Carbon Trading: कार्बन बाज़ारों को इमिशन ट्रेडिंग स्कीम के रूप में भी जाना जाता है। ये ऐसे समझौते हैं जिनमें देश या अन्य संस्थाएं या व्यवसाय, कार्बन डाइऑक्साइड एमिटेड करने के लिए अनुमति पत्र का आदान-प्रदान करते हैं। इसे कार्बन क्रेडिट (carbon credit) कहा जाता है। कार्बन ट्रेडिंग बाज़ार को ऐसे आसानी से समझा जा सकता है यह राष्ट्र या कंपनियों के लिए इमिशन यानी (उत्सर्जन) का एक स्तर तय होता है। इस बाज़ार के तहत, अगर राष्ट्र या कंपनियां, सहमत स्तरों से कम उत्सर्जन करती हैं तो वो बचाए गए उत्सर्जन को कार्बन क्रेडिट के रूप में बेच सकती हैं।
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ये क्रेडिट उनको बेचा जा सकता है जो अभी भी अपनी निर्धारित सीमाओं से अधिक प्रदूषण कर रहे हैं। सैद्धांतिक रूप में,ये ट्रेडिंग स्कीम उत्सर्जन को कम करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है। आपको बता दें, कार्बन बाज़ारों को व्यापक रूप से जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसानों की भरपाई के रूप मे देखा जाता है। इन नुकसानों की सूची में लगातार और तीव्र गर्मी, तूफान, बाढ़, सूखा और समुद्र के स्तर में वृद्धि शामिल है।
जलवायु आपदाओं से बचने की तैयारी में लगने वाले खर्च और इन आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई में लगने वाले पैसों और अन्य संसाधनों का हिसाब फॉसिल फ्यूल के असल खर्च में शामिल नहीं किया जाता जबकि इन आपदाओं के पीछे फॉसिल्स से बने हुए ईंधन का भी हाथ होता है। इसके बजाय, इन खर्चों का बोझ आमतौर पर नागरिकों और सरकारों द्वारा उठाया जाता है। इसका बोझ वो भी उठाते हैं जो आज के वातावरण में मौजूद ग्रीन हाउस गैसों की उपस्थिति के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं।
कार्बन ट्रेडिंग किसे कहते हैं?
कार्बन क्रेडिट (Carbon Credit) अंतर्राष्ट्रीय उद्योग में कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण की योजना है। कार्बन क्रेडिट सही मायने में किसी देश द्वारा किये गये कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने का प्रयास है जिसे प्रोत्साहित करने के लिए मुद्रा से जोड़ दिया गया है। कार्बन डाइआक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों (green house gases) के उत्सर्जन को कम करने के लिए क्योटो संधि में एक तरीक़ा सुझाया गया है जिसे कार्बन ट्रेडिंग कहते हैं। अर्थात कार्बन ट्रेडिंग से सीधा मतलब है कार्बन डाइऑक्साइड का व्यापार।
ऐसे होती है कार्बन ट्रेडिंग
इस व्यापार में प्रत्येक देश या उसके अन्दर मौजूद विभिन्न सेक्टर जैसे ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, खिलौना उद्योग या किसी विशेष कम्पनी को एक निश्चित मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करने की सीमा निर्धारित कर दी जाती है। यदि किसी देश ने अधिक औद्योगिक कार्य करके अपनी निर्धारित सीमा (cap and trade) का कार्बन उत्सर्जित कर लिया है और उत्पादन कार्य जारी रखना चाहता है तो वह किसी ऐसे देश से कार्बन को खरीद सकता है जिसने अपनी सीमा का आवंटित कार्बन उत्सर्जित नही किया है। हर देश को कार्बन उत्सर्जन की सीमा का आवंटन (Cap and trade) यूनाईटेड नेशनस फ्रेम वर्क कनेक्शन आन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) द्वारा किया जाता है।
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आपको बता दें, ऐसा ही कार्बन व्यापार किसी देश की सीमा में स्थित कंपनी करती है. कार्बन ट्रेडिंग का बाजार मांग और पूर्ती के नियम पर चलता है। जिसको जरुरत है वो खरीद सकता है और जिसको बेचना है वो बेच सकता है. उदाहरण के लिए ब्रिटेन, भारत में कोयले की जगह सौर ऊर्जा की कोई परियोजना शुरु करे. इससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा जिसे आंका जाएगा और फिर उसका मुनाफ़ा ब्रिटेन को मिलेगा.
कार्बन क्रेडिट का बाजार
पिछले कुछ वर्षों में क्रेडिट का वैश्विक व्यापार लगभग 6 बिलियन डॉलर अनुमानित किया गया था जिसमें भारत का योगदान लगभग 22 से 25 प्रतिशत होने का अनुमान है. भारत और चीन दोनों देशों ने कार्बन उत्सर्जन को निर्धारित मानदंडों से नीचे रखकर कार्बन क्रेडिट यूनिट्स जमा किये हैं. भारत ने लगभग 30 मिलियन क्रेडिटस जमा किये हैं और आने वाले समय में संभवत: 140 मिलियन क्रेडिटस और तैयार हो जायेंगे जिन्हें विश्व बाजार में बेचकर पैसा कमाया जा सकता है. एक कार्बन यूनिट एक टन कार्बन के बराबर होता है.
वहीं एक न्यूज़ पोर्टल की खबर के अनुसार 2017 तक कार्बन ट्रेडिंग से कम से कम 150 अरब डॉलर कमाए जा सकते हैं और अगर भारत चाहे, तो खाली पड़ी 15 लाख हेक्टेयर भूमि पर पेड़ लगाकर इस धंधे से अच्छी कमाई कर सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार एक लाख हेक्टेयर भूमि पर पेड़ लगाकर वातावरण से हर साल 10 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड सोखी जा सकती है। इस प्रकार आपने पढ़ा कि किस प्रकार कार्बन ट्रेडिंग का बाजार ग्रीन हाउस “गैस कार्बन डाई ऑक्साइड” के उत्सर्जन में कमी लाकर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में योगदान दे रहा है।