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महाकालेश्वर मंदिर के बारे में रहस्यमई बातें

By प्रिया सिंह 
Updated Date

महाकालेश्वर मंदिर को लेकर कई सारी कहानियां हैं। लोगो का कहना है कि महाकालेश्वर का मेन मंदिर वो है। जहां भगवान को शराब पिलाई जाती है। लेकिन मैं आपको बता दूं कि ये दो अलग-अलग मंदिर हैं। ये मंदिर बहुत दूर नहीं हैं। इस मंदिर के गर्भग्रह में एक गुफा है। जो महाकाल मंदिर से जुड़ी हुई है। जहां भैरो बाबा का मंदिर अपने आप में प्रसिद्ध है।

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उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर और काल भैरव के मंदिर के बारे में आप को भी पता होगा। काल भैरव का मंदिर देश का ही नहीं बल्कि दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है। जहां भगवान शिव को शराब पिलाई जाती है और यही नहीं यहां प्रसाद बेचने वाले लोग भी शराब अपने पास रखते हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर का शिवलिंग स्वयंभू (अपने आप प्रकट हुआ) माना जाता है।

 

महाकाल के दर्शन से नही होती है अकाल मृत्यु

बताया जाता है कि महाकाल में भस्म आरती काफी शानदार होती है पहले यहां जलती हुई चिता की राख से भगवान महाकाल की पूजा की जाती थी।

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आखिर मंदिर परिसर में क्यों नही रुकते है राजा और मंत्री

महाकालेश्वर मंदिर के परिसर में ऐसा माना जाता है कि जो भी राजा या मंत्री यहां रात गुजारता है। उसका राजपाठ खत्म हो जाता है। इससे जुड़े कई उदाहरण भी प्रसिद्ध हैं बताया जाता है कि देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई मंदिर के दर्शन करने के बाद रात में यहां रुके थे। तो उनकी सरकार अगले ही दिन गिर गई थी।

 

उज्जैन में महाकाल कैसे हुए विराजमान

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दरसल प्राचीन काल में राजा चंद्रसेन शिव के बहुत बड़े उपासक थे। एक दिन राजा शिव के मंत्रो का जाप कर रहें थे। राजा के मुख से मंत्रो का जाप सुन एक किसान का बेटा भी उनके साथ जाप करने लगा। लेकिन वहा पर मौजूद सिपाहियों ने उसे दूर भेज दिया। जिसके बाद वह जंगल के पास जाकर पूजा करने लगा और वहां उसे अहसास हुआ कि दुश्मन राजा उज्जैन पर आक्रमण करने जा रहे हैं। उसके बाद वह प्रार्थना के दौरान ही यह बात पुजारी को बता दी। यह खबर आस- पास के इलाके में आग की तरह फैल गई। उस समय विरोधी राक्षस दूषण के साथ उज्जैन पर आक्रमण कर रहे थे। दूषण को भगवान ब्रह्मा का वर्दान प्राप्त था कि वो दिखाई नहीं देगा।

 

उस वक्त पूरी प्रजा भगवान शिव की अराधना करने लगा। भक्तों की पुकार सुनकर भगवान महाकाल प्रकट हुए। उसके बाद भगवान महाकाल ने दूषण का वध किया और उसकी राख से ही अपना श्रृंगार किया। उसके बाद वो यहीं विराजमान हो गए। तब से यहां आए दिन की सबसे पहला भस्म आरती होती है।

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