लखनऊ। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा राम मंदिर विस्तार के लिए खरीदी गई जमीनों पर विवाद में आए दिन कुछ न कुछ नए खुलासे हो रहे हैं। बाग बगेसर जमीन बिक्री प्रकरण में प्रथम विक्रेता हरीश पाठक साकिन पटकापुर तहसील हरैया जिला बस्ती निवासी हैं। इस सौदे में उनकी पत्नी कुसुम पाठक का नाम काफ़ी प्रमुखता से आ रहा है। ये दोनों लंबे समय से अयोध्या में जमीन की खरीद-फरोख्त धंधे से जुड़े हैं।
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हरीश पाठक ने 25 फरवरी 2009 में चंद्र प्रकाश दुबे और प्रताप नारायण के साथ मिलकर साकेत गोट फार्मिंग कंपनी खोली थी। इसमें निवेश के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। ऑफर दिया कि एक यूनिट यानि एक बकरी खरीदने पर कंपनी निवेशक को उसका पैसा दोगुना या इससे भी अधिक करके देगा। इस मामले में धोखाधड़ी के केस दर्ज हुए थे। इसके अलावा इनके घर की कुर्की तक हो चुकी है।
दस्तावेजों में हरीश पाठक के नाम के साथ हरिदास पाठक भी दर्ज है। इसके अलावा अयोध्या में लोग उन्हें बब्लू पाठक और बकरी वाले बाबा के तौर पर भी जानते हैं, लेकिन इस वक़्त अयोध्या से लेकर बस्ती ज़िले में स्थित अपने मूल आवास तक वह कहीं नहीं मिल रहे हैं।
हरीश पाठक के खिलाफ अयोध्या के कैंट थाने में उनके ख़िलाफ़ धोखाधड़ी और जालसाज़ी के कई मुक़दमे भी दर्ज हैं। एक स्थानीय पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि गिरफ़्तारी से भागने के कारण साल 2018 में उनके घर की कुर्की भी हो चुकी है, लेकिन वह पकड़ में नहीं आए। 18 मार्च 2021 को बाग बिजेसी स्थित इस ज़मीन में जो दो सौदे हुए उन दोनों में अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और श्रीरामजन्मभूमि ट्रस्ट क्षेत्र के ट्रस्टी डॉक्टर अनिल मिश्र गवाह हैं। इसके बावजूद मेयर ऋषिकेश उपाध्याय कहते हैं कि हरीश पाठक के बारे में उन्हें ज़्यादा जानकारी नहीं है।
वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन हरीश पाठक को कैसे मिली?
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अयोध्या में रामजन्मभूमि परिसर से क़रीब चार किमी दूर स्थित बाग बिजेसी की इस ज़मीन का मालिकाना हक़ हरीश पाठक और उनकी पत्नी को कैसे मिला, यह मामला भी विवादों के साये में है? साल 2011 में इस ज़मीन को पाठक दंपति ने महफ़ूज़ आलम, जावेद आलम, नूर आलम और फ़िरोज़ आलम से एक करोड़ रुपये में ख़रीदा, लेकिन उससे पहले यह मामला अदालत में विचाराधीन था। आरोप हैं कि इन चार लोगों को यह ज़मीन बेचने का अधिकार नहीं था।
अयोध्या शहर में रामजन्मभूमि परिसर के पास ही रहने वाले वहीद अहमद कहते हैं कि यह संपत्ति हमारे पूर्वजों ने वक़्फ़ की थी जिसके अनुसार इसकी देख-रेख के लिए परिवार में से ही कोई एक मुतवल्ली चुना जाता था। मुतवल्ली को ज़मीन बेचने का अधिकार नहीं है, लेकिन मौजूदा मुतवल्ली महफ़ूज़ आलम के पिता महबूब आलम ने इस ज़मीन को धोखे से अपनी ज़मीन के तौर पर दर्ज करा ली।
वहीद बताया कि इसी ज़मीन को उनके बेटे ने कुसुम पाठक और हरीश पाठक को बेच दिया। इसके अलावा भी कई ज़मीनें उन्होंने बेची हैं। इसके ख़िलाफ़ हमने वक़्फ़ बोर्ड में कार्रवाई के लिए 10 अप्रैल 2018 को एक प्रार्थनापत्र भी दिया था और महफ़ूज़ आलम और उनके तीनों भाइयों के ख़िलाफ़ रामजन्मभूमि थाने में एफ़आईआर भी दर्ज कराई थी।
वहीद अहमद बताते हैं कि वक़्फ़ की इस संपत्ति का मुक़दमा अभी भी अदालत में विचाराधीन है। उनके मुताबिक, यही वजह है कि साल 2017 में जिस संपत्ति का एग्रीमेंट पाठक दंपति ने सुल्तान अंसारी और अन्य लोगों के साथ किया था, उसका दाख़िल ख़ारिज मार्च 2021 तक नहीं हो पाया था।