नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार (Modi Government) 1 अप्रैल से 6 फीसदी “गूगल टैक्स” (Equalisation Levy) को खत्म करने जा रही है। यह टैक्स उन विदेशी टेक कंपनियों पर लगाया गया था, जो भारत में डिजिटल सेवाएं देती हैं, लेकिन यहां उनकी कोई फिजिकल उपस्थिति नहीं है। इस कदम को अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव कम करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
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गूगल टैक्स क्यों लाया गया था?
2016 में लागू किया गया गूगल टैक्स (Equalisation Levy) का उद्देश्य विदेशी डिजिटल कंपनियों से टैक्स वसूलना था, ताकि भारतीय कंपनियों और बहुराष्ट्रीय टेक कंपनियों के बीच बराबरी का माहौल बनाया जा सके। चूंकि गूगल, फेसबुक (अब मेटा) जैसी कंपनियां भारत में विज्ञापन सेवाओं से मोटी कमाई करती हैं, लेकिन उन्हें पारंपरिक टैक्स ढांचे में टैक्स नहीं देना पड़ता था, इसलिए यह टैक्स लागू किया गया था।
भारत ने गूगल टैक्स क्यों हटाया?
अमेरिका लंबे समय से इस टैक्स को हटाने की मांग कर रहा था, क्योंकि यह अमेरिकी टेक कंपनियों के लिए भेदभावपूर्ण माना जा रहा था। इस टैक्स के कारण भारतीय कंपनियों के लिए डिजिटल विज्ञापन महंगा हो गया था, जिससे कई छोटे व्यवसाय प्रभावित हो रहे थे। भारत अब अंतरराष्ट्रीय टैक्सेशन के नए नियमों को अपनाने की दिशा में बढ़ रहा है, जिससे यह टैक्स अप्रासंगिक हो सकता है।
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गूगल, मेटा और अन्य टेक कंपनियों को क्या फायदा होगा?
विदेशी डिजिटल कंपनियों को अब भारत में 6 फीसदी अतिरिक्त कर नहीं देना होगा, जिससे उनकी मुनाफा मार्जिन बढ़ेगा। भारतीय कंपनियों को डिजिटल विज्ञापन सेवाएं सस्ती मिलेंगी, जिससे वे अपने मार्केटिंग बजट को और प्रभावी बना सकेंगी। स्टार्टअप और छोटे व्यवसायों को फायदा होगा, क्योंकि उनके लिए ऑनलाइन विज्ञापन की लागत घटेगी।
क्या यह टैक्स हटाने का फैसला सही?
विशेषज्ञों का मानना है कि Equalisation Levy से सरकार को ज्यादा टैक्स संग्रह नहीं हो रहा था, बल्कि यह भारतीय कंपनियों के लिए खर्च बढ़ा रहा था। अब टैक्स हटने से डिजिटल विज्ञापन सस्ता होगा और टेक कंपनियों के साथ भारत के व्यापारिक संबंध भी मजबूत होंगे। हालांकि, सरकार को अब डिजिटल कंपनियों से टैक्स वसूलने के लिए नए नियमों की जरूरत होगी।