वास्तु शास्त्र में आज हम प्रसाद या नैवेद के वास्तु पर चर्चा करेंगे। आज हर घर में देवी को प्रसाद चढ़ाया जाता है, लेकिन सवाल उठता है कि इस प्रसाद का क्या किया जाए- इसे खाया जाए या फेंका जाए या इसे पड़ा छोड़ दिया जाए? इसके अलावा कई लोग यह जानना चाहते हैं कि प्रसाद चढ़ाने के लिए किस बर्तन का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। आपको बता दें कि वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार इसका सीधा असर घर पर भी पड़ता है।
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धातु अर्थात सोना, चांदी या तांबा, पत्थर, बलि की लकड़ी या मिट्टी के बर्तन में नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। चढ़ा हुआ नैवेद्य तुरंत शुद्ध हो जाता है और उसे तुरंत उठा लेना चाहिए। जहां तक हो सके प्रसाद खाकर बांटना चाहिए। देवता के पास लेटने से नकारात्मक ऊर्जा निकलती है। प्रसाद को तुरंत देवता को अर्पित करके उठा लेना चाहिए।
यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो कहा जाता है कि विश्वसेना, चंदेश्वर, चंदांशु और चांडाली नाम की शक्तियां आ जाएंगी।
भगवान को हमेशा सात्विक चीजें ही चढ़ाई जाती हैं, इसलिए भोग बनाने में तेल, मसालों और मिर्च का उपयोग न करें।
धार्मिक मान्यता है कि भगवान को लगाए गए भोग को प्रसाद के रूप में स्वयं ग्रहण करना चाहिए और बाकी लोगों में भी वितरित करना चाहिए। लेकिन इससे पहले इसका कुछ हिस्सा गाय को जरूर खिलाएं। भोग का प्रसाद गाय को खिलाने से देवी-देवता जल्दी प्रसन्न होते हैं।
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भगवान के लिए भोग बनाते समय एक बात का जरूर ध्यान रखें कि अलग-अलग देवी-देवताओं को कुछ चीजें अर्पित करने की मनाही होती है। जैसे भगवान भोलेनाथ और गणेश जी की पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती, इसलिए इनके भोग में भी तुलसी न चढ़ाएं।
धर्म-शास्त्रों इस बात का विधिवत वर्णन है कि यदि देवी-देवताओं को उनका प्रिय भोग सही तरीके से लगाया जाए तो वे प्रसन्न होते हैं। साथ ही वे अपने सभी भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी करते हैं।