लखनऊ: विधान परिषद की 12 सीटों पर चुनाव की घोषणा के साथ ही सियासी दलों ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है। भाजपा के लिए जहां 10 सीटें तय मानी जा रही हैं, वहीं सपा के लिए एक सीट तय है। लेकिन मुख्य विपक्षी दल सपा ने जहां दूसरा प्रत्याशी उतारना तय कर लिया है, वहीं भाजपा की 11वां उम्मीदवार देने की तैयारी में है। ऐसे में 12वीं सीट पर किस सियासी दल का कब्जा होगा? यह सवाल कौतुहल का सबब बन गया है। सियासी जानकार इस बार भी बीते राज्यसभा चुनावों की तरह 12वीं सीट के लिए दांवपेच की बात से इनकार नहीं कर रहे।
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विधानसभा में मौजूदा वक्त में भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल को मिला कर 319 विधायक हैं। सपा के 48 सदस्य हैं। बसपा के 18 सदस्यों में से पांच ने बीते नवंबर में हुए राज्यसभा चुनाव के बाद पार्टी से बगावत कर दी थी लिहाजा उसके सदस्यों की संख्या को लेकर असमंजस है। फिलहाल, ये सभी बसपा में ही हैं। पार्टी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर रखी है जबकि रामवीर उपाध्याय को पार्टी ने सदस्यता से निलंबित कर रखा है। मौजूदा विधानसभा विधायकों की संख्या के मद्देनज़र एक सीट पर जीतने के लिए 35 मतों की जरूरत होगी। ऐसे में भाजपा 10 सीटें आसानी से जीत जाएगी। सपा के 48 विधायक होने के नाते उसे भी विधान परिषद में एक सीट मिल जाएगी। रही बसपा की बात तो उसके लिए 35 मत जुटाना नामुमकिन सी बात है। ऐसे में भाजपा-बसपा के साथ समझौते के तहत 11वीं सीट पाने की भी रणनीति पर काम कर रही है। इसकी भी अपनी वजहें हैं। फिर भी भाजपा को भी 11वां प्रत्याशी जिताने के लिए कांटे का जोर लगाना पड़े तो हैरत नहीं।
दरअसल, बीते राज्यसभा चुनावों में भाजपा और बसपा में गुपचुप सहमति थी। बसपा को ज्यादा वोटों की दरकार के मद्देनज़र भाजपा ने उसके प्रत्याशी रामजी गौतम को राज्यसभा पहुंचाने में मदद की। इससे नाराज बसपा के पांच विधायकों ने बगावत कर दी थी। इस पर मायावती ने यह घोषणा कर दी थी कि विधान परिषद चुनाव में वह समाजवादी पार्टी को सबक सिखाने के लिए भाजपा को समर्थन भी कर सकती है। अगर बसपा की इस सियासी मंशा और मंतव्य में कोई बदलाव नहीं हुआ तो भाजपा 12वीं सीट के लिए या यूं कहें 11वां एमएलसी पाने के लिए प्रत्याशी उतार सकती है। फिलहाल यह देखने वाली बात होगी कि दोनों पार्टियों का मौजूदा रुख क्या रहेगा।
समाजवादी पार्टी में अंदरखाने दूसरा प्रत्याशी उतारने की तैयारी है। पार्टी ने लगभग तय कर लिया है कि वह बसपा के साथ ही भाजपा के कुछ असंतुष्ट विधायकों का समर्थन लेगी। कुछ वैसे ही जैसे राज्यसभा चुनाव में उसने अंतिम समय में प्रकाश बजाज को उतार कर भाजपा के खेमें में हलचल मचा दी थी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि इस बार बकायदा रणनीति बनाकर विपक्षी दलों से बात भी की जाएगी। वैसे भी सपा विधानसभा चुनावों से पहले यह संदेश देने की कोशिश में है कि वह ही भाजपा से मुकाबले के लिए सक्षम और सियासी तौर पर सुदृढ़ है। ऐसे में सपा को 35 मत पाने के लिए जहां खुद अपने बचे 13 वोटों के अलावा बसपा के पांच और निर्दलीयों के वोटों के साथ भाजपा में क्रास वोटिंग की दरकार होगी।