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युवाओं से बोले अन्ना हजारे- 25 साल की उम्र में व्यर्थ लगने लगी थी जिंदगी, फिर बनाया जीवन का ध्येय

By संतोष सिंह 
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नई दिल्ली। एशिया का सबसे प्रतिष्ठित श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स तीन जुलाई शनिवार को टेडएक्स कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। इस कार्यक्रम को मुख्य मकसद युवाओं में छिपी नवोन्मेषी क्षमता को निखारने और उन्हें विचारों के जरिए नई परिभाषाएं गढ़ने का अवसर देना है। इसमें पर्वतारोही अजीत बजाज, गीतकार जावेद अख्तर और अन्ना हजारे ने युवाओं का मार्गदशन कर चुके हैं। अभी कई और शख्सियतें युवाओं का मार्गदर्शन करेंगी। ‘टेडेक्स एसआरसीसी’ कार्यक्रम की थीम ‘पहचान की पहेली’ रखी गई है।

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कार्यक्रम की शुरुआत एक वीडियो दिखाने के साथ की गई, जिसमें सवाल उठाए गए कि आखिर हम क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं, कहां और किसके लिए कर रहे हैं? बता दें कि ‘टेडएक्स एसआरसीसी’ में शामिल होने वाले युवा नए विचारों को तो सामने रखेंगे ही, इसके साथ ही दुनिया के विभिन्न हिस्सों में हुए नूतन अनुसंधानों से भी रूबरू कराएंगे।

मुझे भी आया था आत्महत्या का ख्याल: अन्ना हजारे

सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि युवावस्था में मन में बहुत अलग-अलग ख्याल आते हैं। उनके मन में भी ऐसे ख्याल आए।  उन्होंने कहा कि 25 साल की उम्र में मेरे मन में सवाल आने लगे कि आखिर जीवन क्या है? किस लिए जीते हैं लोग? इसके बाद आत्महत्या के ख्याल मन में आने लगे। उन्होंने कहा कि यह एक दौर था जब जिंदगी एकदम व्यर्थ लगने लगी।

अन्ना हजारे को कैसे मिली जीवन जीने की प्रेरणा?

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उन्होंने कहा कि इसी दौरान किसी काम से दिल्ली जाना हुआ। दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक बुक स्टॉल पर स्वामी विवेकानंद की किताब दिखाई दी, जिसे खरीद लिया। किताब को पढ़ा तो जिंदगी की डोर हाथ लग गई। विवेकानंद ने लिखा था कि पूरे जीवन का ध्येय बनाइए। ध्येय सुनिश्चित करने के बाद मंजिल की ओर से आगे बढ़िए। जब मंजिल में पर चलेंगे तो कई तरह की मुसीबतें आएंगी। बस तभी मुझे अपने सवालों का जवाब मिल गया और उसके बाद निश्चित किया कि सेवा करनी है। अन्ना ने कहा कि बस चल पड़ा मंजिल पर, कई तरह की मुश्किलें भी आईं। खाने को पैसे नहीं, बस में सफर के लिए पैसे नहीं, कहीं जाने पर ठहरने के पैसे नहीं। लेकिन बढ़ता गया। छोटे-छोटे प्रयास करता गया और उनमें सफलता भी मिली।

जिंदगी का ध्येय सुनिश्चित करिए

84 वर्षीय अन्ना हजारे ने युवाओं से धूम्रपान, तंबाकू और शराब या अन्य तरह नशा न करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ये कोई अच्छी चीज नहीं है। उन्होंने युवा शक्ति से अपील की कि युवाओं में शक्ति का भंडार है, देश को युवाओं की जरूरत है। देश में तमात तरह की समस्याएं हैं, जिनको युवा ही खत्म कर सकते हैं। इस दौरान उन्होंने दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए आंदोलन समेत कई अन्य आंदोलनों और कार्यों का जिक्र किया। उन्होंने युवाओं से कहा कि देश में अलग-अलग क्षेत्रों में आप लोगों की जरूरत है। आप  जिंदगी का ध्येय बनाइए और चल पढ़िए अपनी मंजिल पर।

सपने देखना मत छोड़िए : जावेद अख्तर

गीतकार जावेद अख्तर ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि लाइफ इस शेड्स ऑफ कलर है। उन्होंने कहा कि जिंदगी इंद्रधनुष के रंगों सी सतरंगी है। कोरोना संकट का जिक्र करते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि अंधेरा कितना भी हो, लेकिन भरोसा रखिए कि हर रात के बाद सवेरा होता है। उम्मीद की किरणों के साथ सूरज उगता ही है। उन्होंने कहा कि जिंदगी भी इसी तरह चलती है। तमाम मुश्किलें आईं और आगे भी आती रहेंगी, लेकिन जिदंगी को रुकने मत दीजिए, सपने देखना मत छोड़िए और उनको पूरा करने के लिए जान लगा दीजिए।

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धर्म, कला- संस्कृति को धर्म को समझिए और गर्व कीजिए

कार्यक्रम की थीम ‘पहचान की पहेली’ का जिक्र करते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि खुद की क्षमताओं को निखारिए और अपनी पहचान बनाइए। उन्होंने कहा कि अपनी राष्ट्रीयता, अपना धर्म, अपनी कम्युनिटी, अपनी कला, अपनी संस्कृति हर चीज को समझिए और उस गर्व कीजिए। ये सब हमारी पहचान से जुड़े हैं। वहीं धर्म को लेकर पूछ गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि न्याय और समानता दोनों ही मानवता के धर्म हैं। इनके लिए खड़े रहिए।  बच्चों को लेकर माता-पिता को फैसले लेने चाहिए या नहीं?

इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हर माता-पिता को बच्चों के साथ खड़ा होना चाहिए, लेकिन फैसले उन्हें खुद लेने देना चाहिए। मैंने अपने बच्चों के साथ यही किया है। जावेद अख्तर ने अपनी कविता ‘अंधेरे का समंदर’ शीर्षक से एक कविता सुनाकर अपना संबोधन समाप्त किया।

अजीत बजाज ने अपनी कहानी सुनाकर बढ़ाया युवाओं का हौंसला

पर्वतारोही अजीत बजाज ने युवाओं को संबोधित करते हुए अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि राफ्टिंग और स्कीइंग करना मेरी जिंदगी की सबसे कीमती कमाई है। इससे बेहतर मेरे लिए कुछ नहीं हो सकता था। उन्होंने कहा कि मुझे बचपन से ही पहाड़ियों पर चढ़ने का शौक था। वह 12 वर्ष साल की उम्र में 15 सौ फीट ऊंची चोटी पर चढ़ गया था। 16 साल की उम्र में हनुमान टीबा नामक स्थान पर वह 5 हजार ऊंची फीट चोटी पर चढ़ा था। इस तरह मेरा सफर आगे बढ़ता चला गया। मेरे बचपन के इस सपने को पूरा करने में मेरे माता-पिता ने मेरा समर्थन किया।

अजीत बजाज ने अपनी कहानी सुनाते हुए युवाओं का हौसला बढ़ाया। उन्होंने कहा कि जब मैंने 21वां जन्मदिन 23000 फीट ऊंचाई पर मनाया। वर्ष 2012 में अजीत ने नार्थ पोल और साउथ पोल पर चढ़ाई करके विश्व रिकॉर्ड बनाया था। उक्त रिकार्ड की बदौलत भारत सरकार ने उन्हें पदमश्री अवॉर्ड से नवाजा था। लेकिन सबसे बड़ी खुशी तब मिली, जब 2018 में मैंने अपनी बेटी दीया के साथ माउंट एवरेस्ट फतह किया।

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मुश्किलों आएंगी, लेकिन आगे बढ़ते रहिए

अजीत बजाज ने कहा कि मेरे शौक के चलते दुनिया भर में मुझे पहचान मिली। स्विट्जरलैंड और रूस समेत कई देशों से सम्मान मिला। अगर मैं अपने शौक को फॉलो नहीं करता तो शायद आज जो हूं वो नहीं होता।’ इसके साथ ही उन्होंने युवाओं से अपने शौक को जिम्मेदारी के साथ फॉलो करने की सलाह दी।  उन्होंने युवाओं से कहा कि लोग क्या कहते हैं, उस पर गौर मत कीजिए। परिवार और दोस्तों के समर्थन से सफलता की सीढ़िया चढ़ते जाइए। नॉर्थ पोल (उत्तरी ध्रुव) तक स्की करने वाले अजीत बजाज ने कहा कि शुरुआत में मुश्किलें आती हैं, लेकिन रुकना नहीं है। आपको अपने जुनून के साथ आगे बढ़ते जाना है।

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