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Nupur Sharma Case : ‘सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां न्यायिक लोक व्यवहार के खिलाफ’, खुला पत्र में 117 हस्तियों ने जताई आपत्ति

By संतोष सिंह 
Updated Date

नई दिल्ली। पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ भड़काऊ बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बीजेपी की निलंबित नेता नूपुर शर्मा पिछले हफ्ते कड़ी फटकार लगाई थी। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणियों के खिलाफ देश की 117 हस्तियों ने बयान जारी कर SC की टिप्पणी पर आपत्ति जताई है।

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मंगलवार को देश के 15 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों (Retired Judges) , 77 सेवानिवृत्त नौकरशाहों (Retired Bureaucrats) और 25 सेवानिवृत्त सशस्त्र बलों (Retired Armed Forces) के अधिकारियों सहित कुल 117 हस्ताक्षरकर्ता ने बयान जारी कर कहा है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के बजाय, याचिका का संज्ञान लेने से इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने और उचित फोरम (उच्च न्यायालय) से संपर्क करने के लिए मजबूर किया। जबकि यह अच्छी तरह से जानते हुए कि हाई कोर्ट के पास स्थानांतरित करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।

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खुला पत्र में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारडीवाला की टिप्पणियों को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। जारी बयान में कहा गया है कि इस तरह के अपमानजनक बयान का न्यायपालिका के इतिहास में इससे पहले का कोई उदाहरण नहीं है। यह खुला पत्र फोरम फॉर ह्यूमन राइट्स एंड सोशियल जस्टिस, जेएंडके एंड लद्दाख एट जम्मू’ की ओर से लिखा गया है। इसमें मांग की गई है कि जस्टिस सूर्यकांत के सेवानिवृत्त होने तक उन्हें सुप्रीम कोर्ट के रोस्टर से हटा दिया जाना चाहिए। उन्हें नुपुर शर्मा केस की सुनवाई के वक्त की गई टिप्पणियों को वापस लेने को कहा जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने पार की लक्ष्मण रेखा

खुले पत्र में रिटायर्ड जजों व अन्य अधिकारियों ने कहा है कि निलंबित भाजपा नेता नुपुर शर्मा के मामले में शीर्ष कोर्ट ने लक्ष्मण रेखा पार कर दी। पत्र में कहा गया है कि न्यायपालिका के इतिहास में दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणियों की ऐसी कोई मिसाल नहीं है। ये सबसे बड़े लोकतंत्र की न्याय प्रणाली पर अमिट निशान है। इसमें सुधार के कदम उठाए जाने चाहिए क्योंकि इसका लोकतांत्रिक मूल्यों और देश की सुरक्षा पर गंभीर परिणाम हो सकता है।

कोर्ट की टिप्पणियां न्यायिक लोक व्यवहार के खिलाफ

पूर्व न्यायाधीशों, अफसरों व सैन्य अधिकारियों ने कहा है कि शीर्ष कोर्ट की टिप्पणियां न्यायिक आदेश का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन इनके जरिए न्यायिक औचित्य और निष्पक्षता को प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए।

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 इन हस्तियों के हैं हस्ताक्षर

पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश क्षितिज व्यास, गुजरात हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसएम सोनी, राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएस राठौर और प्रशांत अग्रवाल, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एसएन ढींगरा शामिल हैं। इनके अलावा पूर्व आईएएस अधिकारी आरएस गोपालन और एस कृष्ण कुमार, सेवानिवृत्त राजदूत निरंजन देसाई, पूर्व डीजीपी एसपी वेद और बी एल वोहरा, लेफ्टिनेंट जनरल वी के चतुर्वेदी (सेवानिवृत्त) और एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) एसपी सिंह ने भी बयान पर दस्तखत किए हैं।

जानें क्या है मामला?

बता दें कि बीजेपी से निलंबित हुई प्रवक्ता नूपुर शर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की अर्जी दायर की गई थी। जिसकी सुनवाई करते हुए SC ने नूपुर शर्मा को जमकर फटकार लगाई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि नूपुर का पैगंबर मोहम्मद को लेकर दिया गया बयान उदयपुर में हुई कन्हैयालाल की हत्या के लिए जिम्मेदार है। कोर्ट ने कहा कि नूपुर शर्मा के इस बयान ने पूरे देश में हिंसा भड़का दी है। उन्होंने कहा कि देश में जो हो रहा है। उन सबके लिए अकेले नूपुर शर्मा ही जिम्मेदार है। नूपुर शर्मा को पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए।

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