रिटेन, रूस और उसके बाद अमेरिका की अफगानिस्तान में विफलता को सदियों तक पढ़ा जाएगा। इसके पहले पिछली सदी में ब्रिटेन, सोवियत यूनियन और अब अमेरिका, अफगानिस्तान में अपने हाथ जलाकर बहुत कुछ सीख चुका है। 31 अगस्त को अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी हो चुकी है। सेनाओं की वापसी पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अब अफगानिस्तान में हमारी 20 साल की सैन्य उपस्थिति खत्म हो गई है। पिछले 17 दिनों में हमारे सैनिकों ने अमेरिकी इतिहास में सबसे बड़े एयरलिफ्ट को अंजाम दिया है। दूसरी तरफ अमेरिका के पूर्ण वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की घोषणा कर दी है। तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने 31 अगस्त मंगलवार के  तड़के कहा कि अमेरिकी सैनिकों ने काबुल हवाई अड्डे को छोड़ दिया है, जिसके बाद हमारे देश को पूर्ण स्वतंत्रता मिल गई है।

ब्रिटिश आर्मी ने नरसंहार को अंजाम दिया

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अफगानिस्‍तान वो देश है जिसने युद्धों के कई दौर देखे हैं। अफगानिस्‍तान पर साल 1893 और 1919 में ब्रिटिश शासन ने तीन युद्ध लड़े थे। पहला एंग्‍लो-अफगान वॉर वो युद्ध था जिसमें ब्रिटिश आर्मी बड़ी संख्‍या में देश में दाखिल हुई। जिस समय सर्दियों में हिंदुकुश की पहाड़‍ियां बर्फ से ढंकी होती हैं, अफगानिस्‍तान में ब्रिटिश आर्मी ने नरसंहार को अंजाम दिया। सन् 1842 में 4500 सैनिकों की मौत हुई और करीब 12000 आम नागरिकों की मौत हो गई थी। जबकि दूसरा एंग्‍लो अफगान वॉर 1878 और 1880 के बीच लड़ा गया था। सरल 1919 में तीसरा अफगान-एंग्‍लो अफगान वॉर में सेंट्रल एशिया के देशों ने जीत हासिल की थी।

 

सोवियत-अफगान युद्ध नया दौर शुरू

साल 1978 से अफगानिस्‍तान में युद्ध का वो नया दौर शुरू हुआ जो आज तक जारी है। सउर क्रांति जिसमें तख्‍तापलट हुआ था, उससे इस देश में नए तरह के संघर्ष की शुरुआत हुई थी। इसके बाद से एक के बाद एक कई संघर्ष देश में हुए। साल 1979 में सोवियत-अफगान युद्ध शुरू हुआ और 10 साल के बाद 1989 में जाकर खत्‍म हो सका। उस समय सोवियत संघ ने देश में सत्‍ताधारी पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ अफगानिस्‍तान (PDPA) को समर्थन दिया जो देश में सरकार के खिलाफ माहौल को तैयार कर रही थी।

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जर्मनी का समर्थन मिल रहा था

सोवियत संघ की सेना ने अफगान आर्मी के साथ मिलकर विरोध में मदद की। उस समय जो लड़ाई हुई उसे अफगान मुजाहिद्दीनों के खिलाफ लड़ा गया युद्ध माना गया। इस युद्ध में रूस को जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक का भी समर्थन मिला था। अफगान मुजाहिद्दीन को अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, पाकिस्‍तान, सऊदी अरब, इजिप्‍ट और चीन के साथ ही जर्मनी का समर्थन मिल रहा था। रूस को आखिर में हार माननी पड़ी थी और तब जाकर युद्ध खत्‍म हुआ था।

 

अमेरिकी सेनाओं के आते ही तालिबान का किला ढह गया था

अक्‍टूबर 2001 में अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्‍तान में दाखिल हुई थीं। यूएस मिलिट्री यहां पर 9/11 का बदला लेने के लिए आई थी। अमेरिका ने तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर करने के लिए उस पर पहली बार 7 अक्टूबर, 2001 को हमला बोला था।बाद में, वहां अमेरिकी सैनिकों की संख्या में लगातार वृद्धि होती चली गई। वॉशिंगटन ने तालिबान से लड़ने के लिए अफ़ग़ानिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया। इससे 2011 तक सैनिकों की संख्या बढ़कर क़रीब 1,10,000 तक पहुंच गई

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अमेरिकी सेनाओं के आते ही तालिबान का किला ढह गया मगर अब 2 दो दशक बाद तालिबान फिर से अफगानिस्‍तान पर काबिज हो गया है। जब-जब अफगानिस्‍तान में युद्ध हुए हैं, बड़ी संख्‍या में सैनिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। एक अनुमान के मुताबिक अफगानिस्‍तान में पिछले दो दशकों में 1,405,111 से 2,084,468 नागरिकों की मौत हुई है।

युवक और युवतियां सभी तालिबानी खौफ से बहुत दूर उड़ जाना चाहते है

एक बार फिर से अफगानिस्तान विदेशी साम्राज्यवादी ताकतों को मुल्क से बाहर निकालने में कामयाब हो गया हैं। मौजूदा वक्त में अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा है। तालिबान बार बार अपनं अफगानिस्तान के आवाम को विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा है कि वह अफगानिस्तान के लोगों को बेहतर शासन देगा। अफगान नागरिक एक बार पहले भी तालिबान का शासन देख् चुके है।अफगानिस्तान में तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद वहां खौफ का माहौल है। बदहवासी ,बदहाली और दहशत के साये में अफगानी नागरिक काबुल एयरपोर्ट पर जमा हो रहे थे। 14 अगस्त से ही काबुल हवाई अडडे की तस्वीर में से मानवता का रंग उड़ गया था। बच्चे, बूढ़े और महिलाएं ,युवक और युवतियां सभी तालिबानी खौफ से बहुत दूर उड़ जाना चाहते थे। मौजूदा हालात ये हैं कि अत्याधुनिक हथियारों से लैस अफगानिस्तान को कब्जा करने वाले तालिबानी सबसे जानवरों की तरह बर्ताव कर रहे हैं।

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