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बड़े जाट नेताओं में होती थी अजित सिंह की गिनती, ऐसा था उनका सियासी सफर

By शिव मौर्या 
Updated Date

लखनऊ। राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के प्रमुख अजित सिंह का गुरुवार निधन हो गया। अजित सिंह के निधन पर पूरे प्रदेश में शोक की लहर दौड़ गई। अजित सिंह का कद राजनीति में बहुत बड़ा था। सात बार सांसद के साथ ही वह केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री भी थे। पिछले 2 लोकसभा चुनाव और 2 विधानसभा चुनाव के दौरान राष्ट्रीय लोकदल का ग्राफ तेजी से गिरा। यही वजह है कि वे अपने गढ़ बागपत से भी लोकसभा चुनाव हार गए। हालांकि, उनकी गिनती बड़े जाट नेताओं में होती थी।

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बता दें कि, अजित सिंह ने अपनी राजनीत की शुरूआत 1986 से शुरू किया था। उस समय उनके पिता ​और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह बीमार पड़ गए थे। 1986 में वह राज्यसभा भेजे गए थे। इसके बाद 1987 से 1988 तक वह लोकदल (ए) और जनता पार्टी के अध्यक्ष भी रहे। 1989 में अपनी पार्टी का विलय करने के बाद वह जनता दल के महासचिव बन गए। 1989 में अजित सिंह पहली बार बागपत से लोकसभा पहुंचे। वीपी सिंह की सरकार में अजित सिंह को केंद्रीय मंत्री बनाया गया।

इसके बाद वह 1991 में फिर से बागपत से लोकसभा पहुंचे थे। इस बार नरसिम्हाराव की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया। 1996 में वह तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचे, लेकिन फिर उन्होंने कांग्रेस और सीट से इस्तीफा दे दिया। 1997 में उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल की स्थापना की और 1997 के उपचुनाव में बागपत से जीतकर लोकसभा पहुंचे।

1998 में चुनाव में वह हार गए, लेकिन 1999 के चुनाव में फिर जीतकर लोकसभा पहुंचे। 2001 से 2003 तक अटल बिहारी सरकार में चौधरी अजित सिंह मंत्री रहे। 2011 में वह यूपीए का हिस्सा बन गए। 2011 से 2014 तक वह मनमोहन सरकार में मंत्री रहे। 2014 में वह मुजफ्फरनगर सीट से लड़े, लेकिन हार गए। 2019 का चुनाव भी चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर से लड़े, लेकिन इस बार भी बीजेपी प्रत्याशी संजीव बलियान ने उन्हें हरा दिया।

 

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