Buddha Purnima 2024 Story : आज वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि है। ऐसे में आज बुद्ध पूर्णिमा का उत्सव मनाया जा रहा है। सनातन धर्म में बुद्ध पूर्णिमा का खास महत्व है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, बुद्ध पूर्णिमा आज (23 मई) को मनाई जा रही है। शास्त्रों में वर्णित है कि वैशाख पूर्णिमा तिथि पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल वैशाख पूर्णिमा तिथि पर बुद्ध जयंती मनाई जाती है। इस दिन भगवान बुद्ध की पूजा-उपासना की जाती है। इसी शुभ तिथि पर गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में हुआ था। गौतम बुद्ध ने 35 वर्ष की आयु में निर्वाण प्राप्त कर लिया था। इस दिन दान, जप और स्नान का काफी खास महत्व होता है। इस दिन भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना की जाती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें भगवान बुद्ध के जो फॉलोअर्स होते हैं वे इस दिन को बड़े उत्साह और पारंपरिक तरीके से सेलिब्रेट करते हैं।
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वैशाख पूर्णिमा पर पवित्र नदी के जल से स्नान के बाद घर में भगवान सत्यनारायण की पूजा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा है। माना जाता है कि चंद्रमा को अर्घ्य देने से मानसिक शांति मिलती है और सुख-समृद्धि का वास होता है।
सिद्धार्थ कैसे बने बुद्ध?
बचपन में लोग बुद्ध को सिद्धार्थ कहा करते थे। ऐसी कथा प्रचलित है कि एक बार सिद्धार्थ घर के बाहर टहलने के लिए निकले तो उन्हें रास्ते में एक बीमार व्यक्ति नजर आया। जिसे देखने के बाद सिद्धार्थ के मन में सवाल खड़ा हुआ कि क्या एक समय वह भी बीमार पड़ेगा, बूढ़ा हो जाएगा और फिर मर जाएगा? जब सिद्धार्थ पानी की खोज में निकले तो रास्ते में उन्हें एक सन्यासी मिला। जिसने सिद्धार्थ को मुक्ति के मार्ग के बारे में विस्तार से बताया। इस घटना के बाद ही राजकुमार सिद्धार्थ ने सन्यास ग्रहण कर लिया।
तपस्या के बाद हुई ज्ञान की प्राप्ति
भगवान बुद्ध 29 वर्ष की अवस्था में घर छोड़कर सन्यास की राह पर निकल पड़े। इस दौरान उन्होंने एक पीपल के वृक्ष के नीचे 6 वर्षों तक तपस्या की। कहते हैं कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही पीपल के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिस पीपल वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई वह बिहार के बोधगया में स्थित है। भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ (में दिया था।
बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य है संपूर्ण मानव समाज से दुःख का अंत। “मैं केवल एक ही पदार्थ सिखाता हूँ – दुःख है, दुःख का कारण है, दुःख का निरोध है, और दुःख के निरोध का मार्ग है” (बुद्ध)। बौद्ध धर्म के अनुयायी अष्टांगिक मार्ग पर चलकर और जीकर अज्ञानता और दुःख से मुक्ति और निर्वाण पाने की कोशिश करते हैं।