नई दिल्ली। उन्नाव रेप केस (Unnao Rape Case) में सजायाफ्ता भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर (Former MLA Kuldeep Singh Sengar) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से सोमवार को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पूर्व विधायक कुलदीप सेंगर को राहत देने वाले दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के फैसले पर रोक लगा दी है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि आरोप गंभीर हैं। इस अपराधी को किसी भी मामले में जमानत नहीं मिलनी चाहिए। जहां एक बेटी अपने संग हुए अपराध का न्याय मांग रही है। वहीं एक और बेटी अपने पिता के लिए आज भी न्याय का इंतजार कर रही है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं पूर्व भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर की छोटी बेटी डॉक्टर इशिता सेंगर की। उन्होंने सोशल मीडिया मंच एक्स पर एक ट्वीट किया है।
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डॉक्टर इशिता सेंगर (Daughter Ishita Sengar) ने देश की न्याय व्यवस्था पर विश्वास रखते हुए 8 सालों तक चुप्पी साधे रखने वाली एक बेटी ने अब अपनी पीड़ा सार्वजनिक रूप से सामने रखी है। खुद को थकी हुई, डरी हुई, लेकिन अब भी उम्मीद से जुड़ी हुई बताते हुए उसने कहा है कि उसकी खामोशी कमजोरी नहीं, बल्कि संस्थाओं पर भरोसे का नतीजा थी। दरअसल, कुलदीप सेंगर की छोटी बेटी डॉक्टर इशिता सेंगर ने एक्स पर पोस्ट किया। उन्होंने लिखा कि ‘मैं एक पत्र बेटी के रूप में लिख रही जो थकी और डरी हुई है। 8 साल तक मैंने और मेरे परिवार ने न्याय का इंतजार किया है। यह मानते हुए कि अगर हम सब कुछ सही तरीके से करेंगे, तो सच अपने आप सामने आ जाएगा। हमने कानून पर भरोसा किया। हमने संविधान पर भरोसा किया। हमने भरोसा किया कि इस देश में न्याय शोर, हैशटैग या जनता के गुस्से पर निर्भर नहीं करता। मगर, अब मेरा विश्वास टूट रहा है।
लड़ेंगे, हारेंगे नहीं ।#UnnaoCaseFacts #UnnaoCase #KuldeepSinghSengar https://t.co/I1nR5s8uyk
— Aishwarya Sengar (@SengarAishwarya) December 29, 2025
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उन्होंने आगे लिखा कि मेरी पहचान एक लेबल तक सीमित रह गई है। वो है भाजपा विधायक की बेटी। जैसे कि यह मेरी इंसानियत को खत्म कर देता है। जैसे कि सिर्फ इसी वजह से मैं निष्पक्षता, सम्मान, या बोलने के अधिकार की हकदार नहीं हूं। जिन लोगों ने मुझसे कभी मुलाकात नहीं की, कभी कोई दस्तावेज नहीं पढ़ा, कभी कोई कोर्ट रिकॉर्ड नहीं देखा, उन्होंने तय कर लिया है कि मेरी जिंदगी की कोई कीमत नहीं है। इन सालों में, मुझे सोशल मीडिया पर अनगिनत बार कहा गया है कि मैं जिंदा क्यों हूं? अगर जिंदा हूं तो उसके लिए मेरा रेप किया जाना चाहिए, मुझे मार दिया जाना चाहिए, या सजा दी जानी चाहिए। यह नफरत काल्पनिक नहीं है। यह रोज की बात है। यह लगातार है। जब आपको एहसास होता है कि इतने सारे लोग मानते हैं कि आप जीने के भी लायक नहीं हैं, तो यह आपके अंदर कुछ तोड़ देता है।
उन्होंने यह भी कहा कि हमने चुप्पी इसलिए नहीं चुनी क्योंकि हम ताकतवर थे, बल्कि इसलिए कि हमने संस्थानों पर भरोसा किया। हमने विरोध प्रदर्शन नहीं किए। हमने टेलीविजन डिबेट में चिल्लाया नहीं। हमने पुतले नहीं जलाए या हैशटैग ट्रेंड नहीं कराए। हमने इंतजार किया क्योंकि हमारा मानना था कि सच को तमाशे की जरूरत नहीं होती। उस चुप्पी की हमें क्या कीमत चुकानी पड़ी? हमसे हमारी गरिमा धीरे-धीरे छीन ली गई है। हमें आठ सालों तक हर दिन गाली दी गई, मजाक उड़ाया गया और अमानवीय व्यवहार किया गया। हम आर्थिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से थक चुके हैं। एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस भागते रहे, चिट्ठियां लिखते रहे, फोन करते रहे, अपनी बात सुने जाने की भीख मांगते रहे… ऐसा कोई दरवाजा नहीं था, जिस पर हमने दस्तक न दी हो। ऐसा कोई अधिकारी नहीं था जिससे हमने संपर्क न किया हो। ऐसा कोई मीडिया हाउस नहीं था जिसे हमने न लिखा हो। फिर भी किसी ने नहीं सुना।
हमारा सच किसी के काम का नहीं था
कुलदीप सेंगर की बेटी इशिता आगे कहती है कि हमारी किसी ने नहीं सुनी। इसलिए नहीं कि तथ्य कमजोर थे, इसलिए नहीं कि सबूतों की कमी थी। बल्कि इसलिए कि हमारा सच किसी के काम का नहीं था। लोग हमें ताकतवर कहते हैं। मैं आपसे पूछती हूं कि किस तरह की ताकत एक परिवार को आठ सालों तक बेज़ुबान रखती है? यह कैसी ताकत है जिसका मतलब है कि आपका नाम रोज कीचड़ में घसीटा जाए और आप चुपचाप बैठे रहें, एक ऐसे सिस्टम पर भरोसा करते हुए जो आपकी मौजूदगी को मानने को भी तैयार नहीं है?
उन्होंने कहा कि आज मुझे सिर्फ अन्याय से नहीं, बल्कि डर से डर लगता है। एक ऐसा डर जिसे जानबूझकर पैदा किया गया है। एक ऐसा डर जो इतना ज़ोरदार है कि जज, पत्रकार, संस्थाएं और आम नागरिक, सभी पर चुप रहने का दबाव है। एक ऐसा डर जिसे यह पक्का करने के लिए बनाया गया है कि कोई हमारे साथ खड़े होने की हिम्मत न करे, कोई हमारी बात सुनने की हिम्मत न करे और कोई यह कहने की हिम्मत न करें- चलो तथ्यों को देखते हैं। यह सब होते हुए देखकर मैं अंदर तक हिल गई हूं। अगर सच्चाई को गुस्से और गलत जानकारी से इतनी आसानी से दबाया जा सकता है, तो मुझ जैसे लोग कहां जाएं? अगर दबाव और लोगों का उन्माद सबूतों और सही प्रक्रिया पर हावी होने लगे, तो एक आम नागरिक के पास सच में क्या सुरक्षा है?
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धमकी देने के लिए नहीं लिख रही
उन्होंने आगे कहा कि मैं यह चिट्ठी किसी को धमकी देने के लिए नहीं लिख रही हूं। मैं यह चिट्ठी सहानुभूति पाने के लिए नहीं लिख रही हूं। मैं यह इसलिए लिख रही हूं क्योंकि मैं बहुत डरी हुई हूं और क्योंकि मुझे अब भी विश्वास है कि कोई, कहीं, इतना ध्यान जरूर देगा कि हमारी बात सुने। हम कोई एहसान नहीं मांग रहे हैं। हम इसलिए सुरक्षा नहीं मांग रहे हैं कि हम कौन हैं। हम न्याय मांग रहे हैं क्योंकि हम इंसान हैं। कृपया कानून को बिना किसी डर के बोलने दें। कृपया सबूतों की जांच बिना किसी दबाव के होने दें। कृपया सच्चाई को सच्चाई ही माना जाए, भले ही वह लोकप्रिय न हो। मैं एक बेटी हूं जिसे अब भी इस देश पर विश्वास है. कृपया मुझे इस विश्वास पर पछतावा न करवाएं।