Advertisement
  1. हिन्दी समाचार
  2. उत्तर प्रदेश
  3. राष्ट्रपिता से राष्ट्रपति तक की यात्रा का साक्षी चारबाग रेलवे स्टेशन

राष्ट्रपिता से राष्ट्रपति तक की यात्रा का साक्षी चारबाग रेलवे स्टेशन

By शिव मौर्या 
Updated Date

लखनऊ। उत्तर रेलवे के चारबाग रेलवे स्टेशन की नींव वर्ष 1914 में अंग्रेजों ने रखी थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर देश के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद तक की लखनऊ यात्रा का साक्षी है ये खूबसूरत स्टेशन। आज का दिन राजधानी लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के लिए इतिहास में दर्ज हो गया। दरअसल सोमवार को प्रेसिडेंशियल ट्रेन से देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद लखनऊ पहुंचें। रेलवे रिकॉर्ड के मुताबिक पहली बार कोई राष्ट्रपति ट्रेन से लखनऊ आए हैं।

पढ़ें :- संदेशखाली को लेकर ममता सरकार पर जेपी नड्डा का निशाना, कहा-जनता देगी करारा जवाब

यहीं हुई थी गांधी-नेहरू की पहली मुलाकात 
जानकारी के मुताबिक करीब 115 साल पहले स्वतंत्रता आंदोलन के लिए महात्मा गांधी 26 दिसम्बर 1916 को पहली बार लखनऊ आए थे। मौका था कांग्रेस के अधिवेशन का, जिस दौरान वह पांच दिनों तक शहर में रहे। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बापू से पहली मुलाकात लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन में हुई थी। तकरीबन 20 मिनट की मुलाकात में पंडित जी बापू के विचारों से काफी प्रभावित हुए। जवाहर लाल नेहरू अपने पिता मोती लाल नेहरू के साथ आए थे। इस मुलाकात का जिक्र नेहरू जी ने अपनी आत्मकथा में भी किया है। जिस जगह पर गांधी नेहरू की मुलाकात हुई वहां आजकल स्टेशन की पार्किंग है। इस मिलन की निशानी के तौर पर उस जगह पर एक पत्थर भी लगा है।

खूबसूरत स्टेशनों में शुमार
देश के सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशनों में शुमार चारबाग को ऊपर से देखने पर ये शतरंज की बिसात जैसा लगता है। दूसरे शहर से आने वाले शख्स के कदम जैसे ही चारबाग रेलवे स्टेशन पर पड़ते हैं यहां की खूबसूरती और भव्यता उसे दीवाना बना देती है।

पहले नाम था चहार बाग
नवाब आसफुद्दौला के पसंदीदा बाग ऐशबाग की तरह चारबाग भी शहर के खूबसूरत बाग में से एक था। लखनऊ के इतिहासकार स्वर्गीय योगेश प्रवीन ने अपने कई लेखों और किताबों में चारबाग रेलवे स्टेशन का जिक्र किया है। उनके मुताबिक, ‘किसी चौपड़ की तरह चार नहरें बिछाकर चार कोनों पर चार बाग बनवाएं गए थे। इस तरह के बागों को फारसी जबान में चहार बाग कहा जाता है। यहीं चाहर बाग बाद में चारबाग में तब्दील हो गया।

अंग्रेजों ने रखी थी स्टेशन की नींव 
लखनऊ के इतिहासकारों के मुताबिक, लखनऊ के मुनव्वर बाग के उत्तर में चारबाग की बुनियाद पड़ी थी। जब नवाबी दौर खत्म हुआ तो इस बाग की रौनक भी फीकी पड़ गई। उसी दौरान अंग्रेज सरकार ने बड़ी लाइन के एक शानदार स्टेशन की योजना बनाई। अंग्रेज अधिकारियों को मोहम्मद बाग और आलमबाग के बीच का ये इलाका बहुत पसंद आया। ये वो दौर था जब ऐशबाग में लखनऊ का रेलवे स्टेशन था। चारबाग और चार महल के नवाबों को मुआवजे में मौलवीगंज और पुरानी इमली का इलाका देकर यहां ट्रैक बिछा दिए गए। 21 मार्च 1914 को बिशप जॉर्ज हरबर्ट ने इस की बुनियाद रखी

पढ़ें :- Heat Wave Havoc : आसमान से बरसती आग और गर्म हवा के थपेड़ों ने किया बुरा हाल; यूपी-बिहार समेत कई राज्यों में अलर्ट जारी

70 लाख आई थी लागात
उस दौर के प्रसिद्ध वास्तुकार जैकब ने इस इमारत का नक्शा तैयार किया। चारबाग स्टेशन के बनने में उस वक्त 70 लाख रुपये खर्च हुए। राजपूत शैली में बने इस भवन में निर्माण कला के दो कौशल दिखाई देते हैं। पहला ऊपर से देखने पर इस इमारत के छोटे-बड़े छतरीनुमा गुंबद मिलकर शतरंज की बिछी बिसात का नमूना पेश करते हैं।

बाहर नहीं जाती ट्रेन की आवाज
अपनी जिन खूबियों की वजह से चारबाग स्टेशन का शुमार मुल्क के खास स्टेशनों में होता है उन्हीं में से एक है यहां ट्रेन की आवाज बाहर न आना है। योगेश बताते हैं कि चाहे जितने शोरशराबे के साथ ट्रेन प्लेटफार्म पर आए उसकी आवाज स्टेशन के बाहर नहीं आती।

विश्वस्तरीय बनेगा चारबाग रेलवे स्टेशन
चारबाग रेलवे स्टेशन को 556.8 करोड़ रुपये की कुल लागत से डिजाइन-बिल्ड-ऑपरेट-फाइनेंस-ट्रांसफर (डीबीएफओटी) मॉडल पर दो चरणों में पुनर्विकसित किया जाएगा। एयर-कॉनकोर्स, फुट-ओवर ब्रिज, लिफ्ट और एस्केलेटर व दिव्यांग यात्रियों के अनुकूल सुविधाएं आदि शामिल हैं। पहले चरण का पुनर्विकास तीन वर्षों में होगा जिसपर 442.5 करोड़ रुपये की लागत आएगी। जबकि दूसरे चरण में दो वर्षों में 114.3 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

Advertisement