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Nuclear Reactor : अमेरिकी कंपनी भारत में बनाएगी परमाणु रिएक्टर ,  न्यूक्लियर समझौते में महत्वपूर्ण सफलता

By अनूप कुमार 
Updated Date

Nuclear Reactor : अमेरिकी कंपनी अब भारत में परमाणु रिएक्टर बना सकेंगी। अमेरिका के ऊर्जा विभाग (DoE) ने एक कंपनी को भारत में परमाणु रिएक्टर बनाने की मंजूरी दे दी है। इसी के साथ भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर होने के दो दशक बाद, इसकी व्यावसायिक संभावनाओं का दोहन करने का रास्ता साफ हो गया है।  अमेरिकी कंपनी को भारत में परमाणु रिएक्टरों का निर्माण और डिजाइन करने की अनुमति मिल जाएगी। DoE ने 26 मार्च को इस कंपनी को मंजूरी दी। यह मंजूरी ’10CFR810′ नाम के एक नियम के तहत दी गई है। यह नियम अमेरिका के परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1954 का हिस्सा है।

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यह प्राधिकरण होलटेक को कुछ शर्तों के साथ भारत में तीन फर्मों को “अवर्गीकृत लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (एसएमआर) प्रौद्योगिकी” हस्तांतरित करने की अनुमति देता है: इसकी क्षेत्रीय सहायक कंपनी होलटेक एशिया; टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड; और लार्सन एंड टूब्रो लिमिटेड। होलटेक इंटरनेशनल का प्रचार भारतीय-अमेरिकी क्रिस पी सिंह द्वारा किया जाता है, और इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी होलटेक एशिया 2010 से पुणे में एक इंजीनियरिंग इकाई का संचालन कर रही है और गुजरात के दाहेज में इसकी एक विनिर्माण इकाई है।

कैसे परमाणु रिएक्टर बनेंगे?
अमेरिकी कंपनी जो तकनीक देगी वह छोटे परमाणु रिएक्टर (SMR) बनाने की है। बता दें कि अमेरिकी कंपनी होल्टेक इंटरनेशनल को क्रिस पी सिंह नाम के एक भारतीय-अमेरिकी चलाते हैं। वहीं होल्टेक एशिया कंपनी साल 2010 से पुणे में काम कर रही है। इसका एक कारखाना गुजरात में भी है।

होलटेक के मूल अनुरोध में तीन अतिरिक्त प्रस्तावित भारतीय अंतिम उपयोगकर्ता शामिल थे: भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (एनपीसीआईएल), थर्मल यूटिलिटी एनटीपीसी लिमिटेड, और परमाणु ऊर्जा समीक्षा बोर्ड (एईआरबी)। लेकिन भारत सरकार ने इन तीन सरकारी स्वामित्व वाली संस्थाओं के लिए अपेक्षित अप्रसार आश्वासन प्रदान नहीं किया।

कई शर्तों के साथ मिली मंजूरी
अभी होल्टेक कंपनी ने जिन तीन कंपनियों को तकनीक देने की मंजूरी दी है, उसमें कई शर्तें शामिल हैं। भारत ने 3 मार्च 2025 को एक वादा किया है। इस वादे में कहा गया है कि L&T, TCE और Holtec Asia नाम की जो तीन कंपनियां हैं, वो इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ शांतिपूर्ण कामों के लिए करेंगी। इसका इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने या किसी सैन्य काम के लिए नहीं किया जाएगा। अभी जो मंजूरी मिली है वो 10 साल के लिए है। हर 5 साल में इसकी समीक्षा की जाएगी।

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