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Mulayam Singh Yadav Death : मुलायम के वो पांच सख्त फैसले, जिनसे बदल गई देश की राजनीतिक हवा

By संतोष सिंह 
Updated Date

Mulayam Singh Yadav Death : मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav)  82 साल की उम्र में अपने साथ जुड़ी कई यादों को यहीं छोड़कर इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। लंबे राजनीतिक जीवन में कई ऐसे घटनाक्रम हैं जो मुलायम को पॉलिटिक्स के अखाड़े का भी उस्ताद बनाते हैं। इस खबर में हम मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के उन पांच फैसलों पर बात करेंगे, जिन्हें लेकर मुलायम ने देश की राजनीतिक हवा ही बदल दी।

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अखाड़ों पर बड़े-बड़े पहलवानों को चित करने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) राजनीति के अखाड़े में भी मंझे हुए पहलवान माने जाते रहे। बड़े-बड़े दावों से उन्होंने राज्य ही नहीं देश की हवा भी बदल कर रख दी।

1990 में राम मंदिर आंदोलन कार में सेवकों पर गोली चलाने का आदेश

साल 1967 में पहली बार विधानसभा की सीढ़ी चढ़ने वाले मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) महज 22 साल में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बन गए। हालांकि एक साल बाद ही अयोध्या में राम मंदिर पर आंदोलन तेज होने के बाद उनका एक फैसला आज भी लोगों के जेहन में तरोताजा है। 1990 में उन्होंने आंदोलनकारी कार सेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। इस घटना में कई लोग मारे गए। उनके इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई थी। मुलायम ने खुद एक बार कहा था कि वह फैसला उनके लिए आसान बिल्कुल नहीं था।

समाजवादी पार्टी का गठन

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साल 1992 में नेताजी ने जनता दल से अपनी राहें जुदा कर समाजवादी के रूप में अपनी पार्टी का गठन करके देश की राजनीति में कदम आगे बढ़ाए। पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों के बीच लोकप्रिय मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के लिए यह एक बड़ा कदम था। मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा केंद्र की राजनीति में भी सक्रिय रहे। वह देश के रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं।

जब मुलायम ने बाहर से समर्थन कर बचाई थी मनमोहन सरकार 

मनमोहन सिंह के नेतृत्व में देश में यूपीए सरकार थी। साल 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु करार के बाद जब वामपंथी दलों ने यूपीए (UP) से अपना गठबंधन पीछे कर दिया तो उस वक्त मुलायम सिंह (Mulayam Singh) ही थे जो संकटमोचक बनकर सामने आए और यूपीए सरकार को गिराने से बचा लिया। मुलायम ने बाहर से समर्थन करके मनमोहन सरकार बचाई थी।

कल्याण सिंह का हाथ थाम भाजपा को चौंकाया

कहा जाता था कि विरोधियों को इल्म भी होता था और मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) राजनीतिक दांव चलकर पटखनी दे देते थे। एक ऐसा ही कदम नेताजी ने साल 2003 में चला। जब भाजपा से निकाले गए कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के साथ मुलायम ने हाथ मिलाया। हालांकि इससे पहले साल 1999 में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने अपनी अलग पार्टी भी बनाई। साल 2002 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिर्फ चार सीट जीत पाई। मुलायम ने कल्याण सिंह (Kalyan Singh) के साथ गठबंधन में सरकार बनाई और उनके बेटे राजवीर सिंह को सरकार में महत्वपूर्ण पद देकर दोस्ती निभाने से भी नहीं चूके। एक साल बाद कल्याण सिंह (Kalyan Singh)  फिर से भाजपा में शामिल हुए लेकिन 2009 में कल्याण सिंह (Kalyan Singh) ने फिर मुलायम का हाथ थामा।

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 बेटे अखिलेश यादव को यूपी की सत्ता सौंपना

मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव में विरोधियों को चित किया। इस चुनाव में 403 सीटों में से 223 सीटों पर जीत हासिल की। उस वक्त भी माना जा रहा था कि मुलायम चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे ,लेकिन तभी मुलायम ने एक और राजनीतिक दांव चला और अपने बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नाम पर सीएम पद की मुहर लगा दी। मुलायम ने सियासी विरासत सौंपकर अखिलेश के राजनीतिक जीवन को राह दिखाई। किसी ने भी अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav)  के नाम पर आपत्ति नहीं जताई। हालांकि यह और बात है कि बाद में अखिलेश के नेतृत्व पर सवाल उठाकर चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav)ने अलग राहें पकड़ी। कुछ वक्त बाद मुलायम सिंह (Mulayam Singh ) को भी साइडलाइन करके अखिलेश पार्टी के चीफ बन गए।

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