लखनऊ। पिछले कई महीनों से आयातित कोयला खरीदने का विरोध कर रही यूपी सरकार आखिरकर हरी झंडी दिखा दी है। बताया जा रहा है कि केंद्र के दबाव में सरकार ने ये आयातित कोयला खरीदने का निर्णय लिया है। अगस्त और सितंबर में 5.5 लाख मीट्रिक टन आयातित कोयले की खरीद के प्रस्ताव को मंगलवार को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दे दी गई। इसके साथ ही अब प्रदेश के बिजलीघरों में घेरलू कोयले के साथ साथ आयातित कोयले के इस्तेमाल का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि, उपभोक्ता परिषद ने सरकार के इस फैसले पर एतराज जताया है। परिषद के अध्यख अवधेश वर्मा का कहना है कि केंद्र के दबाव में यूपी सरकार को भी आयतित कोयला लेना पड़ सकता है। उनका कहना है कि, इसका भार भले ही उपभोक्ताओं पर नहीं होगा लेकिन कहीं ना कहीं इसका खामियाजा राज्य की जनता को भुगतना पड़ेगा।
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पावर कार्पोरेशन को को सब्सिडी देगी सरकार
आयातित कोयले से बिजली की उत्पादन लागत में होने वाली वृद्धि की भरपाई के लिए राज्य सरकार पावर कार्पोरेशन को 1098 करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में उपलब्ध कराएगी। दरअसल, सरकार ये सब्सिडी इसलिए दे रही है कि जनता के ऊपर इसका असर न पड़े। अपर मुख्य सचिव ऊर्जा अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि कोल इंडिया ने प्रदेश के बिजलीघरों के कोल आवंटन में कमी कर दी है जिससे आने वाले दिनों में बिजली संकट पैदा होने की आशंका थी।
इसके चलते आयातित कोयला खरीदने का फैसला किया गया है।
अगस्त में कोयले का हो सकता है संकट
बताया जा रहा है कि प्रदेश के बिजलीघरों के लिए रोजाना 15-17 रैक कोयले का आवंटन है लेकिन कोल इंडिया की ओर से 11-12 रैक कोयले की ही आपूर्ति की जा रही है। ऐसे में अगस्त-सितंबर में बिजलीघरों में कोयले का भारी संकट खड़ा होने की आशंका है।
केंद्र के दबाव में लेने पर फैसला
बताया जा रहा है कि बिजली संकट के बीच केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय मई से ही यूपी पर आयातित कोयले की खरीद का दबाव बना रहा है। हालांकि, पिछले 20 मई को विशेष सचिव ऊर्जा अनिल कुमार ने आदेश जारी किया था कि प्रदेश के सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के बिजलीघर कोयला आयात नहीं करेंगे। इस आदेश के बाद केंद्र की तरफ से लगातार पड़ रहे दबाव के कारण सरकार को अब आयातित कोयला खरीदना पड़ेगा।
एक निजी घराने को पहुंचेगा लाभ
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने सरकार के इस फैसले पर उंगुली उठाई है। उन्होंने कहा कि देश में डोमेस्टिक कोयले की लागत करीब 3000 प्रति मैट्रिक टन है। वहीं, विदेशी कोयले की लागत अब 20000 रुपया प्रति मैटिक टन के करीब पहुंच गई है। ऐसे में सीधे तौर पर भले ही इसका खामियाजा प्रदेश के उपभोक्ताओं पर ना पडे लेकिन अपरोक्ष रूप से प्रदेश पर कोई भी भार जब पडेगा उसका खामियाजा उस देश की प्रदेश की जनता को भुगतना पडता है। परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि, बडे दुर्भाग्य की बात है कि इस पूरी डील में एक निजी घराने का सबसे ज्यादा लाभ होने वाला है और सबसे ज्यादा नुकसान उस राज्य की जनता का। साथ ही कहा कि सब मिलाकर उपभोक्ता परिषद अपनी लडाई आगे जारी रखेगा और विधिक तरीके से अपनी पेस बंदी के तहत प्रदेश के उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए संघर्ष करता रहेगा।