पितृ पक्ष 2021: पितृपक्ष के दौरान पितरों की सद्गति के लिए पिण्डदान और तर्पण के लिए काले तिल और कुश का उपयोग किया जाता है। तिल और कुश दोनों ही भगवान विष्णु के शरीर से निकले हैं और पितरों को भी भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है।
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धार्मिक दृष्टि से तो तिल खास है ही इनका आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक महत्व भी है। काले और सफेद दोनों तरह के तिल का उपयोग पूजा-पाठ, व्रत और औषधि के तौर पर किया जाता है।पुराणों में तिल विष्णु, पद्म और ब्रह्मांड पुराण में तिल को औषधि बताया गया है।
बृहन्नारदीय पुराण में कहा गया है कि पितृकर्म में जितने तिलों का उपयोग होता है उतने ही हजार सालों तक पितर स्वर्ग में रहते हैं।
पद्म और वायु पुराण के मुताबिक श्राद्ध कर्म में काले तिलों का उपयोग करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। वहीं गरुड़ पुराण और बृहन्नारदीय पुराण का कहना है कि जिन पूर्वजों की मृत्यु अचानक या किसी दुर्घटना में हुई हो उनके लिए तिल और गंगाजल से तर्पण किया जाए तो मुक्ति मिलती है।
बीमारियों से लड़ने की ताकत
आयुर्वेद में भी तिल का बड़ा महत्व है। आयुर्वेद के अनुसार तिल मिले पानी से नहाने और तिल के तेल से मालिश करने से हडि्डयां मजबूत होती हैं। स्कीन में चमक आती है और मसल्स भी मजबूत होते हैं। तिल वाला पानी पीने से कई बीमारियां दूर होती हैं। इसके अलावा तिल पर हुई एक रिसर्च में बताया गया है कि काले तिल में एंटीऑक्सीडेंट होता है। जिससे शरीर में नई कोशिकाएं और ऊतक बनने लगते हैं।