Advertisement
  1. हिन्दी समाचार
  2. उत्तर प्रदेश
  3. अखिलेश यादव का सीएम योगी पर पलटवार, बोले- अच्छा-बुरा कोई रंग नहीं, होता है नज़रिया

अखिलेश यादव का सीएम योगी पर पलटवार, बोले- अच्छा-बुरा कोई रंग नहीं, होता है नज़रिया

By संतोष सिंह 
Updated Date

लखनऊ। समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व सांसद अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने शुक्रवार को एक्स पोस्ट जनता की संसद का प्रश्नकाल करते हुए यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) पर करारा पलटवार किया है। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने प्रश्न पूछा किया कि लाल और काले रंग को देखकर भड़कने के क्या-क्या कारण हो सकते हैं? दो-दो बिंदुओं में अंकित करें।

पढ़ें :- One Nation, One Election: सीएम योगी बोले-यह निर्णय विकास और समृद्ध लोकतंत्र की सुनिश्चितता में 'मील का पत्थर' सिद्ध होगा

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने उत्तर भी देते हुए कहा कि रंगों का मन-मानस और मनोविज्ञान से गहरा नाता होता है। यदि कोई रंग किसी को विशेष रूप से प्रिय लगता है तो इसके विशेष मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं और यदि किसी रंग को देखकर कोई भड़कता है तो उसके भी कुछ नकारात्मक मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं।

प्रश्नगत ‘लाल’ और ‘काले’ रंग के संदर्भ में क्रमवार, इसके कारण निम्नवत हो सकते हैं:

पढ़ें :- समाजवादी पार्टी वाले दुर्दांत अपराधियों के सामने रगड़ते थे नाक, अपने संस्कार के अनुरूप धर्माचार्यों को बोलते हैं माफिया: सीएम योगी

श्री यादव ने कहा कि ‘लाल रंग’ मिलन का प्रतीक होता है। जिनके जीवन में प्रेम-मिलन, मेल-मिलाप का अभाव होता है वो अक्सर इस रंग के प्रति दुर्भावना रखते हैं। उन्होंने कहा कि ⁠लाल रंग शक्ति का धारणीय रंग है, इसीलिए कई पूजनीय शक्तियों से इस रंग का सकारात्मक संबंध है लेकिन जिन्हें अपनी शक्ति ही सबसे बड़ी लगती है वो लाल रंग को चुनौती मानते हैं। इसी संदर्भ में ये मनोवैज्ञानिक-मिथक भी प्रचलित हो चला कि इसी कारण शक्तिशाली सांड भी लाल रंग देखकर भड़कता है।

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने कहा कि ⁠‘काला रंग’ भारतीय संदर्भों में विशेष रूप से सकारात्मक है जैसे बुरी नज़र से बचाने के लिए घर-परिवार के बच्चों को लगाया जानेवाला ‘काला’ टीका और सुहाग के प्रतीक मंगलसूत्र में काले मोतियों का प्रयोग। जिनके जीवन में ममत्व या सौभाग्य तत्व का अभाव होता है, मनोवैज्ञानिक रूप से वो काले रंग के प्रति दुर्भावना पाल लेते हैं।

उन्होंने कहा कि ⁠पश्चिम में काला रंग ‘नकारात्मक शक्तियों और राजनीति का प्रतीक रहा जैसे तानाशाही फासीवादियों की काली टोपी। मानवता और सहृदयता विरोधी फासीवादी विचारधारा जब अन्य देशों में पहुँची तो उसके सिर पर भी काली टोपी ही रही। नकारात्मकता और निराशा का रंग भी काला ही माना गया है अत: जिनकी राजनीतिक सोच ‘डर’ और ‘अविश्वास’ जैसे काले-विचारों से फलती-फूलती है, वो इसे सिर पर लिए घूमते हैं।

सच तो ये है कि हर रंग प्रकृति से ही प्राप्त होता है और सकारात्मक लोग किसी भी रंग को नकारात्मक नहीं मानते हैं। रंगों के प्रति सकारात्मक विविधता की जगह; जो लोग नकारात्मक विघटन-विभाजन की दृष्टि रखते हैं, उनके प्रति भी बहुंरगी सद्भाव रखना चाहिए क्योंकि ये उनका नहीं, उनकी प्रभुत्ववादी एकरंगी संकीर्ण सोच का कुपरिणाम है। ऐसे लोगों के मन-हृदय को परिवर्तित करने के लिए बस इतना समझाना होगा कि ‘काले रंग की अंधेरी रात के बाद ही लालिमा ली हुई सुबह’ का महत्व होता है, ये पारस्परिक रंग-संबंध ही जीवन में आशा और उत्साह का संचार करता है। उन्होंने कहा कि अच्छा-बुरा कोई रंग नहीं, नज़रिया होता है।

Advertisement