नई दिल्ली। देश भर में दीपावली की तिथि को लेकर अनावश्यक भ्रम बना हुआ है। यह त्योहार, 20 या 21 अक्तूबर में से कौन से दिन मनाया जाए? कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय महामंत्री व दिल्ली से चांदनी चौक के सांसद प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि हमने अपने संगठन की वेद एवं ज्योतिष कमेटी के संयोजक व महाकाल की नगरी उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य आचार्य दुर्गेश तारे (Astrologer Acharya Durgesh Tare) से इस विषय पर स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया था। ज्योतिषाचार्य दुर्गेश तारे ने बताया है कि शास्त्रीय विधान में अमावस्या में प्रदोष काल में दीपावली पूजन हो, जो 20 अक्टूबर को ही है।
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बता दें कि दीपावली, भारत का सबसे बड़ा पर्व है, जिसे देश में श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि व्यापारियों के लिए दीपावली पर्वों की श्रृंखला का विशेष महत्व है। खंडेलवाल ने बताया कि इस वर्ष दीपावली को लेकर काफी भ्रांतियां है। दीपावली 20 या 21 अक्तूबर को मनाई जाए, इसे लेकर बेहद मत विभिन्नता है। प्रत्येक भारतीय पर्व को उसकी तिथि गणना एवं धर्मशास्त्र के नियमों के अनुसार ही मनाने का शास्त्र निर्देश करता है, किंतु आधुनिक समाज में शास्त्र की जानकारी के अभाव में कई बार भ्रम उत्पन्न हो जाता है। यही कारण है कि अनेक अवसरों पर दो-दो तिथियों के चलते विवाद की स्थिति बन जाती है। इस वर्ष दीपावली की तिथि को लेकर भी इसी प्रकार की भ्रांति और असमंजस का वातावरण बना हुआ है।
प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि यद्यपि शास्त्र सम्मत दीपावली मनाने का निर्णय धर्माचार्यों द्वारा किया जाना चाहिए, किंतु देश भर के व्यापारियों में बने भ्रम को दूर करने की दिशा में कैट ने अपनी वेद एवं ज्योतिष कमेटी के संयोजक तथा महाकाल की नगरी उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य आचार्य दुर्गेश तारे से इस विषय पर स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया, ताकि देशभर के व्यापारियों को सही सलाह दी जा सके। तारे ने विक्रम संवत 2082 के दीपोत्सव पर्व के संबंध में स्वयं शास्त्रों का अध्ययन किया और देश के अन्य प्रकांड विद्वानों से विमर्श के पश्चात कहा कि इस वर्ष दीपावली 20 अक्टूबर को ही मनाया जाना शास्त्र सम्मत है। उन्होंने बताया कि “चन्द्रोदयव्यापिनी ग्राह्या तत्पूर्वदिनेव चन्द्रोदयत्याप्तौ पूर्वा।”
नरकचतुर्दशी 20 अक्टूबर को प्रातः 5 बजे अरुणोदय काल अभ्यंग स्नान, तत्पश्चात कार्तिक स्नान, यमतर्पण, दीपदान आदि करना श्रेष्ठ है। तारे के मुताबिक, 20 अक्टूबर को, कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रदोष काल में दीपावली मनाना शुभ है। शास्त्रों में दीपावली लक्ष्मी पूजन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या के अनुसार करने का निर्देश प्राप्त होता है। इस वर्ष 20 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल में ही है तथा मध्यरात्रि व्यापिनी भी उसी दिन प्राप्त हो रही है। अतः संपूर्ण भारतवर्ष में 20 अक्टूबर को ही दीपावली मनाना शास्त्रसम्मत माना जाएगा।
उन्होंने बताया कि 21 अक्टूबर को अमावस्या प्रदोष काल में केवल स्पर्श मात्र है और वह भी एक घटिका से कम समय के लिए प्राप्त हो रही है। अतः 21 अक्टूबर को दीपावली पर्व मनाना उचित नहीं होगा। तारे ने कहा कि 20 अक्टूबर को संपूर्ण रात्रि और प्रदोष काल में भी पर्वोत्सव हेतु अमावस्या होने से समस्त धर्मशास्त्रकारों ने दीपावली पर्व 20 अक्टूबर को ही मनाने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि “प्रदोषार्द्धव्यापिनीमुख्या” अर्थात जो अमावस्या प्रदोष और अर्धरात्रि दोनों में व्याप्त हो, वही मुख्य होती है। यदि दोनों ही दिन काल में हों तो बाद वाली मानी जाती है। दीपावली पूजन हेतु प्रदोष काल समय मुख्य है। अर्धरात्रि में कोई मुख्य अनुष्ठान विधान आदि सकाम है, इस प्रकार प्रदोष व्यापिनी मुख्य काल होने से सिद्ध होता है कि अन्य सभी कर्म गौण हैं, जो मुख्य के भाव में ही लिए जा सकते हैं।
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तारे ने आगे बताया कि प्रदोष व्यापिनी होने के कारण कार्तिक कृष्ण धन त्रयोदशी और धनवंतरी जयंती 18 अक्टूबर को ही मनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि वेद में कहा गया है- “कार्तिकेकृष्ण पक्षे त्रयोदश्यां गुरोर्दिने। हस्त नक्षत्र संयुक्ते यामे प्राथमिके निशि। धन्वंतर्याख्यया चाहं धनंगुप्तमिवादते। अवतीर्णोयतस्तस्मात् सा तिथि सर्वकामदा।” अर्थात भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव इस शास्त्रीय प्रमाण से रात्रि के प्रथम प्रहर अर्थात प्रदोष काल में हुआ है। अतः यह सारा योग 18 अक्टूबर को होने से उसी दिन धन त्रयोदशी एवं धनवंतरी जयंती शास्त्रीय विधि से मान्य है। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी दिनांक 19 अक्टूबर को सायंकाल यम दीपदान आदि कार्य किया जाना चाहिए। तारे ने कहा कि दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है, जो प्रतिपदा अमावस्या युक्त होना चाहिए। उसमें कहा गया है कि “प्रतिपत्संमुखी कार्या या भवेदपराह्निकी।” अर्थात गोवर्धन पूजन के दिन प्रतिपदा होना चाहिए, जो 21 तारीख को नहीं हो रही है। इसलिए 22 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा मनाई जानी चाहिए।
निर्णय सिंधु में कहा गया है —“प्रातर्गोवर्धनं पूजयेत्।” अर्थात प्रातःकाल में गोवर्धन पूजन होना चाहिए और उसी दिन अन्नकूट व गौ पूजन करना शास्त्र सम्मत है। तारे ने बताया कि भाई दूज निर्विवाद रूप से 23 अक्टूबर को ही मनाई जानी चाहिए, तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी -1 नवम्बर को देव प्रबोधिनी एकादशी (देव उठनी एकादशी) पर्व मनाना शास्त्र सम्मत है।