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जन्म कुण्डली मे राजयोग – राज योग कराएगा आपके जीवन में धनवर्षा बस करे ये उपाए

By प्रीति कुमारी 
Updated Date

राज योग आपको राजा के तुल्य बना सकता है , और कर सकता है धन और वैभव की वर्ष। परन्तु इसके परिणाम धखने के लिए आपको यह जानना आवश्यक है की कोण सा राज योग बन रहा है आपकी कुंडली में और वह कितना प्रभावी है। हम कुंडली के राज योग से सम्बंधित एक श्रृंखला प्रारंभ कर कर रहे है , और ये उस कड़ी का पहला लेख है। जिसमे हम जानेंगे राज योग के विभिन प्रकार के बारे में।

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जन्म कुण्डली विश्लेष्ण से अपने राजयोग,धनयोग व दु:ख योगो को जानकर हम अपनी योजनाओ व जीवन शैली मे सुधार करके बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं| जन्मकुण्डली मे विपरीत राजयोग,केंद्र-त्रिकोण राजयोग,नीचभंग राजयोग,स्थान परिवर्तन योग,परस्पर दृष्टी योग,पंच महापुरूष योग आदि के होने व्यक्ति वैभवपूर्ण सुखी जीवन जीता है| राजयोगो का अर्थ व्यक्ति के वैभव,धन व प्रभाव से है|

विपरीत राजयोग:- जब छठे,आठवें,बारहवें घरों के स्वामी छठे,आठवे,बारहवें भाव में हो अथवा इन भावों में अपनी राशि में स्थित हों और ये ग्रह केवल परस्पर ही युत व दृष्ट हो, किसी शुभ ग्रह व शुभ भावों के स्वामी से युत अथवा दृष्ट ना हों तो ‘विपरीत राजयोग’ का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य धनी,यशस्वी व उच्च पदाधिकारी होता है। एक ही भाव मे चार या अधिक ग्रहो का बलवान योग भी विपरीत राजयोग देता है|

नीचभंग राजयोग:- जन्म कुण्डली में जो ग्रह नीच राशि में स्थित है उस नीच राशि का स्वामी अथवा उस राशि का स्वामी जिसमें वह नीच ग्रह उच्च का होता है, यदि लग्न से अथवा चन्द्र से केन्द्र में स्थित हो तो ‘नीचभंग राजयोग’ का निर्माण होता है। इस योग में जन्म लेने वाला मनुष्य राजाधिपति व धनवान होता है। नीच ग्रह के साथ कोई उच्च का ग्रह हो तो भी नीच भंग होता है| दो ग्रह आमने सामने नीच के हो तो भी नीच भंग होता है|
अन्य राजयोग-


1-    जब तीन या तीन से अधिक ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में होते हुए केन्द्र में स्थित हों।
2-    जब कोई ग्रह नीच राशि में स्थित होकर वक्री और शुभ स्थान में स्थित हो।
3-    तीन या चार ग्रहों को दिग्बल प्राप्त हो।
4-    चन्द्र केन्द्र में स्थित हो और गुरु की उस पर दृष्टि हो।
5-    नवमेश व दशमेश का राशि परिवर्तन हो।
6-    नवमेश नवम में व दशमेश दशम में हो।
7-    नवमेश व दशमेश नवम में या दशम में हो।

पंच महापुरूष:-  मंगल से रूचक,बुध से भद्र,गुरू से हंस,शुक्र से माल्व्य,शनि से शश नामक महापुरूष योग तब बनता है जब ये ग्रह किसी केन्द्र मे उच्च के हो| ऐसा व्यक्ति अपने क्षेत्र मे निपुण व प्रसिद्वी पाता है| वह सदा सम्मानित होता है|

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राहु-केतु का राजयोग:- अगर बलवान केंद्र के स्वामी के साथ राहु या केतु त्रिकोण मे हो तो राजयोग देता है|

अगर बलवान त्रिकोण के स्वामी के साथ राहु – केतु केंद्र मे हो तो राजयोग देता है|

राजभंग योग:- कुण्डली मे ऊपर बताए गये राजयोग हो,ग्रह बलवान हो,परन्तु निम्न मे से कोई योग हो तो राजयोग भंग हो जाता है

:- सूर्य व चंद्र कमजोर,नीचरॉशि मे स्थित हो

:- लग्नकुण्डली मे उच्च के ग्रह नवांश मे नीच के हो

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:- जिस रॉशि मे उच्च ग्रह है उसका स्वामी नीच का हो जाए

:- राजयोग कारक ग्रह बाल या वृद्ध अवस्था मे हो

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