काशी धाम: ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ मंदिर का स्वतंत्र भारत में 241 साल बाद पहली बार भारतीय शासक एवं देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा विस्तार एवं इसका आम जनमानस के लिए 13 दिसम्बर 2021 को लोकार्पण किया जा रहा है।काशी एवं शंकर की महिमा को जानने के लिए अनेक धर्म शास्त्रों में उल्लेख रहता है पर शिव महापुराण (विद्येश्वर संहिता) रूद्र संहिता, शतरुद्रसंहिता, कोटिरूद्रसंहिता, वायवीयसंहिता आदि में मिलता है। काशी एवं महादेव या विशेश्वरनाथ को साक्षात जानना है तो काशी में 11 मास का निवास अनिवार्य है जो उक्त मास में रहता है उसे भगवान शंकर रूद्र के रूप में दर्शन देते है। ऐसी धर्मशास्त्र में प्रमाणिक है।
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काशी हमारी पुरातन, सनातन, संस्कृति का केन्द्र एवं वर्तमान भारत के उद्भव का आधुनिकता का मुख्य केन्द्र है- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
काशी भारत की विरासत भगवान शंकर की नगरी के रूप में हमेशा विश्व में अध्यात्म का मार्गदर्शन किया है- योगी आदित्यनाथ
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सप्तपुरियों में काशी क्रम से देखा जाय तो चौथी पुरी है, प्रथम पुरी अयोध्या, द्वितीय पुरी मथुरा, तृतीय पुरी हरिद्वार या मायापुरी चैथी पुरी काशी है। काशी को बरुणा नदी एवं अस्सी नदी के मध्य होने के कारण वाराणसी भी कहा जाता है। इसका नाम प्राचीन धर्म शास्त्रों में अविमुक्त, आनन्दकानन, श्मशान या महाश्मशान है। तथा काशी के पास स्थित वर्तमान सारनाथ को ऋषिपटनम् भी कहा जाता है, क्योंकि वहां पर ऋषि महात्मा तपस्या करते थे। अब खुद वहां दक्ष प्रजापति के पुत्र एवं प्रजापति सारंग जो शंकर जी के साले लगते थे उनके नाम पर सारंग महादेव का मंदिर है। खुद सारंग जी ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए ऋषि पटना वर्तमान सारनाथ में घोर तपस्या की थी, जिससे प्रकट होकर भगवान शंकर ने दर्शन दिया था।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची द्य्रवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः।।
अर्थात काशी मोक्षदायिनी पुरी है। स्कन्द पुराण के अन्तर्गत इसके माहात्म्य से सम्बंधित अलग से एक ‘काशीखण्ड‘ ही है। काशी का महात्म्य एवं इसकी महत्ता का उल्लेख भारतीय सनातन संस्कृति के समस्त ग्रंथों में मिलता है कोई भी व्यक्ति या मनुष्य अपनी लेखनी से या कंठ से भगवान शंकर का वर्णन नहीं कर सकता है, पर मेरा एक प्रयास है इसलिए काशी धाम कॉरिडोर के लोकार्पण अवसर पर काशी के मंदिरों, घाटों एवं परम्पराओं तथा पर्वों का उल्लेख करें। काशी के विषय में व्यक्ति जब चर्चा शुरू करता है तो न जाने एक रोमांच आता है तथा भगवान शंकर, बाबा काल भैरव, मां अन्नपूर्णा जी का मंदिर, संकटमोचन मंदिर, दुर्गा जी का मंदिर, लहर तारा का, कबीर जी का जन्मस्थान, भगवान गौतम बुद्व का प्रथम प्रवचन स्थान सारनाथ का नाम एवं चित्र आंखों के सामने घूमने लगता है। इसलिए मेरा यह प्रयास है जो मैं अनुभव किया वो प्रस्तुत कर रहा हूं। विगत मेरे लेख 28 नवम्बर 2021 के कड़ी में यह दूसरा लेख है शायद आम जनमानस को इस लेख को पढ़ने का मौका मिले। हो सकता है कि भारत माता के मंदिर के उल्लेख से नयी पीढ़ी को जानने का मौका मिले कि भारत वास्तव में एक दैवीय राष्ट्र है। इसकी भारत माता के रूप में जो पूजा की जा रही है वह बेकार नही है। मैं इस लेख के माध्यम से मुख्य डिफेंस प्रमुख जनरल विपिन रावत जी को मैं श्रद्वांजलि अर्पित करता हूं।
काशी वाराणसी की जब चर्चा की जाती है तो काशी में भगवान शंकर का मुख्य केन्द्र होने के साथ-साथ अनेक धर्मो/सम्प्रदायों का भी केन्द्र रहा है जैसे बौद्व धर्म के संस्थापक भगवान गौतम बुद्व के केन्द्र सारनाथ जैनधर्म के प्रथम तीर्थाकन ऋषभदेव जी का स्थान, वैष्णो सम्प्रदाय के मुख्य प्रवक्ता में से एके श्री रामानन्द जी का स्थान, हिन्दू एवं मुस्लिम धर्म के अद्वितीय व्याख्या करने वाले महात्मा कबीर दास का स्थान, गोस्वामी तुलसी दास जी का स्थान, कबीर दास जी का जन्मस्थान, अवधूत बाबा कीनाराम जी का स्थान आदि प्रमुख रहे है। काशी कोे मंदिरों का स्थान कहा जाता है। मुझे स्वयं भी काशी में रहने का 11 साल मौका मिला, मथुरा वृन्दावन में 3 साल, प्रयागराज-इलाहाबाद में 9 वर्ष, अयोध्या में 4 वर्ष, उज्जैन आदि दक्षिण भारत के भी शहरों में अनेको माह तथा बौध गया में अनेको बार रहने का मौका मिला, परन्तु काशी जितना मंदिर कहीं नही मिला। काशी के अंतर्गत प्रमुख घाट जहां 108 है जिसमें 88 घाटों पर पक्का घाट है तथा उसमें भी 21-22 घाट पर विशेष स्थान होते रहते है जिसमें दशाश्वमेध घाट प्रमुख है।
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काशी में 125 महादेव जी के मंदिर है, 45 मां भवानी एवं दुर्गा जी के मंदिर है, 7 लक्ष्मी जी एवं सरस्वती जी के मंदिर है। भगवान राम एवं कृष्ण/हनुमान जी के 60 मंदिर है। काशी के कोतवाल एवं भैरो जी के 12 मंदिर है। 12 आदित्य मंदिर, 76 गणेश/विनायक मंदिर आदि है। इन मंदिरों के अलावा गायत्री जी के जैन मंदिर बौद्ध मंदिर/मठ दर्जनों है और सबसे अलग मंदिर काशी विद्यापीठ के अंदर भारत माता जी का मंदिर है। यह मंदिरों का क्षेत्र वाराणसी नगर निगम के अन्तर्गत आते है इसके अलावा प्रसिद्ध मंदिरों में मार्कण्डेय महादेव जी का कैथी में मंदिर है। जो गंगा एवं गोमती के संगम पर है, वहां पर मार्कण्डेय ऋषि ने अमरता के लिए महादेव जी की साधना की थी तथा वह अष्टदेवो में अश्वसथामा, राजा बलि, व्यासदेव जी, हनुमान जी, विभीषण जी, कृपाचार्य जी, परशुराम जी एवं मार्कण्डेय जी की तरह अमर है।
वाराणसी की जनसंख्या वर्तमान में 40 लाख से ज्यादा है जिसकी 2/3 आबादी नगरीय क्षेत्रों में रहती है जिसमें 1 नगर निगम, 1 नगर पालिका परिषद, 1 छावनी क्षेत्र, 2 नगर पंचायत, 2 तहसील, 8 विकासखण्ड, 17 पुलिस स्टेशन नगरीय क्षेत्रों में तथा 8 पुलिस स्टेशन ग्रामीण क्षेत्रों में तथा पुरूष की साक्षरता लगभग 86 प्रतिशत तथा महिलाओं की साक्षरता 71 प्रतिशत है। काशी में इसके अलावा मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारा आदि प्रमुख है तथा वैष्णों संत प्रसिद्व रविदास जी का मंदिर है एवं कबीर मठ भी है। काशी के बारे में अवधारणा है काशी गंगा के किनारे स्थित होने के कारण मोक्ष दायिनी एवं ज्ञान देने वाली है तथा अयोध्या सरयू के किनारे होने के कारण मोक्षदायिनी और बैराग देने वाली है। मथुरा-वृन्दावन यमुना के किनारे स्थित होने के कारण मोक्षदायिनी एवं भक्ति देने वाली है तथा हरिद्वार गंगा के किनारे स्थित होने के कारण मोक्ष एवं सन्यास देने वाली है तथा प्रयाग गंगा यमुना सरस्वती के किनारे बसने या संगम के कारण यह मोक्ष देने वाली एवं सरस्वती नदी के किनारे स्थित होने के कारण विद्वान एवं प्रवचन देने वाली है।
भारत के प्रमुख इन वैदिक नगरों पर आर्यावर्त की संस्कृति अनादि काल से विकसित हुई है। इस संस्कृत को आधुनिक परिवेश में लाने का श्रेय देश के यशस्वी प्रधानमंत्री मा0 नरेन्द्र मोदी जी को जाता है, जो 241 साल बाद किसी शासक के रूप में काशी को विश्व गुरु के रूप में स्थापित करने का संकल्प पूरा कर रहे है। 13 दिसम्बर 2021 को काशी कॉरिडोर जो राष्ट्र को समर्पित होगा। मोदी जी एवं योगी जी द्वारा काशी, अयोध्या, मथुरा, प्रयाग आदि के विकास पर हजारों करोड़ की योजनायें चलायी जा रही है जो आगामी 5 वर्षो में भव्यता प्रदान करेगी तथा इन महान पौराणिक पुरियों का वैभव विश्व पटल पर देखने को मिलेगा।
काशी भारत की एक प्राचीनतम एवं पवित्रतम नगरी है। विद्यानगरी होने के साथ ही धर्मनगरी होने का भी गौरव काशी को प्राप्त है। काशी का महत्व वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, बौद्व एवं जैन ग्रन्थों तथा साहित्य में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
शिव और शक्ति-ये परम शिव अर्थात् परम तत्व के दो रूप हैं। शिव कूटस्थ तत्व है और शक्ति परिणामिनी है। शिव विविध वैविध्यपूर्ण संसार के रूप में अभिव्यक्त शक्ति का आधार एवं अधिष्ठान है।
सर्वानन शिरोग्रीवः सर्वभूतगुहाशयः।
सर्वव्यापी स भगवांस्तस्मात् सर्वगतः शिवः ॥
भगवान शिव सब ओर मुख, सिर और ग्रीवा वाले हैं तथा समस्त प्राणियों के अंतकरण में स्थित हैं। अतः सर्वगत होने के कारण वे सर्वव्यापी हैं।
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शेते तिष्ठति सर्व जगत् यस्मिन् सः शम्भुः विकारहित ……….
अर्थात् ‘जिसमें सारा जगत् शयन करता है, जो विकार रहित है‘ वह ‘शिव‘ है, अथवा जो अमंगल का ह्रास करते हैं वे ही सुखमय, मंगलदीप भगवान शिव हैं। जो सारे जगत को अपने अन्दर लीन कर लेते हैं वे हो करुणा सागर भगवान शिव हैं। जो भगवान नित्य, सत्य, जगदाधार विकाररहित, साक्षी स्वरूप हैं वे ही शिव हैं।
महासमुद्ररूपी शिवजी ही एक अखण्ड परमतत्व हैं, इन्हीं की अनेक विभूतियाँ अनेक नामों से पूजी जाती हैं, यही सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान हैं, यही व्यक्त अव्यक्त रूप से क्रमशः ‘सगुण‘ ईश्वर और निर्गुण ब्रह्म कहे जाते हैं तथा यही ‘परमात्मा‘, ‘जगदात्मा‘, ‘शम्भव‘, ‘मयोभव‘, ‘शङ्कर‘, ‘मयस्कर‘, ‘शिव‘, ‘रुद्र‘ आदि नामों से सम्बोधित किये जाते हैं। भगवान शिव वर्णनातीत होते हुए भी अनुभवगम्य हैं। यही आशुतोष भक्तों को अपनी गोद में रखते हैं, यही त्रिविध तापों को शमन करने वाले हैं, इन्हीं से समस्त विद्याएँ एवं कलाएँ हैं, ये ही वेद तथा प्रणव के उद्गम है, उन्हीं को वेदों ने ‘नेति नेति‘ कहा है। यही नित्याश्रय और अनन्त आश्रय हैं और यही दयासागर एवं करुणावतार हैं। इनकी महिमा का वर्णन करना मनुष्य की शक्ति के बाहर है।
शिव अव्यक्त मुक्त, अदृश्य, सर्वगत एवं अचल आत्मा है। शक्ति दृश्य, चल एवं नामरूप के द्वारा व्यक्त सत्ता है। शक्ति-नटी शिव के अनन्त, शान्त एवं गंभीर वक्षस्थल पर अनन्त कोटि ब्रह्माण्डों का रूप धारण कर तथा उनके अन्दर सर्ग, स्थिति एवं संहार की विविध लीला करती हुई नृत्य करती है। लिंग का अर्थ प्रतीक (चिह्न) है। शिवलिंग पुरुष का प्रतीक है और शक्ति प्रकृति का चिह्न है। पुरुष और प्रकृति का संयोग होने पर ही सृष्टि होती है। उन पुरुष और प्रकृति की संयुक्त उपासना से बहुत शीघ्र फल मिलता है। इसी से शक्तिस्थ शिवलिंग की उपासना की जाती है।
शिव का साक्षात्कार करना व्यष्टि-भाव को लाँघकर ऊँचा उठाना है। इस व्यष्टि के अन्दर उपाधि युक्त एवं व्यावहारिक जीवन का ज्ञान रहता है, जो अज्ञान एवं दुःख का कारण है। जीवन के सूक्ष्म एवं स्थूल दोनों ही रूपों में जो कुछ भी क्रिया, परिवर्तन एवं चेष्टाएँ होती हैं, सब शक्ति के ही कार्य हैं और यह शक्ति वह ईश्वरीय तत्व है जो समस्त चराचर जगत् में व्याप्त है तथा जो स्वयं जगत् के रूप में अभिव्यक्त है। इस तत्व के समझने से यह अवस्था प्राप्त होती है।
काशी के प्रमुख पर्वो में रंगभरी (आमलकी) एकादशी-विश्वेश्वर की सायं 7.00 बजे की सप्तऋषि एवं 9.00 बजे की शृंगार आरती इस दिन एक साथ दिन में लगभग 3.00 बजे ही हो जाती है जिसमें भगवान शिव तथा माँ पार्वती को चल प्रतिमाओं का भी शृंगार होता है। हर्षोल्लास में अबीर गुलाल अत्यधिक मात्रा में समर्पित किया जाता है, दृश्य मनोहारी होता है। श्रद्धालु भो अबीर चढ़ाते व उड़ाते हैं। यह माता पार्वती के द्विरागमन के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।
अन्नकूट-भगवान शिव महादानी भी हैं। प्रतीकार्थ दीपावली के अगले दिन अन्नकूट पर्व अत्यन्त उल्लास के साथ मनाया जाता है। अनेक प्रकार के मिष्ठान, छप्पन भोग इत्यादि बड़ी मात्रा में तैयार कर भगवान का भोग लगता है। इस दिन भी शिव परिवार की चल मूर्तियों का भव्य शृंगार मध्याह्न भोग आरती के समय होता है। श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण होता है।
मकर संक्रान्ति-इस दिन मध्याह्न भोग में खिचड़ी तथा शाम को चूड़ा मटर व मंूग दाल रहता है जिसका वितरण भक्तों में किया जाता है। दण्डी स्वामी भी इस दिन प्रसाद पाते हैं।
श्रावण मास-यह मास विशेष महत्व का होता ही है। माह के सभी चार सोमवारों को विशेष श्रृंगार होता है। प्रथम सोमवार को भगवान शंकर, द्वितीय को भगवान शंकर तथा माँ पार्वती की चल प्रतिमाओं, तृतीय को अर्धनारीश्वर प्रतिमा तथा अंतिम सोमवार को रुद्राक्ष से श्रृंगार होता है। श्रावण पूर्णिमा को शिव परिवार की चल प्रतिमाओं का झूला शृंगार होता है। यह सम्पूर्ण माह अत्यंत मनोहारी होता है।
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अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया)-इस दिन से श्रावण पूर्णिमा तक भगवान के लिए गंगाजल का फव्वारा चलता है। चक्र पुष्करिणी तीर्थ मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर लोग दर्शन-पूजन करते हैं। यह ग्रीष्म ऋतु के आरम्भ का दिन है।
महाशिवरात्रि-शिवरात्रि का अर्थ है वह रात्रि जिसका शिव के साथ विशेष सम्बन्ध हो। ऐसी रात्रि माघ फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी है जिसमें शिव पूजा, उपवास और जागरण होता है। माघ कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा में आदिदेव कोटिसूर्यसमप्रभ शिवलिंग के रूप में आविर्भूत हुए थे अतरू शिवरात्रि व्रत में वही महानिशा व्यापिनी चतुर्दशी ग्रहण की जाती है। चतुर्दशी तिथियुक्त चार प्रहर रात्रि के मध्यवर्ती दो प्रहरों में से पहले की अन्तिम और दूसरे की आदि इन दो घटिकाओं की घड़ी की ही संज्ञा महानिशा है। इसका अमावस्या के साथ संयोग इसलिए देखा जाता है कि अमा-सह अर्थात् एक साथ वास करते हैं-अवस्थान करते हैं सूर्य और चन्द्र जिस तिथि में, वह ‘अमावस्या‘ है। साधन राज्य में सूर्य और चन्द्र परमात्मा और जीवात्मा के बोधक हैं।
फाल्गुन के पश्चात् वर्ष चक्र की भी पुनरावृत्ति होती है अतः फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को पूजा करना एक महाव्रत है जिसका नाम महाशिवरात्रि व्रत पड़ा। रात्रि ‘रा‘ दानार्थक धातु से रात्रि शब्द बनता है अर्थात् जो सुखादि प्रदान करती है, आनन्ददायी है। यहाँ रात्रि की स्तुति से प्रकृति देवी, दुर्गा देवी अथवा शिवा देवी की स्तुति ही समझना चाहिए। जिस प्रकार नदी में ज्वार-भाटा होता है उसी प्रकार इस विराट ब्रह्मांड में सृष्टि और प्रलय के दो विभिन्न मुखी स्त्रोत नित्य बह रहे हैं। दिवस और रात्रि की क्षुद्र सीमा में उन्हें बहुत छोटे आकार में प्राप्त कर उसे अधिगत करना हमारे लिये सम्भव है। एक से अनेक और कारण से कार्य की ओर जाना ही सृष्टि है और ठीक इसके विपरीत अर्थात् अनेक से एक और कार्य से कारण की ओर जाना ही प्रलय है। दिन में हमारा मन, प्राण और इन्द्रियाँ हमारे आत्मा के समीप से भीतर से वाहर विषय-राज्य की ओर दौड़ती हैं और विषयानन्द में ही मग्न रहती है। पुनः रात्रि में विषया को छोड़कर आत्मा की ओर, अनेक को छोड़कर एक की ओर, शिव की ओर प्रवृत्त होती है।
हमारा मन दिन में प्रकाश की ओर, सृष्टि की ओर, भेद-भाव की ओर, अनेक की ओर, जगत् की ओर, कर्मकाण्ड की ओर जाता है, और पुनः रात्रि में लौटता है अन्धकार की ओर, लय की ओर, अभेद की ओर, एक की ओर, परमात्मा की ओर और प्रेम की ओर दिन में कारण से कार्य की ओर जाता है और रात्रि में कार्य से कारण की ओर लौट आता है। इसी से दिन सृष्टि का और रात्रि प्रलय की द्योतक है। स्वाभाविक प्रेरणा से उस समय प्रेम-साधना, आत्म-निवेदन, एकात्मानुभूति सहज ही सुन्दर हो उठती है।
जहां कण-कण शंकर-काशी बाबा भोले की नगरी है। सिर्फ कहते ही नहीं हैं, यहां कण-कण में शंकर दिखते भी हैं। काशी जो वाराणसी एवं बनारस के नाम से भी प्रसिद्ध है, को मंदिरों के शहर के रूप में भी जाना जाता है। यहां भारत माता मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, तुलसी मानस मंदिर, संकट मोचन, दुर्गा मंदिर आदि कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो लोगों के बीच काफी प्रसिद्ध हैं। यहां तक कि शाम को होने वाली गंगा आरती भी पर्यटकों को खासतौर पर आकर्षित करती है। लेकिन इसके अलावा भी यहां कुछ ऐसी जगहें हैं, जहाँ आपको समय निकाल कर जरूर जाना चाहिए। जैसे, रामनगर का किला। ये काशी नरेश बलवंत सिंह का किला है। इसका आर्किटेक्चर लोगों को बहुत आकर्षित करता है।
सारनाथ भी देखने लायक है। यहां, आपको धमेख स्तूप मिलेगा, जो पत्थर और ईंट की एक विशाल संरचना है। लोगों का मानना है कि भगवान बुद्ध अपना पहला उपदेश इसी स्थान पर दिया था और अपने शिष्यों के आर्य अष्टांग मार्ग के बारे में बताया था। यहां कई अन्य पर्यटन स्थल भी हैं, जैसे चौखंडी स्तूप, सारनाथ संग्रहालय आदि। काशी में रहने के लिए काशी कोतवाल से इजाजत लेनी पड़ती है। इसलिए अगले ही दिन हम काल भैरव मंदिर के दर्शन के लिए निकल गए। वही यहां के कोतवाल हैं और कोतवाली में आज भी कोतवाल की गद्दी पर काल भैरव का स्थान है। दशाश्वमेध घाट-यहां का मुख्य घाट है दशाश्वमेध। कहते हैं, यहां खुद ब्रह्मा जी ने आकर दस अश्वमेध यज्ञ किए थे, जिसके बाद इसका नाम दशाश्वमेध पड़ा। इस घाट पर श्रद्वालुओं का हमेशा तांता लगा रहता है तथा यह काशी का सर्वप्रमुख घाट है।
यहां पर ही नियमित गंगा आरती होती है। इस घाट के बाद अस्सी घाट पर आए दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं। इस घाट पर ही गोस्वामी तुलसीदास जी बहुत समय तक रहे तथा इसी घाट पर हनुमान जी की कृपा उनको प्राप्त हुई थी तथा उनके जीवन का अगला चरण प्रयाग एवं चित्रकूट में पड़ा था जहां पर श्रीराम चन्द्र जी के दर्शन हुये थे तथा इसी स्थान की प्रेरणा से गोस्वामी तुलसी दास जी ने अयोध्या में पहंुचकर संवत 1631 में महानवमी के दिन रामचरित मानस की रचना अयोध्या में प्रारम्भ की थी। मेरा कहने का मुख्य उद्देश्य है कि भगवान राम, भगवान श्रीकृष्ण की नगरी के साथ काशी का गहरा सम्बंध रहा है।
भगवान शंकर स्वयं एक भागवत है तथा राम नाम के मंत्र के प्रभाव से अपने तारक मंत्र द्वारा काशी में मरने वालों को मोक्ष देते है। भगवान शंकर ऐसे देव है इनका लिवास हमेशा साधारण रहता है ये अनाम योगी भी है अनाम अवधूत भी है ये जल्दी फलदाता देव है अपने लिये विषपान करते है लोगों के लिए अमृत एवं जीवनदान देते है। काशी में हमेशा कैलाश के बाद निवास करते है तथा कोई भी आर्यावत का विद्वान उत्तर दक्षिण का हुआ है वह जब बाबा भोले शंकर का आर्शीवाद पाता है तभी उसे जगदगुरू, विश्व गुरु एवं महायोगी की उपाधि मिलती है।
इस स्थान पर महायोगी गोरखनाथ जी महायोगी मत्स्येन्द्रनाथ जी ने भी अनेक वर्षों गुजारे थे और वाम मार्ग के अवधूत बाबा कीनाराम जी की लीला स्थली एवं जन्मस्थली दोनों काशी में रही और इनके प्रभाव को सारा जगत जानता है। आंध्र के प्रसिद्ध संत जो काशी में बाबा तैलंग स्वामी जी के रूप में स्वयं शंकर के अवतार माने जाते रहे है उनका यह अवधूत बाबाओं का संवाद हमेशा काशी की लोकोक्तियों में आदर के साथ लिया जाता है। भगवान शंकर एवं काशी पर कितना ही कहा जाय वह बहुत कम है। मैं आप सभी भगवान शंकर से जुड़े विद्वानों, लेखकों को नमन करता हूं तथा कोई लेख में त्रुटि हो तो क्षमा मांगता हूं, क्योंकि काशी में मेरा पौढ़ाकाल एवं एक विभाग के अधिकारी के रूप में सेवाकाल गुजरा है। उस काल में मैने पूरे काशी को पैदल घूमा हूं इसके घाटों पर घूमा हूं। साथ ही साथ पंचकोसी मार्गो पर भी घूमा हूं। भगवान जगत पिता शंकर जी एवं माता पार्वती/अन्नपूर्णा जी हमें और सभी को आशीष दें। जय हिन्द, जय भारत, जय शिव शंकर, जय श्रीराम, जय काशी धाम, जय अयोध्या धाम।
नोट- इस विशेष लेख के लेखक उत्तर प्रदेश सरकार में उप सूचना निदेशक अयोध्या मण्डल, अयोध्या धाम है।