Afghanistan Crisis: बंदूखों के बल पर कब्जा जमाने वाले तालिबान (Taliban) की कूरता कम नहीं हो रही है। पिछले तीनो दिनों से अफगानिस्तान में तालीबानी अत्याचार (Taliban atrocities) चरम पर है। तालिबानी लड़ाके, बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग, प्रवासी सबको ढूंढ कर उन पर जुल्म कर रहा है। अफगानिस्तान में हो रही हिंसा और खून खराबे के बीच तालिबान के खिलाफ अफगानी नागरिक सड़कों पर उतर कर विरोध में हल्ला बोल दिया है।
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अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान की जंग खत्म नहीं हुई। अफगानिस्तान के कई इलाकों में इस संगठन को प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) ने खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है। और तालिबान से निपटने के लिए समर्थन जुटा रहे हैं। सालेह इस वक्त पंजशीर में हैं और उनके नेतृत्व में नर्दर्न अलायंस तालिबान के लड़ाकों का सामना करने के लिए तैयार हो रहा है। ऐसे में अफगानिस्तान गृहयुद्ध में फंसता दिख रहा है।
अफगानी सैनिकों ने वर्दी उतार दी और जान बचाने के लिए छिपे हुए हैं। तालिबान का सामना करने के लिए अफगानिस्तान के पास कोई नेता नहीं था। ऐसे समय में सालेह ने कमान संभाली है। उन्होंने खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित किया है। सालेह ने ऐलान किया है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वो तालिबान के आगे नहीं झुकेंगे।
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माना जाता है कि सालेह उत्तरी पंजशीर प्रांत में है। ये प्रांत लंबे समय से तालिबान विरोधी रहा है। यहां अब तक न तो विदेशी ताकतें पहुंच पाई हैं और न ही तालिबान कब्जा कर पाया है। सालेह के साथ अफगानिस्तान के सुप्रीम कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद भी हैं। ये दोनों एक ही विचारधारा के हैं। अहमद शाह मसूद को पंजशीर का शेर कहा जाता है। उन्होंने 1979 में सोवियत रूस के खिलाफ एक भयंकर प्रतिरोध का नेतृत्व करके अपनी प्रतिष्ठा बनाई। मसूद ने सोवियत संघ को पंजशीर में एंट्री करने से रोका था और तालिबान को भी। आज तक तालिबान यहां नहीं पहुंच पाया है।
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अफगान स्पेशल फोर्स में जो भी सैनिक बच गए थे, वो सभी अब पंजशीर चले गए हैं। वहां सालेह के नेतृत्व में नर्दर्न अलायंस के साथ एकजुट होकर तालिबान के खिलाफ तैयार हो रहे हैं।उत्तरी गठबंधन (नॉर्दर्न अलांयस) के अहमद मसूद ताजिक समुदाय से आते हैं। सालेह और मोहम्मदी भी ताजिक समुदाय से ही हैं। पंजशीर घाटी में ताजिक समुदाय की बहुलता है।