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Vijay Diwas : POK के वो 4 गांव जो 1971 युद्ध में भारत में हुए शामिल, जानें क्या है इनका रणनीतिक महत्व?

By संतोष सिंह 
Updated Date

Vijay Diwas : आज ही के दिन 16 दिसंबर 1971 में भारत-पाक युद्ध (Indo Pak war) में पाकिस्तान (Pakistan)  पर भारत की जीत को हम विजय दिवस (Vijay Diwas) के रूप में मनाते हैं। तो चलिए आज बात करेंगे हिंदुस्तान की उस ऐतिहासिक विजय (Historical Victory) की जिसके बाद पाकिस्तान (Pakistan) से अलग होकर बांग्लादेश (Bangladesh) दुनिया के नक्शे पर एक नया राष्ट्र बना।

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1971 तक ये गांव पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir) का  थे हिस्सा

50वें विजय दिवस पर 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir) के चार गांवों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। ये चार गांव थे- तुरतुक गांव (Turtuk Village), त्याक्शी, चलूंका और थांग। 1971 तक ये गांव पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir) का हिस्सा थे। 5 अगस्त 2019 के बाद से ये गांव लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory of Ladakh) का हिस्सा हैं।

इन गांवों तक पहुंचना बेहद मुश्किल हैं। ये गांव लद्दाख क्षेत्र (Ladakh Region) की नुब्रा घाटी के आखिरी छोर पर हैं। इन गांवों के एक ओर श्योक नदी (Shyok River) बहती है तो दूसरी ओर काराकोरम पर्वत (karakoram mountain) की ऊंची चोटियां हैं। सर्दियों में इन गांवों के तापमान -25 डिग्री सेल्सियस तक जाते हैं।

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तुरतुक क्यों है खास?
यह गांव रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है। लाइन ऑफ कंट्रोल (Line of Control) के एकदम पास। यह गांव लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (Line of Actual Control ) के भी बेहद पास है जो लद्दाख (Ladakh) को चीन अधिकृत अक्साई चिन (China Occupied Aksai Chin) से अलग करती है। लेह से तुरतुक (Turtuk) की दूरी करीब 205 किलोमीटर है लेकिन इसे पूरा करने में करीब 6 घंटे का वक्त लगता है। तुरतुक क्षेत्र इतिहास में मशहूर सिल्क रोड से जुड़ा हुआ था। इस बौद्ध बहुल इलाके में अधिकतर आबादी मुस्लिमों की है। लेकिन इन लोगों पर बौद्ध धर्म और संस्कृति का बहुत असर है। यहां के लोग बाल्टी भाषा बोलते हैं।

बीबीसी की रिपोर्ट (BBC Report) बताती है कि 2010 तक इन गांवों को बाहरी लोगों के लिए बंद रखा गया था। हालांकि इनमें से सिर्फ तुरतुक(Turtuk) ऐसा गांव था, जहां कुछ बाहरी लोगों को आने-जाने की इजाजत दी जाती थी।

8 दिसंबर को सेना ने पाकिस्तानी पिकेट पर कब्जा कर लिया, जिसे पीटी 18402 के नाम से जाना जाता है

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रिपोर्ट्स बताती है कि इस क्षेत्र में भारतीय सेना को मेजर चेवांग रिनचेन लीड कर रहे थे। रिनचेन पास के ही गांव के रहने वाले थे। वह 1947 और 1962 युद्ध में भाग ले चुके थे। और अपने साहसिक कामों की वजह से उन्हें सेना मेडल दिया दिया था। रिनचेन ने पकिस्तानी सेना (Pakistan Army) पर हमला करने के बजाए पहाड़ी रास्तों के जरिए ऊपर की चोटी पर पहुंचने का फैसला किया। इससे हुआ ये कि पाकिस्तान सेना (Pakistan Army) सहम गई और भारी लड़ाई की जरूरत नहीं पड़ी। 8 दिसंबर को सेना ने पाकिस्तानी पिकेट पर कब्जा कर लिया जिसे पीटी 18402 के नाम से जाना जाता है।

यहां पहुंचने के बाद सेना ने पाकिस्तानी लाइन ऑफ कम्युनिकेशन (Pakistani Line of Communication) पर कब्जा कर लिया। अगली सुबह जब सेना नजदीकी गांवों में उतरी तो पता चला कि पाकिस्तान सेना (Pakistan Army) रात में ही सभी पोस्ट खाली कर चुकी है। इसके बाद भारतीय सेना (Indian Army)  नजदीकी पाकिस्तानी बेस कैंप (Pakistani Base Camp) पर पहुंची जहां दोनों पक्षों के बीच मोर्टार और मशीन गन से लड़ाई हुई और भारतीय सेना (Indian Army)  ने पाकिस्तान (Pakistan) को पछाड़ दिया।

भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir) के 800 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा  कर लिया

17 दिसंबर को सेना प्रहनु और पीयून पर हमला करने की तैयारी में थी, लेकिन उसी दिन पाकिस्तान सरकार युद्धविराम के लिए सहमत (Pakistan government agrees to ceasefire) हो गई और भारतीय सेना (Indian Army) को संघर्ष विराम का आदेश दिया गया था। इस लड़ाई के बाद भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir) से 800 वर्ग किलोमीटर, ज्यादातर पहाड़ों और ऊबड़-खाबड़ जमीन पर नियंत्रण कर लिया था।

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