नई दिल्ली। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) 2024 की ताजा रिपोर्ट में भारत को 127 देशों की सूची में 105वां स्थान (India Ranks 105) प्राप्त हुआ है। यह भारत (India) के लिए एक चिंता का विषय है, क्योंकि भूख (Hunger) और कुपोषण (Malnutrition) जैसी गंभीर समस्याओं से जूझते हुए भारत (India) का प्रदर्शन अभी भी कई छोटे पड़ोसी देशों से पीछे है। पिछले साल, यानी 2023 में भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर था, और इस बार उसने 6 स्थानों की छलांग लगाई है। हालांकि, यह सुधार उम्मीदों के अनुरूप नहीं माना जा रहा है। खास बात जब हम नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के प्रदर्शन से तुलना करते हैं।
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भारत (India) के पड़ोसी देशों ने भूख और कुपोषण से निपटने के मामले में उल्लेखनीय प्रगति की है। 2024 की GHI रिपोर्ट के अनुसार नेपाल 68वें स्थान पर है। श्रीलंका 56वें स्थान पर है। बांग्लादेश 84वें स्थान पर है। भारत (India) के मुकाबले इन देशों की स्थिति काफी बेहतर मानी जा रही है, क्योंकि उन्होंने अपने नागरिकों के स्वास्थ्य और पोषण के स्तर को सुधारने में विशेष प्रयास किए हैं। इसके अलावा, भारत के मुकाबले कम संसाधनों के बावजूद, इन देशों ने अपनी नीतियों को बेहतर ढंग से लागू किया है, जिससे उनकी रैंकिंग में सुधार हुआ है। हालांकि पाकिस्तान भी भूख और कुपोषण की समस्याओं से जूझ रहा है, उसकी रैंकिंग इस बार 109वीं है, जो भारत (India) से चार स्थान पीछे है। 2023 में पाकिस्तान 102वें स्थान पर था, जबकि भारत 111वें स्थान पर था। इस साल भारत (India) ने पाकिस्तान (Pakistan) से बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन भूख से लड़ने में यह बढ़त काफी नहीं है।
भारत (India) की GHI रैंकिंग में मामूली सुधार जरूर हुआ है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुधार उन चुनौतियों को दर्शाने के लिए पर्याप्त नहीं है, जिनका देश सामना कर रहा है। GHI के मापदंडों में भारत की कमजोर स्थिति स्पष्ट होती है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) की गणना चार मुख्य मानकों पर की जाती है:
अंडरन्यूट्रिशन (कुपोषण): कितने लोग अपनी जरूरत के अनुसार पर्याप्त पोषण प्राप्त नहीं कर पाते।
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चाइल्ड वेस्टिंग (बाल कुपोषण): 5 साल से कम उम्र के बच्चों का वजन उनकी लंबाई के अनुपात में बहुत कम होना।
चाइल्ड स्टंटिंग (बच्चों का अवरुद्ध विकास): बच्चों की लंबाई का उनके उम्र के हिसाब से कम होना।
चाइल्ड मोर्टालिटी (बाल मृत्यु दर): 5 साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में अभी भी 35.5 फीसदी बच्चे स्टंटिंग (लंबाई में कमी) और 19.3 फीसदी बच्चे वेस्टिंग (वजन में कमी) से जूझ रहे हैं। यह दर्शाता है कि बच्चों के पोषण और विकास में बड़ी चुनौतियाँ हैं। हालांकि भारत सरकार ने कई योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए हैं, जैसे प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (Prime Minister Matru Vandana Yojana), पोषण अभियान (Poshan Abhiyan), और मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal Scheme), लेकिन इनका प्रभाव उतना व्यापक नहीं हो पाया है जितना अपेक्षित था। विशेषज्ञों का मानना है कि इन योजनाओं के क्रियान्वयन में चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जैसे योजनाओं की पहुंच, जागरूकता की कमी, और वित्तीय आवंटन की समस्या।
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और स्वच्छ पानी की अनुपलब्धता भी भूख और कुपोषण को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारक हैं। भारत के कई पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों में हालात और भी खराब हैं, जहां बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण लोग गंभीर पोषण संबंधी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
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GHI 2024 में बेलारूस, बोस्निया और हर्जेगोविना, चिली, और चीन जैसे देशों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। इन देशों की रैंकिंग ऊपरी पायदान पर रही है, क्योंकि इन्होंने अपने नागरिकों के पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति को काफी हद तक सुधार लिया है। वहीं, यमन, मेडागास्कर, और मध्य अफ़्रीकी गणराज्य जैसे देशों की रैंकिंग सबसे निचले स्थानों पर रही है, जहां भूख की स्थिति अत्यधिक गंभीर है। 2023 का वैश्विक GHI स्कोर 18.3 था, जो मध्यम श्रेणी में आता है, लेकिन कई देशों में हालात अब भी चिंताजनक हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर भूख की समस्या को हल करने के लिए सरकारों को अधिक समर्पित नीतियों की आवश्यकता है।
भारत को अपनी स्थिति सुधारने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, महिलाओं और बच्चों के पोषण में सुधार, और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को सुदृढ़ करना होगा। इसके अलावा, सरकारी योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन और स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलाना भी महत्वपूर्ण है। भले ही भारत ने इस साल पाकिस्तान से आगे बढ़कर थोड़ा सुधार दिखाया हो, लेकिन नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे छोटे देशों से पीछे रहना भारत के लिए एक चेतावनी है कि भूख और कुपोषण से लड़ाई में अभी लंबा सफर तय करना बाकी है।