नई दिल्ली: हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष को लेकर काफी मान्यताएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद देते हैं जिससे हमारे जीवन के सभी दुख एवं कष्ट दूर हो जाते हैं।
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आपको बता दें, श्राद्ध पक्ष के बारे में कई मान्यताएं हैं लेकिन विज्ञान ने हमेशा इसे नकारा है। श्राद्ध के दिनों को लेकर विज्ञान अपने तर्क देता है और इसका मूल्य बताता है। तो चलिए जानते हैं कि श्राद्ध पक्ष के बारे में विज्ञान क्या कहता है।
श्राद्ध पक्ष के बारे में विज्ञान का पक्ष
- विज्ञान के अनुसार श्राद्ध पक्ष के दिनों में पिंडदान और जल तर्पण करने की परंपरा का कोई वैदिक आधार नहीं है। चार वेदों की बात करें तो इनमें भी पिंडदान या पितृपक्ष का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। हालांकि, गरुड़ पुराण, कठोपनिषद् में पित तर्पण और श्राद्ध का वर्णन मिलता है।
- वेदों और श्रीमद्भगवतगीता में आत्मा को अजर और अमर बताया गया है और इसके अनुसार मरने के बाद आत्मा नया शरीर धारण कर लेती है तो फिर पितरों या पितृलोक की संकल्पना का क्या आधार है।
- धर्म एवं धार्मिक मान्यताओं के आगे विज्ञान ने हर बार अपने घुटने टेक दिए हैं क्योंकि धर्म को मानने वाले लोग विज्ञान के तर्कों पर भरोसा नहीं करते हैं। धार्मिक लोगों की अपनी ही एक दुनिया और नियम हैं और वे उन्हीं का पालन एवं अनुसरण करते हैं।
- परवर्ती काल के पुराणों में पितृपक्ष एवं गया श्राद्ध का उल्लेख मिलता है। सनातन धर्म के मूल में इसका कोई वर्णन नहीं है।
- ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में ईश्वर की संकल्पना पर ही सवाल उठाते हुए कहा गया है कि इस संसार के रचयिता का पता किसी को नहीं है। किसी को ये भी आभास नहीं है कि असल में ईश्वर होते हैं या नहीं तो फिर पितृलोक का क्या औचित्य बनता है।
- सनातन धर्म से हड़प्पा संस्कृति की सभ्यताओं में पूर्वजों के लिए उनके कब्रों में सामान रखने की परंपरा का भी कोई उल्लेख नहीं है। जब शरीर को जला दिया गया और आत्मा ने नया शरीर धारण कर लिया तो फिर से पिंडदान और पितरों की बात कहां से आई।
- वास्तव में संतान का होना या ना होना हमारी शारीरिक क्षमता पर निर्भर करता है और इसका पितरों के आशीर्वाद से कोई लेना-देना नहीं है। शास्त्रों की मानें तो पितरों के आशीर्वाद में इतनी शक्ति होती है वो अपने कुल की वृद्धि के लिए क्षमता प्रदान करते हैं।
- वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण और रामचरितमानस में भी भगवान राम द्वारा पिंडदान किए जाने का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। ये सिर्फ जनश्रुतियां हैं कि भगवान राम ने अपने पिता का पिंडदान किया था।